ग़म-ए-जुदाई
(कविता)
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
शाम-ए-ग़ज़ल सुनाऊँ या, हाल-ए-दिल सुनुँ तुम्हारा ।
नज़र-ए-बयां करूँ या ,दिखाऊँ यह दिलनशीं नज़ारा ।
तेरी मासूमियत के आगे,मेरी ख़ुशी मुस्कुराए ।
मुद्दते यूँही गुजर गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
आलम गुज़रे ज़माने का , न कभी मज़लिस नाम हुआ ।
मिटी कभी तन्हाई तो , महफ़िल में मैं बदनाम हुआ ।
तेरे बिन वक्त भी जैसे ,मुझे वहीँ ठहरा पाए ।
मुद्दते यूँही गुज़र गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
हुस्न-ए-रौनक भी तेरी , बरबस मुझे खोई सी लगती है ।
गम-ए -जुदाई में जानम, तू भी तो डुबोई सी लगती है ।
आओ मिल जाएं ऐसे , शब ये हसीन हो जाए ।
मुद्दते यूँही गुज़र गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
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