लगभग डेढ़ माह से पूरे देश में नागरिकता पर चर्चा, प्रदर्शन, आंदोलन, हिंसा,आरोप-प्रत्यारोप के कारण नकारात्मकता का इतना विषैला वातावरण हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त कर कठिन दौर में शान्ति बनाये रखने की अपील की है।यह कैसी विडम्बना है, संसद द्वारा पास किये कानून की संवेधनिकता पर प्रश्न उठाये जा रहे हैं।कोर्ट तो कानून की वैधानिकता तय कर सकता है,वो भी तब उसे ले कर चल रहा हिंसात्मक माहौल शांत हो।यह बात तो पूर्णतया सत्य है कि इस कानून को पास कराने में सरकार ने जल्दबाजी भी की और सभी दलों,पक्षों को विश्वास में नहीं मिला। एक न्यायोचित दिखने वाले कानून का इतना उग्र विरोध होगा,इसका अपने को सुपर चाणक्य समझने वाले अमित शाह को भी अंदेशा नहीं था। जब मामला सर के ऊपर से गुजर गया तो अब घर घर जा कर समझाने का क्या लाभ? अभी भी न तो हिंसा थमी न ही भृम दूर हो पाया। विपक्षी दल, विश्वविद्यालय छात्र, कुछ आम जनता कानून की सही भावना को समझे बिना आंदोलनरत है। हर कोई अपनी अपनी बात अपने अपने तर्क से सही साबित करने में लगा है।
इस कानून को पास करने से पहले विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की बात मान ली जाती तो क्या बिगड़ जाता। अपने हर मुद्दे को वोटों की कसौटी पर ले रही है यह सरकार, प्रचंड बहुमत जो है। लोकतंत्र में सर्वानुमति का सम्मान नहीं होगा तो सही बात भी गलत दृष्टिगोचर होगी और यही हो रहा है। यह दोनों तरफ की जिद्द, अहंकार, पीछे न हट पाने का हठ ही है जिसकी वजह से अभी तक अशान्ति का वातावरण है और इसे आपसी समन्वय से दूर करना होगा। इससे देश की एकता व अखण्डता को भी चोट पहुंचती है। क्या ही अच्छा होता,अपना अहं त्याग कर सब को साथ लेकर चलती सरकार।छात्रों को भी इसमें हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए था।अमित शाह का ब्यान एन आर सी पूरे देश में लागू हो कर रहेगा और रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री का ब्यान कि अभी एन आर सी पर कुछ भी नहीं हुआ। इससे भृम की स्थिति पैदा हो गई।पाकिस्तान, अफगानिस्तान,बंगला देश के प्रताड़ित अल्पसंख्यक को नागरिकता देने को सी ए ए है, प्रताड़ित की सही परिभाषा, धार्मिक आधार पर होने को ले कर विवाद है औऱ बनाया भी जा रहा है। पर सब इसे ले कर किंकर्तव्यविमूढ़ है।
विपक्ष के भीे एक न होने के कारण,एन डी ए गठबंधन में भी मतैक्य न हो पाना,कुछ असामाजिक तत्वों के हिंसा में शामिल हो जाना, अपनी पढ़ाई को भूल विश्वविद्यालय छात्रों का हिंसक हो जाना, पुलिस का गैरजिम्मेदाराना रवैया मुस्लिम भाईयों द्वारा इस कानून को पूरी तरह से अपने विरूद्ध समझ लेना इन सब कारणों से आज पूरे राष्ट्र में एक अजीब सी असमंजस व उहापोह की हालत हो गई है। विरोध,हिंसा,प्रदर्शन थमने का नाम ही नहीँ ले रहे।इसी का फायदा ले कर ही ओवैसी जैसे लोग सी ए ए, एन आर सी,एन पी आर को एक दूसरे से जुड़ा बता कर बरगलाने में सफल हो रहे हैं,जिससे हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं।
एक नेत्रहीन द्वारा हाथी के अलग अलग अंगों को छू कर विभिन्न विचार ही तो सामने आएंगे। एक बार अकबर ने बीरबल को अविद्या का कोई नमूना पेश करने को कहा।बीरबल ने चार दिन की छुट्टी ले कर एक मोची को डेढ़ फुट लंबी आधा फुट चौड़ी जूती को हीरे जवाहरात से जड़ सोने चांदी के तारों से सिलाई से तैयार करने को कहा।
