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Sunday, 29 March 2020

तिलक होली (लघुकथा) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

तिलक होली
(लघुकथा)
लंबी कॉल बेल बजी। घर के सभी सदस्यों ने सुनी। विपुल के पापा स्वयं दरवाजा खोलने के लिए गए। दरवाजा खोलने से पहले रुके।बाहर कुछ फुसफुसाहट हो रही थी।उन्होंने सुनने का प्रयत्न किया। पर कुछ साफ सुनाई नहीं दिया। उन्होंने अंदाजा लगाया ,कौन हो सकता है ? बच्चों के जैसी फुसफुसाहट की ध्वनि आ रही थी ।
आखिर उन्होंने दरवाजा खोल दिया।बच्चे आगे बढ़े और उन्होंने होली की राम-राम की, तथा बारी-बारी से बच्चों ने विपुल के पापा के चरण स्पर्श किए । विपुल के पाप ने सभी को आशीर्वाद दिया । 
बालकों ने पूछा, "अंकल जी! विपुल कहाँ है? हम तो उसके साथ होली खेलने आए हैं । अच्छा ,बच्चों! तुम सभी का स्वागत , होली मुबारक। पर तुम बाहर क्यों खड़े हो। अंदर आओ। होली खेलने के लिए तुम्हारे हाथों में रंग, गुलाल, अबीर पिचकारी,गुब्बारे आदि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहे । इनके बिना तुम होली कैसे खेलोगे ?
इसी बीच अपने दोस्तों की आवाज़ सुन कर विपुल भी आ गया । उसके हाथ में लाल-गुलाबी गुलाल का एक दोना था। उसने उस दोने को सब दोस्तों के बीच रख दिया। सब उसमें से थोड़ी-थोड़ी गुलाल निकाल कर एक-दूसरे के
सिर पर तिलक लगाने लगे,तिलक होली खेलने लगे। "हैप्पी होली, हैप्पी होली, होली मुबारक ,होली मुबारक कह कर एक-दूसरे के गले मिलने लगे ।
घर का वातावरण होली की खुशियों से भर गया। घर के छोटे बड़े सभी सदस्य भी बालकों के साथ मिलकर, तिलक होली खेलने लगे। सभी बालक अपनी-अपनी कविता ,गीत चुटकले आदि सुनाने लगे। माँ जी, अपने हाथ के बने होली के लड्डू लेकर आई । सभी मिलजुल कर खाने लगे और होली की मुबारकबाद भी देने लगे,तथा अपने स्कूल के हेड सर की तारीफ़ करने लगे क्योंकि यह अनमोल आईडिया उनके द्वारा ही दिया गया था।
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
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पहले उनसे नजर (ग़ज़ल) - अमित खरे

पहले उनसे नजर
(ग़ज़ल)
पहले उनसे नजर मिला
उसपर एक खुमारी लिख
सबका चुकता करके तूँ
फिर से एक उधारी लिख
बोझ उठाकर थोडा सा
अपनी जिम्मेदारी लिख
छोड़ के मन्दिर मस्जिद को
भूखों की लाचारी लिख
सारी दुनिया नचा रहा जो
उसको बड़ा मदारी लिख
चाल फरेब धोखा गद्दारी
इनको दुनियादारी लिख
सारे चेहरे अलग अलग हैं


उसकी भी फनकारी है
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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रिश्तों की डोर (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


रिश्तों की डोर
(कविता)
रिश्तों की डोर नाजुक ही होती है ।
सहज-सद्भाव से ही बंधी होती है।।

कुछ रिश्ते हल्के-भारी भी होते हैं ।
रिश्तों की उम्र छोटी-बड़ी होती है।।

रिश्ते तो आम तौर पर रिश्ते होते हैं।
रिश्ते निभाने की नीयत ही होती है।।

रिश्ते कुछ क्षणिक और अमिट होते हैं।
रिश्तों की प्रक्रिया भय-प्यार से होती हैं।।

रिश्ते भी आजकल नाम के ही होते हैं ।
कुछ रिश्तों की पहचान नाम से होती हैं।।

रिश्ते भी व्यक्तित्व व चरित्र से बनते हैं।
खून के रिश्ते की उम्र तो ताउम्र होती है।।

रिश्ते घर-समाज, देश दुनियाँ से जोड़ते हैं।
रिश्तों की दुनियाँ धूप-छांव जैसी होती है।।

रिश्ते कर्म-धंधे विविध भूमिका से होते हैं।
'नाचीज'रिश्ते की बुनियाद स्वार्थी होती है।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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हम भारतीय (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

हम भारतीय
(कविता)
हमारी मानसिकता...
अनंतकाल से,सहनशीलता।
हम संतोषी...
खोज ही लेते हैं..
दुर्गम से दुर्गम हालातों में भी,
अपनी ख़ुशी।
हम फरियादी ...
जब ना मिले सुख संतोष,
माँग लेते रब से,
करके फ़रियाद।
जब होती कोफ़्त...
जब कोई घटना,
मन को कचोटती,
कहीं किसी रोज़।
दर्द से बिलबिला कर,
अंगड़ाई लेते,
पर करवट नहीं बदलते,
हम भारतीय....
अपनी मानसिकता नहीं बदलते।
जैसा “वो” रखेगा,
रहेंगे..।
कुछ चाहिए तो,
अपने ज़िंदा होने का ,
सबूत भी देंगे।
हम भारतीय ,
सीधे साधे...
बात से कभी नहीं मुकरते ,
दिल माँगोगे,जाँ दे देंगे।
गर कह दें तो,कर के रहते।।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-0-


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उदासियां (कविता) - राजीव डोगरा


उदासियां
(कविता)
कभी-कभी उदासियां
बहने लगती है इन अश्कों में।
जो बातें कही नहीं जाती
वे बह जाती है
अक्सर इन अश्कों में।

मत पूछा करो
इन खामोशियों की वजह
इन तनहा रस्तों से।
बहुत कुछ खोया है
बहुत कुछ पाया है
अक्सर इन गुमनाम रास्तों से।

मत पूछिए
वफ़ा की बातें हम से।
बहुत दिल लगाया है
और बहुतो से
दिल से निभाया है,
मगर फिर भी अक्सर
दर्द ही मिला है
हमें अक्सर सस्ते में।
-०-
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-




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