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Monday 17 February 2020

कद्र करो अपने जनकों की (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'

कद्र करो अपने जनकों की 
(कविता)
मात पिता की गोदी में हम,
लोगों पलकर बड़े हुए।
उनके एहसानों के पैरों ,
पर चलकर के खड़े हुए।।
कर्ज नहीं लोगों जीवन भर,
हम उतार वो पाएंगे ।
याद हमेशा मात पिता यूँ,
हमको पल पल आएंगे ।।
******
दूध पिलाया है जो माँ ने,
उससे सदा निरोग रहे ।
दूध नहीं वो तो जीवन है,
जो जीवन हम भोग रहे ।।
जिसने अंगुली पकड़ हमारी,
भू पर चलना सिखलाया ।
क्या उस जैसा साया हमने,
कभी कहीं पर भी पाया ।।
*******
रात रात भर किया जागरण,
ऐसा माँ का प्यार मिला ।
माँ पाई तो सब कुछ पाया,
हमको ये परिवार मिला ।।
पिता न होते साथ अगर तो,
सोचो ,बोलो क्या होते ।
अपमानों को विष पीते और,
छिपकर इधर उधर रोते ।।
*******
जनको से हमने जमीन भी
और हौसला पाया है ।
मंजिल का सुख इसीलिए तो,
हम तक चलकर आया है ।।
कद्र करें अपने जनकों की,
काबिल हम कहलाते हैं ।
"अनन्त"जिनके कारण ही जग,
में पहचाने जाते है।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

***
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प्री वेडिंग फिल्म (आलेख) - श्रीमती सुशीला शर्मा

प्री वेडिंग फिल्म 
(आलेख)
कुछ दिन पहले हम एक शादी में गए।पंडाल मुख्य द्वार तक कृत्रिम फूलों, लड़ियों, बंदनवारों, मूर्तियों से सजा था। साथ ही नव वर-वधू के बड़े-बड़े पोस्टर होल्डिंग में बाहर से अंदर तक अपना परिचय दे रहे थे। आश्चर्य तो तब हुआ, जब अंदर मैदान में स्टेज के साइड में एक बड़ा सा स्क्रीन लगा था और उसमें वर-वधू की फिल्म चल रही थी। उसमें बाग बगीचे, दर्शनीय स्थल, मॉल ,सड़क आदि में फिल्माए गए अंतरंग दृश्य एक फिल्म की तरह दिखाई दे रहे थे और आगंतुक स्टेज में बैठे लाइव वर वधु से ज्यादा स्क्रीन का लुफ्त उठा रहे थे। हमारे लिए यह सब चौंकाने वाला था क्योंकि पहला पहला अनुभव था। सोच रही थी कि अभी तो शादी हुई नहीं तो ऐसे हनीमून सीन पहले से ही कैसे बन गए?घर आकर चर्चा की तो हमारे युवाओं ने हमें बैकवर्ड करार कर दिया। बोले ,"मम्मी जमाना बदल गया है ।उसके लिए फोटोग्राफर शादी से पहले ही यह सब शूटिंग कर लेते हैं और पता है इसका पैकेज है कम से कम लाख डेढ़ लाख रुपए ।मेरा तो मुंह खुला का खुला ही रह गया। कुटिल दिमाग में यही आया ,"यदि शादी छूट गई तो ?क्योंकि आजकल हमारे युवा बहुत जल्दी फैसले ले लेते हैं। शादी के बाद कितने समय साथ रहना है, या नहीं। कैसे रहना है? फिर इस तरह की प्री वेडिंग की फिल्मों का क्या होगा? एक दूसरे के प्रति सारा प्यार तो इन्होंने पहले ही उंडेल दिया। खैर, भविष्य किसने देखा है ।मेहमानों का काम है आशीर्वाद दो खाना खाओ और चिंता छोड़कर घर जाओ। अब तो हम भी अनुभवी हो गए हैं, क्योंकि आए दिन जहाँ जाते हैं ऐसी शूटिंग होते देख कर मुंह फेर लेते हैं।
ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी को गुमराह होने से बचा ले ताकि वसुधैव कुटुंब बने रहें।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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ताक धिना धिन (कविता) - डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृत'


ताक धिना धिन
(कविता)
 'वन्यजीवन पर कविता- मस्त हुआ वनवासी जीवन' 

बरगद , पीपल , आम , नीम
बट , हरे बांस, महुआ
झूम रही तरु लिपटी बेलें
झूम रहा कहवा
वनखण्डों में ढूंढो दुर्दिन !
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........

