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Thursday 26 December 2019

झील में गँदगी (लघुकथा) - प्रकाश तातेड

झील में गँदगी
(लघुकथा)
देखते-देखते झील में गंदगी बढ़ गई। चारों ओर पानी में बदबू आने लगी। सब मछलियों में गंदगी के प्रति चिंता व्याप्त हो गई।
कुछ लोकतंत्र की हामी मछलियों ने सरकार को गंदगी दूर करने के ज्ञापन दिए। सभाएं की और आंदोलन की धमकी दी। कुछ सेवाभावी मछलियों ने यत्र तत्र सफाई अभियान चलाएं और गंदगी मिटाने का संकल्प व्यक्त किया।
सत्ताधारी मछलियों ने वक्तव्य दिया कि यह कोई गंदगी है। यह गंदगी तो पुरानी सरकार के जमाने से चल रही है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। इतनी सी गंदगी के लिए शोर मचाने की क्या जरूरत?
कुछ बुजुर्ग मछलियों ने कहा कि गंदगी तो शाश्वत है, कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। इसके लिए कौन सी चिंता!
कुछ युवा मछलियां अकुलायीं-' हम गंदगी को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम गंदगी फैलाने वाले को फांसी पर लटका देंगे।'
कुछ दिनों बाद सब आंदोलन, अभियान, बयान ठंडे हो गए। अब झील में गंदगी भी है और मछलियां भी। मछलियां गंदगी में जीना सीख गई है। -०-
पता-
प्रकाश तातेड़
उदयपुर(राजस्थान)
-०-

***
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ग़ज़ल न सिर्फ (ग़ज़ल) - डा जियाउर रहमान जाफरी

धरती ला दो 
(ग़ज़ल)
ये इंतखाब के मौसम हैं क्या किए जायें
किन्हीं को कब्र किन्हीं को जला दिए जायें

कहा ये किसने वतन लूट कर गए हैं जो
वो मर गए हैं तो झंडे झुका दिए जायें
नहीं है उनको ज़रूरत हमारे खेतों की
अमीर लोगों को हीरे चटा दिए जायें

बस इससे पहले मेरे दिल का ज़लज़ला उठे
ये जितने शीशमहल हैं गिरा दिए जायें

गुनहगारों को देगी सज़ा अदालत क्या
बस मेरे पांव के घुँघरू हटा दिए जायें

किसी की आबरू लेने की बस सज़ा ये हो
लिटा के शीशे पे रोलर चला दिए जायें

ग़ज़ल न सिर्फ क़सीदे गढ़ा करेगी अब
जो शाहे वक़्त हैं उनको बता दिए जायें-0-
डा जियाउर रहमान जाफरी
नालंदा (बिहार)
-०-



***
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धुंध (लघुकथा) - अलका पाण्डेय

धुंध
(लघुकथा)
ललिता शाम की खाने की सोच रही थी क्या बनाया जाय क्या नहीं।  चलो, भिंडी ही बना लेती हूँ। और वह भिंडी काटने बैठ गई।  कुछ आलस्य सा आ रहा था।  
बेटी सेजल को आवाज लगाई, "बेटा एक कप चाय पिला दे, मसालेवाली, बड़ी थकान लग रही है। " 
सेजल ने कहा, "माँ आराम करो, किसने कहाँ है कि शाम की तैयारी में अभी से जुट जाओ, हो जायेगा सब मैं बना लूगी, आप आराम करो चायपीकर सो जाओ ।" 
सेजल ने माँ और अपने लिये भी चाय लेकर आई।  तो देखती है माँ बडे जतन से एक-एक भिंडी काट रही है। ख़राब भिंडी को थोडा काट देखती है फिर थोडा अच्छा वाला भाग काट कर रखती है।  
सेजल ने पूछा, "ये क्या माँ ख़राब भिंडी में से भी आप अच्छा भाग निकाल लेती हो, फेंक दो क्यो इतनी मेहनत!" "अरे कितनी मंहगी है सब्ज़ियाँ मंहगाई आसमान छू रही है"
"माँ आप जितने जतन से घर की साल सम्भाल करती है उतनी जतन से आप ने दादा-दादी को नही सम्भाला, मुझे दुख है आप उनकी एक दो गल्तियों को इसी तरह नजर अंदाज कर अच्छाईयों को देखती, क्यों इतनी कठोर बन जाती हो, पापा कितने उदास है जब से दादा दादी गये है, आपको सहारा था दादी का, बैठे बैठे कितने काम कर देती थी । दादा जी भी बाज़ार से सामान ले आते थे हमारे स्कूल के काम बहार के काम पापा को भी आराम व मददत हो जाती थी।  अब सब काम में लगे रहते पर व्यवस्थित कुँछ नहीं हो पाता।  आप लोग लड़ने लगे हो गोलू बिगड़ रहा है माँ, माँ मैं छोटी हूँ पर मेरी बात मान लो।  उनकी एक दो गलति की सजा उनके पूरे व्यक्तित्व को नकार देना अकेला छोड़ देना सही नहीं है । उन्होंने पूरी जिंदगी पापा को बनाने में खर्च कर दी।  सोचो पापा कितना दुखी होंगे।  क्या दादा दादी की किमत इन सब्ज़ियों से कम हो गई है?" ललिता ने रोते हुये चाय का कप रखा। 
और सेजल को बोली, "चल मेरे साथ।"
"कहाँ?" मां बोली। 
"चल कुँछ मत पूछो अब देर नहीं।"
तूने मेरी आँखों की धुँध साफ़ करती, बेटा! और वो दादा के मकान के सामने खड़ी थी काल बेल बजा दी
-०-
स्थाई पता
अलका पाण्डेय
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
-०-

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अनासक्ति (कविता) - मोती प्रसाद साहू

अनासक्ति
(कविता)
उस अदृश्य नियन्ता ने
पर्वत ,कहीं समुद्र बनाया।
कहीं सम मैदान बनाकर
उन पर जन आबाद कराया।।

पर्वत ने पाया है नभ को
सागर ने पायी गहराई ।
मानसून का चक्र चला कर
उसने है विज्ञान सिखायी।।

पर्वत को मिलता जो जल है
सागर को लौटाता नदियों से।
पर्वत दिखलाता अनासक्ति
सागर वापस करता नीरद से।।

यह चक्र संतुलन अनायास
आपस का प्रेम सिखाता है।
अनासक्त संग्रह करने का
सात्विक भाव जगाता है।।
-०-
मोती प्रसाद साहू 
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

-०-

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फूल (हाइकु) - बलजीत सिंह

फूल 
          (हाइकु)
(1) डाली का फूल
नाजुक सी जिन्दगी
करे कबूल ।

(2) फूलों की झोली
बिखर जाने पर
बने रंगोली ।

(3) तितली रानी
रंगीन फूलों पर
हुई दीवानी ।

(4) चाँद न तारे
अभिलाषा के पुष्प
सबसे प्यारे ।

(5) मिट्टी न धूल
विश्वास से महके
रिश्तों के फूल ।
-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

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