मुँहमांगा पैसा देने के साथ किसी को न बताने का ठोस आश्वासन लिया।
तीसरे दिन जूती तैयार होने पर एक जूती अपने पास रखी,दूसरी मस्जिद में उछाल दी। मौलवी जी ने नमाज़ पढ़ने के रास्ते में इतनी बड़ी जूती देख कर सोचा, खुद अल्लाह नमाज़ पढ़ने आये व उन्हीं की छूट गई होगी।उसने जूती सर पर रखी,माथे से लगाई व चाटा भी।यही बात सब को बताई तो सब ने ऐसा किया।अकबर तक बात गई,देखते ही बोले यह तो अल्लाह की ही जूती है।
उन्होंने भी वैसा ही किया व मस्जिद में अच्छे स्थान पर रखने को कहा। बीरबल छुट्टी खत्म होते ही दरबार में पहुंच, उतरा हुआ मुँह ले कर खड़ा हो गया,जैसे ही अकबर ने पूछा-क्या हुआ,बीरबल बोले-हमारे यहाँ चोरी हो गई।हमारे परदादा की जूती चोर उठा कर ले गया,एक जूती मेरे पास है यह देखो। अकबर का माथा ठनका,मस्जिद से जूती मंगाई एक जैसी,अल्लाह की समझ औरों की तरह मैंने भी चाटी। बीरबल बोले यही अविद्या है, पता कुछ नहीं, बस भेड़ चाल है।
मुझे लगता है, नागरिकता कानून व अन्य के साथ ऐसा ही है। बहुमत का यह अर्थ तो कतई नहीं हो सकता अल्पमत को पूरी तरह से नकार दो।
अजीब सी विडम्बना देखिये,जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में पुलिस बिना अनुमति के घुस गई व छात्रों को पीटा और जे एन यू में कुछ नकाबपोश बाहरी तत्व कुछ छात्रों के साथ मिल कर रात तक उत्पात मचाते है,छात्रों,अध्यापकों को घायल कर देते है, बाहर पुलिस का बड़ा जमावड़ा शांत रहता है व सारे चालीस से ऊपर उपद्रवी बाहर निकल जाते हैं, पुलिस हाथ मलती रह जाती है,ऐसा क्यों,कारण भी संदिग्ध लगता है। दोनों ही तो
केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, पुलिस व इन पर केंद्र का अधिकार। आखिर जिम्मेदार कौन? तीन माह से फीस वृद्धि को ले कर चला जे एन यू का आंदोलन अब नागरिकता व रजिस्ट्रेशन में उलझ कर रह गया। असलियत में पढ़ाई में रुचि रखने वाले छात्रों का कितना बड़ा नुकसान है ये।
इस पूरी कश्मकश में गिरती जी डी पी, बढ़ती मंहगाई दर, पिछले डेढ़ दशक में सबसे ज्यादा बेरोजगारी इन मुद्दों पर कोई बात नहीं, कोई किसी तरह की कार्यवाही नहीं। आखिर देश की एकता,अस्मिता, गरिमा की कोई कीमत है या नहीं। एकता की परवाह किये बिना कब तक नागरिकता-नागरिकता खेलते रहोगे।कितना समय बर्बाद हो रहा है, देश दिनप्रतिदिन कितना पीछे जा रहा है, इसकी परवाह किसको हैं।सब अपनी अपनी ढपली,अपना अपना राग अलाप रहे हैं। पक्ष विपक्ष दोनों अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं।देश गर्त में जाता है तो जाये।
सब कुछ,देश का युवा,देश का भविष्य, देश की जनता प्रश्नचिन्ह बन कर मूक बन सरकार की ओर ही ताकने को मज़बूर हो,इन हालातों को मन मसोस कर, इस गरल को पीती रहेगी। जो हुक्मरान जनता को अपनी सही बात समझा न पाएं, भृमजाल को तोड़ न पाएं,सिर्फ अपना ही गुणगान करते रहे,दूसरे पक्ष को कमजोर मान डंके की चोट पर अपनी बात को मनवाने का दम्भ भरती रहे,अपने एजेंडे को सर्वोपरि समझ वोटों की कुत्सित राजनीति का मोहरा जनता को बनाएगी,सरकार किस वर्ग विशेष की नहीं, पूरे देश की,पूरे राष्ट्र की होती है ,यह अनुभव न कराए तो परिणाम का जिम्मेदार भी वहीं होंगे। जनता कब किसका राजतिलक कर दे,सिंहासन तो बिछते भी हैं, उठते भी हैं।
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