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Friday, 17 July 2020

पिंजरा (कहानी) - प्रिया वच्छानी

पिंजरा
(कहानी)
उफ्फ् ...खाना बनाते-बनाते बड़ी देर हो गई आज तो। स्नेहा खुद से ही बड़बड़ाने लगी। सिद्धि..... सिद्धि बच्चे खाना ले लो। आकर मैं रोटी उतार रही हूं। मगर सिद्धि तो कान में इयरफोन लगा कोई सीरीज देखने में व्यस्त थी। यह बच्चे भी ना कुछ नहीं सुनते, सब चीजें इनको हाथ में चाहिए, कहते हुए खाने की प्लेट स्नेहा खुद ही ले आई। कितनी बार आवाज दी है तुम्हें सुनाई नहीं देता!!  
सिद्धि के कान से एयरफोन निकालते हुए स्नेहा ने कहा, "क्या हुआ? ले लेती न मैं खुद ही खाना, जानती हो कितनी इंटरेस्टिंग सीरीज देख रही हूं।" 
"तुम और तुम्हारी यह सीरीज,  भगवान ही बचाए इनसे। कभी यह नहीं होता कि मां की मदद ही कर दो।"
" यू आर वेरी स्वीट मम्मा।", सिद्धि मस्का लगाते हुए मां के गले लग गई। 
"ठीक है.. ठीक है ..मस्का लगाने की जरूरत नहीं, चलो खाना खा लो" 
इतने में स्नेहा के मोबाइल पर मैसेज ब्लिंक हुआ, "क्या बन रहा है?" 
सामने प्रणय का मैसेज देख स्नेहा की आंखों और चेहरे पर हल्की स्माइल आ गई। उस एक मैसेज के आते ही जैसे काम का सारा स्ट्रेस ही खत्म हो गया था उसके चेहरे से। स्नेहा ने मोबाइल उठा पहले जवाब टाइप किया - 
कुछ खास नहीं, बस दाल फ्राई और आलू गोभी की सब्जी आलू गोभी की सब्जी !
'वाओ ...मेरी फेवरेट है!'
 'तो आ जाओ खाने! ' 
'सच !! आ जाऊं ?' 
'हां आ जाओ कह तो रही हूं।'
'अच्छा जी!  यह जानते हुए भी कि नहीं आ सकता, मेरी जान जलाई जा रही है।; 
स्नेहा मुस्कुराती हुई स्माइली भेजती है - 'ठीक है ... पूरा बदला लिया जाएगा एक साथ। ओके ...तो शाम को मिलते हैं, ठीक पांच बजे।'
'सुनो ... आज थोड़ा जल्दी नहीं हो सकता ?' 
'जल्दी क्यों ? कितने बजे तक ?'
'चार बजे तक' 
'ओके तो चार बजे मिलते हैं।' 
'पर जल्दी निकल पाओगे न ? कोई दिक्कत तो नहीं होगी?'
'कोई दिक्कत नहीं होगी। मैं मैनेज कर लूंगा। एनीथिंग फॉर यू।', और आंख मारने वाला इमोजी भेज प्रणय ऑफलाइन हो गया।
सवा चार बजने को थे। स्नेहा बेताबी से इंतजार कर रही थी। साथ ही उसके मन में उधेड़बुन भी चल रही थी क्या जरूरत थी मुझे ऐसा कहने की?  मैं भी ना गधी हूं गधी .. चुप भी नहीं रह सकती.. पता नहीं प्रणय निकल पाएगा भी कि नहीं ?  बेकार उसे तकलीफ दी,  चार की जगह पांच बजे निकलता तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता?  पर मैं भी क्या करूं, दिल के हाथों मजबूर हो गई! सोचा यह भी थोड़ा एक्स्ट्रा टाइम मिल जाएगा साथ बिताने के लिए। वैसे भी हम और चाहते भी क्या हैं एक दूसरे से थोड़े से समय के अलावा। मगर अब तक प्रणय निकला क्यों नहीं है ? शायद कोई काम आ गया होगा। मगर ऐसा भी क्या काम ? एक दिन के लिए काम को पोस्टपोंड नहीं कर सकता क्या ? बस इतनी कदर है मेरी एक दिन एक घंटा मैनेज नहीं कर सकता? पर वैसे बेचारा करता तो है! जब भी जैसे भी समय मिलता है याद जरूर करता है।  खुद से ही सवाल पूछ खुद ही जवाब देने में उलझी स्नेहा बार-बार मोबाइल की तरफ देखती। इतने में मोबाइल की घंटी बजी स्क्रीन पर प्रणय का नाम देखें मन को सुकून मिला। बिना एक पल भी गंवाए उसने झट से कॉल रिसीव की। स्नेहा के हेल्लो कहते ही प्रणय बोला- "सॉरी यार निकलते-निकलते बॉस ने कुछ काम दे दिया। और देर हो गई।"  प्रणय की आवाज सुनते ही इतनी देर का गुस्सा स्नेहा भूल गयी। 
