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Thursday 7 May 2020

‘कहो करोना काइसे बाटेया’ (कविता) - रेशमा त्रिपाठी

‘कहो करोना काइसे बाटेया’
(कविता)
“कहो करोना कैईसे बाटेया
हम सब तऊ घरहिं मा आहीं
सबेरे संझा रामायण देखत, राम– राम जपतऊ अहीं
औ मेहराऊ, लरिकन मा बिजी अहीं
केतना देश तू घूमबेया राजू
का तू तनिकऊ थकतैंया नाही
अरें घाम होई लाग बा चटकैय
तुहू का लूक लागी जाई
अरे जातेया भितरे राहतेया
का त्राहि– त्राहि मचाए बाटेया
नाउ तोहार होईगा बा
अब तू देशवा से कबहू न मर बेया
तोहरे नाउ पर डाक्टर होई,
आफिस होई,दवाई होई इंजेक्शन होई
अब तू काहे देशवा मा फैईलत बाटेया
जातेया अपने भितरे राजू
हमाय कहा तो ईहैय बाट्य
आउर बतावा काइसे बाटेया
पढ़ैय –लिखैय वाले लरिका सब परेशान अाहैय
दू जून कैय रोटी वाले मानई सब हैरान आहैय
बियाह करैय वाले लरिकन सब तड़पत बाटेन
बुढ़वन सब घरें मा माला फेरत थकगा बाटेन
अऊ मेहरारुअन क़ैय पलार, सीरियल,किट्टी पार्टी छूटत बा
तोहका पता आहय कोरोना केतना तू परेशान करें बाटेया
अरे अबहू न बताऊंबेया काईसे बाटेया ।।
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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टूटा हुआ दीया (कविता) - हेमराज सिंह

टूटा हुआ दीया
(कविता)
मैं टूटा हुआ दीया हूँ लेकिन, तेल नही गिरने दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी,मैं बाती न बुझनें दूगाँ।

मुझकों न जरूरत महलों की, वहाँ बड़ी बड़ी मशालें है।
मत मुझें जलाना मंदिर में,वहाँ मणि माणिक के उजालें है।

मुझें जला छोड़ना छप्पर में,मैं अँधियारा न रूकने दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी,मैं बाती न बुझनें दूगाँ।

सोने चाँदी से गढ़कर के,मत मढ़ना रूप सुहाना तुम।
न रंगों से रंगना मुझकों,न सौरभ से महकाना तुम।

कोरी माटी ले, रूप ढाल, मैं मोल नहीं घटने दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी,मैं बाती न बुझनें दूगाँ।

मैं दीन -हीन हूँ माना कि,तुम थोड़ा सा संबल दे दो।
मेरी अधजली वर्तिका को ,सूरज की एक किरण दे दो।

फिर आन खड़े हो झंझावत,निज कदम नहीं हटने दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी, मैं बाती न बुझनें दूगाँ।

मुझकों गरीब की खोली की, चिन्ता हरदम सताती है।
महलों की फिक्र नहीं मुझकों,वहाँ चाँद सजी जगराती है।

रख आस जलाना खोली में,मुस्कान नही मिटनें दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी, मैं बाती न बुझनें दूगाँ।-०-
पता:
हेमराज सिंह
कोटा (राजस्थान)

-०-

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वक्त का तकाजा (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


वक्त का तकाजा
(कविता)
बे वजह घर से न निकलो
वक्त का तकाजा है दोस्तों

अल्लाह की नेमत है जिंदगी
इसे सम्भाल कर रखो दोस्तों

अभी तो घर ही स्वर्ग समझे
कातिल कोरोना से बचें दोस्तों

गलियों में भटकने से अच्छा है
अपनों के संग घर मे रहो दोस्तों

सारी दुनियाँ अभी दहशत में है
अल्लाह से तौबा करो दोस्तो
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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वक्ते वबा (नज्म) - अनवर हुसैन

वक्ते वबा
(नज्म)
वक्ते वबा ने ये क्या कर डाला
इंसान से छीना मुंह का निवाला

पसीना बहाया , न की बेईमानी
मिला सिला ये काम से निकाला

रंग बदलते बदलते इंसान बदला
गिरगिट को यू पीछे छोड़ डाला

अंधेरों में तन्हा , ये सहर जो हुई
मिटा के अंधेरा , करेगी उजाला

बेतार से तार कब , कैसे जुड़ेगा
बेसहारा तन्हा जिन्हें छोड़ डाला

दूरियां बढी खुद फासलें बढ़ गए
एहसासों मे हुआ चलन निराला

घर में रहे तो लगा हमें कैदखाना
क्यों बनाते रहे इसे ताउम्र आला

गुलशन,बगिया सब फरेब दिखा
बिखरे फूलों से बने कैसे माला

कोई इंसान बना है शहर में फिर
खबर हुई हमें जो फोटो निकाला

हालात होंगे और बदतर यहां पर
अगर इंसा ने इंसा को न संभाला

या रब कर दे अब मदद तू हमारी
दुआ में इंसान ने क्या मांग डाला

सब इंतजाम है निजामत में उसके
शिफा को हिदायत में छुपा डाला

सुनो ,ठहरो,रुको,अकेले ही रहना
खड़ी है आफत लिए हाथ माला
-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

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