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Friday, 17 July 2020

वो सड़क का मोड़ (कविता) - मोहम्मद मुमताज़ हसन


वो सड़क का मोड़
(कविता)
इंतजार -अक्सर  मैंने किया है तुम्हारा ,
जबकि मालूम है मुझे- न आओगे लौटकर तुम वापस
हर बार अपने किए वायदे से मुकर गए हो तुम,
शायद नहीं आता तुम्हें वादा निभाना या.....
बदलते मौसम की तरह ख्यालों में आते जाते हो लेकिन
सोचती हूं -आखिर मौसम क्यों नहीं बन जाते हो तुम-
जो कभी वादा नहीं तोड़ता
चला आता है हमेशा फ़ज़ा में रंग भरने,
बहारों से रुत को सजाने
सड़क के वो रास्ते आज भी पलकें बिछाए
राह ताकतीं हैं हमारी
गली के उस मोड़ पर जहाँ बिखरी हुई हैं - हमारे प्यार की यादें- अब भी,
 वहीं के वहीं हैं
मोहब्बत के तमाम लम्हे,
जिन्हें सम्भाल रखे हैं सड़क के उस मोड़ ने
रखो तुम भले ही गीले -शिकवे  मन में,
लेकिन जब गुजरोगे यादों की गलियों से
तब आओगे,जरूर आओगे तुम सड़क के उस मोड़ पर जहां मिले थे पहली बार- हम दोनों
और शुरू हुआ था सफ़र इश्क के सुनहरे लम्हों का

वो हसीन लम्हें, सड़क के वो खूबसूरत मोड़ क्या याद नहीं आते तुम्हें!!

पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

-०-

***
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