"कोई बात नहीं हो जाता है। मैं भी बस अभी फ्री हुई थी।" 
अच्छा जी! मतलब मुझे मिस न किया गया? बेकार गया देर से निकलना... मुझे लग रहा था थोड़ी देर से जाऊंगा तो हमारा बेसब्री से इंतजार हो रहा होगा। प्रणय ने चुटकी ली।
"अच्छा जी!! तो इसीलिए जनाब ने देर की ताकि उनका इंतजार किया जाए ?" स्नेहा ने भी इसी अंदाज में कहा तो दोनों हंस पड़े।
"स्नेहा, तुमसे बात करते हुए कैसे समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कुछ देर के लिए सारी उलझनें, सारी परेशानियां जैसे भूल जाता हूं मैं। एक अलग ही जहान में खो जाता हूं।" 
"मैं भी तो यही महसूस करती हूं ना  प्रणय !! कुछ देर के लिए अपनी मर्जी से जी लेती हूं, जो चाहे कह सकती हूं तुम्हें । वह सारी बातें जो शायद दुनिया में किसी से भी नहीं बांट सकती, वह बातें तुमसे बिना हिचक के बांट लेती हूं।  न जाने कैसा रिश्ता है अपना !! कोई बंधन नहीं फिर भी बंधे हुए हैं।"
 प्रणय ने गाड़ी किनारे रोक ली थी।
"मगर प्रणय ..क्या दुनिया कभी हमारे रिश्ते को समझ पाएगी ?" 
"ना समझे स्नेहा !!  हमें किसी को समझाना भी नहीं।  हम दोनों जानते हैं हम गलत नहीं हम दोनों समझते हैं बस इतना काफी है। तो अब इजाजत है.. चलूं मैं ?" 
"जैसे मेरे कहने से रुक जाओगे !" स्नेहा ने बनावटी गुस्से से कहा। 
"शायद रुक भी जाऊं !" 
"अच्छा जी! अभी जाने दो,  फिर किसी दिन देखूंगी, रुकते हो या नहीं।" 
"ओके ..बाय।"
"बाय ...", के साथ ही फोन डिस्कनेक्ट हो गया। प्रणय गाड़ी में ही बैठा सोचता रहा। क्या है हम दोनों का रिश्ता? क्या दुनिया या हमारे घर वाले कभी इस रिश्ते को समझ पाएंगे? शायद नहीं।  तभी उसका ध्यान गाड़ी में चल रहे गाने के बोलो  पर गया। मैनू पता है दुनिया नू ..ऐ गवारा नहीं हो सकदा.... पर झूठ कह दे ने सारे कि प्यार दोबारा नहीं हो सकता..... मैं किसी और का हूं फिलहाल ....गाने के संग गुनगुनाते हुए वह आगे बढ़ गया।
रात के साढ़े ग्यारह बजने आए थे। घर के काम निपटा स्नेहा ने नींद के इंतज़ार में जब तक मोबाइल उठाया। थोड़ी देर में ही सामने प्रणय का मैसेज ब्लिंक हुआ। सीरियल चल रहा है ? स्नेहा ने चुपके से पति की ओर देखा। उन्हें गहरी नींद में देख स्नेहा ने चैन की सांस ली। जवाब दिया नहीं... सीरियल तो नहीं चल रहा .. पर क्या सीरीज भी नहीं चल रही ? 
प्रणय ने स्माइली के साथ... सीरीज भी नहीं चल रही का मैसेज भेजा और दोनों साथ हंस पड़े। अब तक जाग रही हो !! सुबह जल्दी नहीं उठना क्या ?  बस सोने ही जा रही थी। पर आज न जाने क्यों आंखों से नींद गायब है। किसने उड़ाई नींद ? जरा नाम तो बताना? क्यों किसी का नाम लेकर उसे रुसवा करूँ ? तुम क्यों नहीं सोए अब तक ?  मगर प्रणय अचानक ऑफलाइन हो गया। स्नेहा ने मैसेज का थोड़ी देर इंतजार किया मगर कोई मैसेज ना आया तो वह भी मोबइल बंद कर सो गई। सुबह प्रणय का सिर्फ एक मैसेज आया। जब तक मैं ना करूं तब तक किसी तरह से कांटेक्ट मत करना। यह पढ़ स्नेहा थोड़ा सकते में आ गई। कितने सवाल एक साथ ज़हन में कौंधने लगे।