सींग , पंख की पगड़ी सिर पर
पग में घुंघरू , गले में ढोल
मस्ती भरा थिरकता जीवन
गूंज रहे झांझर के बोल
अपनी रातें अपने हैं दिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........

पाल रखे हैं मुर्गे तीतर
सोते पत्ते गुदड़ी सींकर
फूंक रहे हैं आग प्रेम की
महुआ की मदिरा पीकर
नहीं देखते सपने अनगिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........

हम पाखी उन्मुक्त गगन के
नहीं चाहिये कोई बंधन
हरे भरे जंगल वन - प्राणी
से ही है अपना जीवन
मगन रहें मस्ती में पल छिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........

जंगल की है रीत अनोखी
प्रीत अनोखी जंगल की
हरीतिमा के बीच सोई है
पीत अनोखी जंगल की
महके महुआ बहके यौवन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........

घुमड़ - घुमड़ घन उठी घटायें
बरसी जंगल घाटी में
अल्हड़ वन कन्या झूमी
पावस की उन्मादी में
नहीं चाहिये हमको आरक्षण
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
बासंती मौसम हो या फिर
होली ईद दिवाली हो
नहीं देखते अपनी जेबें
कभी भरी या खाली हो
बल खाये शरमाये नागिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन .... ........
मंदिर मस्जिद और शिवाला
सब जंगल के भीतर हैं
गंध सुगंध टपकते महुआ
यही फिल्म कम्प्यूटर है
भरे चौकड़ी मन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
-०-
डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)
दुबे कालोनी , कटनी 483501 (म. प्र.)
-०-

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मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो 
(कविता)
मैं राष्ट्र भक्ति में डूबा हूँ! मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो।
खूनी बोले कातिल बोले! जिसका जो मन वो कहने दो।

हो मेरे भारत का विकास! बस इतना ध्येय हमारा हो।
जन जन के मुख से निकले जो! भारत माँ का जयकारा हो।

माँ के चरणों से सुन्दर! कभी स्वर्ग नहीं हो सकता है।
भारत माँ की सेवा करना! ब्यर्थ नहीं हो सकता है।

पर कुछ मानवता के दुश्मन! जो शाहीन बाग में बैठे हैं।
धूर्त दगाबाजों के कहने पर! अपनों से ही ऐंठे है।

बस उनसे इतना कहना है! दिल्ली कश्मीर नहीं होगा।
अब राणा का भाला चमकेगा! अकबर का शमशीर नहीं होगा।

थे सहिष्णु हम हिन्दू पर! असहिष्णु का नाम मिला।
दया दिखाई हिन्दू ने पर! हिन्दू ही बदनाम मिला।

CAA का हो विरोध! या NPR NRC हो।
हिन्दू सिक्ख ईसाई हो! या फिर कोई फ़ारसी हो।

जो भारत में शरणार्थी है! हम क्यों न उनकों नागरिकता दें।
जो अपनी अस्मत बचाने आए ! हम क्यों न उन्हें अस्मिता दें।

जो संसद में होता आया! क्या शाहीन बाग से होगा अब।
क्या हिन्दू राष्ट्र ये भारत! शाहीन बाग से चलेगा अब।

हम सेक्युलर थे हम सेक्युलर है! हमें सेक्युलर ही तुम रहने दो।
गंगा यमुना की तरह हमें भी! अविरल ही तुम बहने दो।

यूँ बार बार फूंफकार न छोड़ो! हमें फन कुचलना आता है।
पर महादेव के कारण हमको! दूध पिलाना भाता है।

पर क्रोधित हो जाएं तो हम! जन्मेजय भी बन जाते हैं।
यज्ञ कुण्ड में आहुति फिर! सर्पों की दिलवाते है।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



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★★ पलभर छोटा है ★★ (कविता) - अलका 'सोनी'

★★ पलभर छोटा है ★★
(कविता)
जिंदगी गुजर जाती यूँ ही
जीने को पलभर छोटा है

पानी का है स्वाद वही बस
कहने को गागर छोटा है

शब्दों में है जान बहुत, यह
कहने को शायर छोटा है

रहते सब मिलजुल कर इसमें
दिखता बस यह घर छोटा है

सोई हैं कितनी ही लहरें
सोचो मत सागर छोटा है

बढ़ने की हर कोशिश कर तू
कोई नहीं अवसर छोटा है

मच सकती है हलचल दिल में
क्यों देखें पत्थर छोटा है

झुक कर छोड़ो चलना जग में
कोई नहीं अब सर छोटा है

सुंदर मन हो जिसका,उसके
आगे हर जेवर छोटा है।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

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