*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

साक्षात्कार: सुविख्यात बालसाहित्यकार पवन कुमार वर्मा जी से प्रो.मच्छिंद्र भिसे जी की बातचीत

रंग-बिरंगी बच्चों की किताबें उनकी टेबुल पर रख दी:
पवन कुमार वर्मा
बाल दिवस के अवसर पर विशेष साक्षात्कार

सृजन महोत्सव के मेहमान :
बालसाहित्यकार पवन कुमार वर्मा (वाराणसी - उत्तर प्रदेश)
(परिचय: आदरणीय पवन कुमार वर्मा जी का जन्म 1 जुलाई 1971 के दिन हुआ। आपने सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक शिक्षा हासिल की है । विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बालकथा, लघुकथा, कविता, कहानियों का निरंतर प्रकाशन होता आ रहा है, साथ ही आकाशवाणी से निरंतर बाल कथाओं का प्रसारण हो चुका है हो रहा है। आपको नागरी बाल साहित्य संस्थान बलिया द्वारा 'बाल साहित्य सम्मान', साहित्य एवं सांस्कृतिक मंच परियावा प्रतापगढ़ द्वारा 'साहित्य श्री उपाधि', भाऊराव देवरस सेवा न्यास, लखनऊ द्वारा 'युवा साहित्यकार सम्मान', अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति द्वारा 'कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान'आदि कई सामानों से आप सम्मानित हो चुके हैं। आपकी जंगल की एकता (बालकथा संग्रह), अनोखी दोस्ती (बालकथा संग्रह), सपनों की दुनिया (बालकथा संग्रह) आदि कई साहित्यिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।)
साक्षात्कार कर्ता : साहित्यकार प्रो.मच्छिंद्र भिसे
(परिचय: सृजन महोत्सव के संपादक, कवि प्रो.मच्छिंद्र भिसे जी का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में सन १९८५ में हुआ. आपने स्नातकोत्तर पदवी हिंदी विषय में हासिल की हैं. देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रचानाएँ प्रकाशित हो रही हैं)

(बाल दिवस की पूर्व संध्या में सुप्रसिद्ध बालसाहित्यकार पवन कुमार वर्मा जी का साहित्यकार संपादक प्रो. मछिन्द्र भिसे जी द्वारा लिये साक्षात्कार के कुछ अंश)
मच्छिंद्र जी: आदरणीय पवन कुमार वर्मा जी, आपका सृजन महोत्सव मंच पर हार्दिक स्वागत! हम विस्मित हैं कि सिविल इंजीनियर में स्नातक करने के बाद भी बाल साहित्य लेखन में कैसे आए याने कि बाल साहित्य में आपकी रुचि कैसे हुई?
पवन जी: हार्दिक आपका एवं आदरणीय राजकुमार जैन 'राजन' जी का हार्दिक धन्यवाद! 
जब मैं नौवीं कक्षा में था, उस समय मेरा लिखा एक लेख स्थानीय समाचार-पत्र में प्रकाशित हुआ। वह पूरी तरह से सामाजिक समस्याओं पर आधारित था। सम्पादक महोदय को वह लेख बहुत पसन्द आया। अब नियमित लेख लिखने को कहने लगे। मैंने कुछ और लेख लिखे, वह भी वहाँ से प्रकाशित हुआ। पिताजी अब नाराज होने लगे। वे ऐसा महसूस कर रहे थे कि इससे मेरी शिक्षा-दीक्षा प्रभावित होगी। मैंने फिर भी लिखना नहीं छोड़ा। लेकिन अब रचनायें प्रकाशन के लिए नहीं, अपने लिए थी। डायरी में उन लेखों को कैद कर दिया। लेकिन कब तक? 
सिविल इन्जीनियरिंग की स्नातक डिग्री के लिए घर से दूर जाना पड़ा। हॉस्टल में रहना था। घर-परिवार से दूर। उस एकाकीपन को दूर करने के लिए पढाई के साथ-साथ फिर से लिखना प्रारंभ किया। लेकिन अब अपनी अभिव्यक्ति लेखों के बजाय कहानियों के माध्यम से करने लगा। मेरी कुछ कहानियाँ मुक्ता एवं गृहशोभा में प्रकाशित भी हुई। 
मेरी इंजीनियरिंग की पढाई कहीं से भी मेरी साहित्य सृजन को प्रभावित नहीं कर रही थी। बल्कि इस दौरान मैंने अनेक साहित्यिक रचनायें पढ़ीं, जिसने मेरे सोचने समझने के दायरे को बहुत बढ़ाया। कर्म से मैं भले ही इंजिनियर हो गया, लेकिन मन पूरी तरह साहित्य में ही रच बस गया। उस समय यह मेरे मन की अभिव्यक्ति का साधन था, जो अब साधना में परिवर्तित हो गया है।
बचपन में बहुत सी बातें हमारे लिए अनुत्तरित होती हैं। जो मन के किसी कोने में दबी रहती हैं। जब थोड़ी समझ आती है तब अपनी उन्हीं बातों का स्वत उत्तर मिल जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था । लेखन अब मेरे रोम-रोम में बस चुका था। मैंने बचपन की अपनी उन्हीं सोच को बाल कहानियों के माध्यम से लिखने लगा। जिसे सबने सराहा। फिर तो मैं बाल साहित्य में ही रच-बस गया। वह भी कथा-साहित्य। मेरी अब तक पाँच बाल कथा संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं।