क्या हुआ होगा?  कहीं उसकी पत्नी ने तो न देख लिया मुझसे बात करते हुए ? पर उसने तो कहा था वह सो रही है। कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं हो गयी ? कहीं कोई और बात तो नहीं हो गई ? हे ईश्वर !! घर में सब ठीक रखना, कोई दिक्कत न हो। इसी सोच में पूरा दिन बीत गया। पर न प्रणय का मैसेज आया ना ही कॉल। स्नेहा इंतजार के अलावा कुछ और कर भी न सकती थी। तीसरे दिन एक अनजान नंबर से फोन आता है। सामने प्रणय की आवाज सुन स्नेहा ने सवालों की बौछार लगा दी।
"क्या बात है ? सब ठीक तो है ? क्या हो गया अचानक? तुम कहां गायब हो गए हो दो दिनों से? सोच सोच कर मैं तो परेशान हो गई । घर में सब ठीक तो है ना ?" 
आज प्रणय की आवाज में ठहराव सा था। "सब ठीक है स्नेहा , और कुछ भी ठीक नहीं।" 
"हुआ क्या?  यह तो बताओ।" 
"उस रात को तुम से बात करते वक्त पीछे न जाने कब मेरा बेटा आ गया । और मुझे पता ही नहीं चला। उसने मुझे तुमसे बात करते हुए देख लिया। और उसने हमारी सारी चैट देख ली। वो बहुत गुस्से में आ गया और मुझसे सवाल- जवाब करने लगा । उसकी आवाज सुन मेरी पत्नी भी जाग गई । और बहुत तमाशा हुआ।"
"फिर... फिर क्या हुआ ?" स्नेहा अंदर तक सिहर गई।
"होना क्या था। दोनों ने मिलकर मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई.... मुझे मेरी उम्र का एहसास दिलाया... साथ ही यह भी याद दिलाया कि अब मैं एक पति हूं, बाप हूं इसलिए मुझे अपनी जिंदगी जीने का अधिकार नहीं है। न ही खुश होने का न ही किसी से दोस्ती तक करने का।"
प्रणय एक एक शब्द जैसे चबाते हुए बोलता जा रहा था। स्नेहा बिल्कुल ब्लैंक हो चुकी थी। उसकी आंखों से आँसूं रुकने का नाम ले रहे थे। प्रणय बोलता रहा।
"जानती हो स्नेहा!!  यही है हमारा समाज ..यही है हमारे समाज की सोच... यहाँ हर कोई जो खुद करे वह सही पर सामने वाला जो करे वह गलत करार कर दिया जाता है।  जैसे हम तालाब की मछलियां बन गए हैं...हमें हर हाल में इस तालाब में ही रहना है। चाहे इस तालाब में हमारा दम ही क्यों न घुट जाए ...हम सांस लेने तक बाहर नहीं आ सकते।"
"हां प्रणय!  हम मां-बाप हैं। हम किसी के पति/ पत्नी हैं... हम इस समाज रूपी तालाब की मछलियां ही हैं । या यूं समझ लो पिंजरे में बंद कोई पक्षी ... जिसके पिंजरे को बालकनी में तो लटकाया जा सकता है मगर उस पर अगर कोई आजाद परिंदा आकर बैठे तो उसे उड़ा दिया जाता है। क्योंकि कहीं वो उस परिंदे को उड़ने के सपने न दिखाए ....उस कैद पंछी का तो सपने देखने का भी अधिकार नहीं रहता....।"
दोनों तरफ कभी न खत्म होने वाला सन्नाटा पसर गया...शायद फोन पर भी और जिंदगी में भी।
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प्रिया वच्छानी
उल्हासनगर-मुंबई (महाराष्ट्र)

