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Saturday 1 February 2020

ग़म-ए-जुदाई (कविता) - दुर्गेश कुमार मेघवाल 'अजस्र'

ग़म-ए-जुदाई
(कविता)
मुद्दते यूँही गुज़र गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
शाम-ए-ग़ज़ल सुनाऊँ या, हाल-ए-दिल सुनुँ तुम्हारा ।
नज़र-ए-बयां करूँ या ,दिखाऊँ यह दिलनशीं नज़ारा ।
तेरी मासूमियत के आगे,मेरी ख़ुशी मुस्कुराए ।
मुद्दते यूँही गुजर गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
आलम गुज़रे ज़माने का , न कभी मज़लिस नाम हुआ ।
मिटी कभी तन्हाई तो , महफ़िल में मैं बदनाम हुआ ।
तेरे बिन वक्त भी जैसे ,मुझे वहीँ ठहरा पाए ।
मुद्दते यूँही गुज़र गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
हुस्न-ए-रौनक भी तेरी , बरबस मुझे खोई सी लगती है ।
गम-ए -जुदाई में जानम, तू भी तो डुबोई सी लगती है ।
आओ मिल जाएं ऐसे , शब ये हसीन हो जाए ।
मुद्दते यूँही गुज़र गयी ,तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,कि आखिर आप आए ।
-०-
पता:
दुर्गेश कुमार मेघवाल 'अजस्र' 
बूंदी (राजस्थान)

-०-

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पगली (कविता) - डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)

पगली
(कविता)
मै पगली
फिर ने लगी
गली गली
लेके गोपाल का नाम
देखती दुनिया सारी
कहती मुझे
चली ढूँढँने
गिरधर गोपाल
कलियुग में
कभी आते है क्या
कोई देव यहाँ
ये तो पगली
घट घट मे देख रही
कृष्ण भगवान
अरे!पगली मत बन
तू मृग जैसी
उदर में रख के कस्तूरी
वन वन में ढूँढँने चली
तेरे ही हृदय में
बसे है तेरे गिरिधर गोपाल ।।
रे! पगली 
चली गली गली
लेके हरी का नाम ।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)  


-०-

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शायरी (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


शायरी
(कविता)
मैं शायरी हूँ
जिसे शायर ने बनाया है
मैं शायरी हूँ
मुझे गवैया ने साँस दिया है

ओस के द्वारा फूल की पंखुड़ी
सुन्दर होता है
चाँदनी ढलते ही हर आँगन
हसीने की तरह ही हैं
तारे चमकते ही आसमान में
स्वर्ग को याद आता है
सारी सुन्दरता जुड़ कर के
मुझे बनाया है

रिश्ते बना देती हूँ मैं
गाने की तरह भी आती हूँ मैं
विस्मित करती हूँ लोगों को मैं
एक परी की तरह हूँ मैं ।।।

-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

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नया साल (कविता) - राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"


नया साल
(कविता)
अच्छे दिन की आस में उन्नीस गुजर गया।
दोस्तों फिर से संभलने का वक़्त आ गया।।

मायूस देखा है आदमी को प्याज के लिए।
भाव बढ़ते बढ़ते प्याज कहाँ से कहाँ आ गया।।

रात भर जी एस टी ने सोने नहीं दिया आदमी को।
नये सामान खरीदने का लो वक़्त आ गया।।

पुराने नोट सा मन हो गया आदमी का दोस्तों।
अब नये नोट जैसा बदलने का वक्त आ गया।।

नया भारत बनेगा बुलेट ट्रेन चलेगी देश में।
कलाम के सपनों का भारत बनाने का वक़्त आ गया।।

गांधी की अहिंसा का पाठ फिर पढ़ने की जरूरत है।
देश मे हिंसक घटनाओं को रोकने का वक़्त आ गया।।

राम मन्दिर भी बनेगा लेकिन राम कौन बनेगा ।
सत्य के लिए असत्य से लड़ने का वक़्त आ गया।।

मासूमों के साथ जो करते हैं अत्याचार दोस्तों।
उन्हें फाँसी पर लटकाने का वक्त आ गया।।

देश मे संस्कार सभ्यता जीवित कैसे रहे।
मानवीय मूल्यों की स्थापना का फिर वक़्त आ गया।।
-०-
राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
झालावाड़ (राजस्थान)

-०-


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स्थायी पता (कविता) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

स्थायी पता
(कविता)
बिताई रात आज भाड़े के कमरे में
कल भाई-भाभी के घर पर
परसों मित्र की जन्मदिन पार्टी में
रिश्तेदारों के विवाह समारोह में
चढ़ गई भेंट कितनी ही रातें कवि सम्मेलन की
बहुत से दिन ऐसे ही गुजर जाते हैं
पर्यटन,सफ़र,भ्रमण में
कब,कहाँ,किधर रुक जाए कारवां
नहीं कोई ठिकाना
प्रकाशक भाई पूछता है मेरा स्थायी पता।
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
-०-

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