मच्छिंद्र जी: आप बाल साहित्य में किसे अपना आदर्श मानते हैं और क्यों?
पवन जी: मुझे लगता है जब हम किसी से प्रभावित होकर या किसी को आदर्श मान कर कोई सृजन करते हैं तो अपनी मौलिकता खो देते हैं । सबका अपना-अपना दायरा है, अपनी सोच है, अपने विषय हैं । हमें सबका सम्मान करना चाहिए । बस रचना का उद्देश्य समाज एवं देश-हित में होना चाहिए । 

मच्छिंद्र जी: आज बहुत से रचनाकार चाहे बाल साहित्य के हो चाहे अन्य मौलिक साहित्य हो साहित्य सृजन का उद्देश्य व्यावसायिकता बन गया है इस पर आपकी क्या सोच है? 
पवन जी: ऐसा बिलकुल भी नहीं है । बहुत से श्रेष्ट रचनायें प्रकाशन के अभाव में पड़ी रह जाती हैं । अब भी प्रकाशक बहुत आसानी से आपकी रचनाएं प्रकाशित नहीं करते । लेखकों को अपनी रचनाओं के प्रकाशन के लिए बहुत माथा-पच्ची करनी पड़ती है । लेकिन फिर भी मेरा ऐसा मानना है अच्छी रचनायें अपना मूल्यांकन स्वतः कर लेती हैं । 

मच्छिंद्र जी: बाल साहित्य बालकों तक पहुंचाने के लिए आज क्या कर सकते हैं?
पवन जी: आपका यह प्रश्न मेरे मन का है । बाल-साहित्य का प्रचार-प्रसार बढाने की जरूरत है । और हम यह काम केवल प्रकाशक के जिम्मे नहीं छोड़ सकते । हमें भी इस ओर ध्यान देना होगा । बच्चों की पुस्तकें जब तक बच्चों तक नहीं पहुंचेगी तो बाल-साहित्य का कोई औचित्य ही नहीं है । पुस्तकों के प्रचार-प्रसार पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा । मुझे लगता है स्कूल इसका अच्छा माध्यम बन सकता है । इस पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता है ।

मच्छिंद्र जी: बाल साहित्य कैसा होना चाहिए या बाल साहित्य के मूल तत्व कौन से हैं?
पवन जी: वह बाल साहित्य जो बच्चों में नैतिकता, देशप्रेम, सामाजिक एवं पारिवारिक संस्कारों को बढ़ाते हों, वह निःसंदेह श्रेष्ठ है । 

मच्छिंद्र जी: आज बाल साहित्य के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां है जिसे सभी बाल साहित्यकारों को गौर करना होगा?
पवन जी: जितनी मात्रा में रचनाएं लिखी जा रहीं हैं, क्या वह पूरी की पूरी बच्चों तक पहुँच पा रही हैं ? यह सबसे गंभीर चुनौती है । मैंने पहले ही कहा यह कार्य केवल प्रकाशक के जिम्मे नहीं छोड़ा जा सकता । 

मच्छिंद्र जी: बालकों में बाल साहित्य पठन में रुचि उत्पन्न हो इसलिए कौन से प्रयास करना आज आवश्यक है?
पवन जी: इस ओर छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे । बच्चों को पहले यह पता तो चले कि उनके लिए क्या लिखा जा रहा है, कहाँ लिखा जा रहा है ? मेरे घर में भी यह समस्या थी । मैंने बिना कुछ कहे कुछ रंग-बिरंगी बच्चों की किताबें उनकी टेबुल पर रख दी । मुझे उनसे कुछ नहीं कहना पढ़ा । वे स्वत पढने लगे । क्या अभिभावक बच्चों की किताबें खरीद कर लाते हैं ? इसका प्रतिशत बहुत कम है । आप को अलग से कोई प्रयास नहीं करना है । केवल पुस्तकें उन तक पहुंचानी है । 

मच्छिंद्र जी: इस बाल दिवस के अवसर पर बाल साहित्यकार के रूप में जो बालक है उन्हें आप क्या सुझाव या संदेश देना चाहेंगे?
पवन जी: आज के बच्चे कल के राष्ट्र निर्माता हैं । इसी भावना से लिखें । बच्चों के लिए बच्चे की भाषा में लिखें । उपदेश देने से बचें । उपदेश आपकी लिखी कहानियों में निहित हों । 

मच्छिंद्र जी: आप बाल दिवस के अवसर पर छोटे बच्चों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
पवन जी: मेरा एक वाक्य है – खूब पढ़ो और खूब बढ़ो ।

मच्छिंद्र जी: आदरणीय पवन जी आप हमारे साथ जुड़े; आपने बालदिवस के अवसर पर बालसाहित्य एवं उसकी सर्जना पर जो विचार हमारे सामने रखे सचमुच सोचनीय हैं। आपने हमारे निमंत्रण को स्वीकारकर हमारे लिए व्यस्त समय में भी अपना समय हमें प्रदान किया, इसलिए मैं आपका सृजन महोत्सव परिवार की ओर से हार्दिक अभिनंदन करता हूँ साथ ही आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद !!
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सूचना: 
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