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वो सड़क का मोड़ (कविता) - मोहम्मद मुमताज़ हसन


वो सड़क का मोड़
(कविता)
इंतजार -अक्सर  मैंने किया है तुम्हारा ,
जबकि मालूम है मुझे- न आओगे लौटकर तुम वापस
हर बार अपने किए वायदे से मुकर गए हो तुम,
शायद नहीं आता तुम्हें वादा निभाना या.....
बदलते मौसम की तरह ख्यालों में आते जाते हो लेकिन
सोचती हूं -आखिर मौसम क्यों नहीं बन जाते हो तुम-
जो कभी वादा नहीं तोड़ता
चला आता है हमेशा फ़ज़ा में रंग भरने,
बहारों से रुत को सजाने
सड़क के वो रास्ते आज भी पलकें बिछाए
राह ताकतीं हैं हमारी
गली के उस मोड़ पर जहाँ बिखरी हुई हैं - हमारे प्यार की यादें- अब भी,
 वहीं के वहीं हैं
मोहब्बत के तमाम लम्हे,
जिन्हें सम्भाल रखे हैं सड़क के उस मोड़ ने
रखो तुम भले ही गीले -शिकवे  मन में,
लेकिन जब गुजरोगे यादों की गलियों से
तब आओगे,जरूर आओगे तुम सड़क के उस मोड़ पर जहां मिले थे पहली बार- हम दोनों
और शुरू हुआ था सफ़र इश्क के सुनहरे लम्हों का

वो हसीन लम्हें, सड़क के वो खूबसूरत मोड़ क्या याद नहीं आते तुम्हें!!

पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

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घड़ा (कविता) - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

घड़ा

(कविता)
सदियों से शीतल जल देकर प्यास बुझाता है।
घड़ा न समझो निर्धन जन का जीवन दाता है।
इसके जल में है मीठापन सौंधापन मिट्टी का-
जो भी इसके जल को पीता तृप्ति अनूठी पाता है।

जो भौतिक संसाधन पाकर इसको हैं ठुकराते।
वे इसकी संतुष्टि तृप्ति से हैं वंचित रह जाते।
जो जमीन से जुड़े लोग हैं इसका महत्व समझते-
और इसे सम्मान मान दे सिर पर हैं बैठाते।
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श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
भिण्ड (मध्यप्रदेश)

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किसम किसम के लोग (हास्य व्यंग्य) - कमलेश व्यास 'कमल'

किसम किसम के लोग

(हास्य व्यंग्य)
इन दो महीनो में जितना 'वाट्सएप' चलाया है, उतना कभी नहीं चलाया था। इससे प्राप्त ज्ञान व अनुभव के आधार पर कुछ नए किस्म के लोगों से परिचय हुआ, इन लोगों में वे शामिल नहीं हैं जो बिना नागा,तीसों दिन अलसुबह "गुड माॅर्निंग" शुभ प्रभात के किसी उपदेशात्मक संदेश को वाट्सएप पर भेजते हैं...! या वे लोग जो किसी मंदिर में स्थित मूर्ति के रोजाना दर्शन कराते हैं...! इसमें वे लोग भी शामिल नहीं हैं जो सिर्फ वाट्सएप पर मामेरे के कपड़ों की तरह आए हुए मेसेज को बगैर पढ़े बस "फारवर्ड" करते रहते हैं...ये लोग किसी के जन्मदिन, "मैरिज एनिवर्सरी" पुण्यतिथि पर भी एक शब्द कभी नहीं लिखते...सीधा किसी ओर के भेजे "मेसेज" को "काॅपीपेस्ट" कर इतिश्री कर लेते हैं...! ऐसे लोगों के बारे में पहले कई बार कहा जा चुका है...हम यहाँ चर्चा करेंगे कुछ अलहदा किस्म के इंसानो की, जो बहुतायत में हैं पर चर्चित नहीं हैं...लीजिए पेश है वाट्सएप शोध से उपजे इन किरदारों पर एक लघु शोध पत्र।

 "फुसफुसे लोग" - ऐसे लोग वाट्सएप पर सार्वजनिक रूप से संबंधित समूह में अपनी बात कदापि नहीं कहते, परंतु उक्त समूह में आए किसी विषय पर निरंतर लोगों को (व्यक्तिगत तौर पर) किसी समारोह में, कहीं मिलने पर,उनके घर पहुंच कर या मोबाइल पर बात कर उकसाते रहते हैं।  पहले तो इधर-उधर की बातें करते हैं फिर अपने लहजे को यथासंभव रहस्यमयी बनाकर उस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कानाफूसी करते हैं,और उम्मीद यह रखते हैं कि इस विषय पर आप उनके मुताबिक लिख कर वाट्सएप पर पोस्ट करें...इस प्रकार की कानाफूसात्मक बातें वें संबंधित ग्रुप से अपने हितैषी छाँट-छाँट कर निरंतर तब तक करते हैं जब तक कि वे अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो जाते...!  इस प्रकार के लोग बेहद  घातक किस्म के होते हैं,कृपया ऐसे लोगों के फुसलाने पर कदापि न फुसलें एवं अपने विवेक का उपयोग करें।

"भरभंड लोग"-  इस किस्म के लोग आगा-पीछा सोचे बिना वाट्सएप पर आए किसी मेसेज पर तुरंत व व्यापक प्रतिक्रिया करते हैं। इनके मन में जो आता है, वह लिख देते हैं। मेसेज अच्छा लगता है तो तारीफों के पुल बांध देते हैं और बुरा लगने पर सामने वाले की बखिया उखड़ने से भी परहेज नहीं करते...और  भूल जाते हैं...मन में कोई मैल नहीं रखते।   
व्यक्तिगत तौर पर ऐसे लोगों को अच्छा मानने का मन करता तो है पर इनके "भरभंड पने" से डर भी लगता है...पता नहीं कब कौन सी बात इन्हे नहीं जमें और ये वाट्सएप ग्रुप पर अपनी लू उतार दे...!

 "पनियल लोग"- इस प्रकार के लोग वाट्सएप  ग्रुप पर आए किसी मेसेज या समूह चर्चा में पक्ष-विपक्ष के बारे में बहुत सोच विचार कर अपनी प्रतिक्रिया बेहद संतुलित व "अपरिणाम मूलक" ढंग से देते हैं। तात्पर्य यह कि "राम पढ़े तो राम की जय लगे और रावण पढ़े तो रावण की जय लगे...!" तात्पर्य यह कि जैसे पानी, मदिरा में भी घुल-मिल जाता है और दूध में भी, ठीक इसी प्रकार से इनकी लिखी बातें होती है, जिसे जो पढ़े, उसको अपने पक्ष में लिखी प्रतीत हो...अतः ऐसे लोगों का विश्वास करना, अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा लगता है...! 

किस्में तो ओर भी है पर उपरोक्त  लिखी कुछ किस्मों के अलावा साहित्यकारों,कवियों,कलाकारों,ज्ञानियों,परम ज्ञानियों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। यह लघु शोध पत्र केवल साधारण मनुष्यों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
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कमलेश व्यास 'कमल'
उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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