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Tuesday 28 January 2020

जीवन सार (हाइकु) - बलजीत सिंह

जीवन सार
          (हाइकु)
(1) जीवन- सार
सकारात्मक सोच
उच्च विचार ।

(2) अच्छे संस्कार
जीवन में खोलते
खुशी के द्वार ।

(3) आशा-निराशा
जीवन का तराजू
पलटे पासा ।

(4) मान-सम्मान
मानसिक संतुष्टि
करे प्रदान ।

(5) नियत सच्ची
मेहनत की रोटी
लगती अच्छी ।
-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

***
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आह विवाह! वाह विवाह! (व्यंग्य) - राज कुमार अरोड़ा 'गाइड'

आह विवाह! वाह विवाह!
(व्यंग्य)
"शादी वह लड्डू,जो खाये वो पछताये, जो न खाये, वो भी पछताये"
"शादी न बाबा न,शादी तो बर्बादी है, खो जाती आज़ादी है"
"आत्महत्या करने की हिम्मत न जुटा सका, तो शादी कर ली"
"पिता जी,क्या गधे भी शादी करते हैं, हाँ, बेटा गधे ही तो शादी करते हैं"
"मन शान्ति कब महसूस करता है, जब शांति मायके में होती है"
" शादी तो उम्रकैद है, जिंदगी भर की हथकड़ी, सब कुछ भूले, बस याद रही,नून तेल लकड़ी"
"मेरे तो कर्म ही फूट गए,तुमसे शादी करके,मैं भी तो गले पड़ा ढोल ही बजा रहा हूँ"
"पत्नी वही,जो पति पर तनी रहे और पति बेचारा पत्ता बन बस फड़ फड़ करता रहे"
"हसबैंड का अर्थ है, जो हंसते हंसते बजता रहे, बजना तो उसे है ही,बज कर ही मजे का जीवन जी लो ,क्या बुराई है"
"शादी को लड़की का दूसरा जन्म कहते हैं, पर लड़के के लिये तो तीसरा जन्म हो जाता है, वह माँ की तरफ जाये तो पत्नी कहे,माँ का लाडला,पिछलग्गू और पत्नी की तरफदारी करे तो,जोरू का गुलाम फतवा मिल जाये"
"विवाह के बाद का जीवन,उस तालाब जैसा,ऊपर तो सुंदर कमल का फूल,पर नीचे गहराई का जाल बना बबूल, एक बार फंसे तो गये निकलना भूल"
"शादी तो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही गलती है, फिर भी क्या आप शादी से बच पाएंगे"शादी पर बने इतने जोक्स, किस्से सिर्फ मनोरंजन के लिये ही नहीं, अपितु इसकी मधुरता,मिठास,प्यार भरी तल्खी को भी दर्शाते हैं। आज हर लड़का लड़की टीन ऐज में आते ही सपनों का संसार बुनने लगते हैं।माँ बाप आस लगाये रहते हैं कि बेटा बहु लायेगा, हमारी सेवा करेगी,बेटा बुढ़ापे में सहारा बनेगा। पर आज चलन तो ऐसा है, माँ बाप चार बच्चे पाल सकते हैं, पर चार बच्चे माँ बाप को नहीं पाल सकते, पर कुछ अपवाद भी हैं, और यही तो सुख व सकून देते हैं,
और यहीं तो विवाह वाह वाह है! आसमान से उतरा मीठा सन्देश है।"
"शादी के बाद की चुहलबाजी भी मर्यादा में हो तो जीवन में नया रंग भर देती है"
मैंने अपने बेटे को जब वह आठ वर्ष का था, यूँ ही बातों बातों में कहा-क्या रखा है शादी में, इतनी भागदौड़, रोज़ की डांट डपट,तू शादी मत करना, तो वो बोला- कोई बात नहीं पापा, मैं भी अपने बेटे को कह दूँगा कि वो
शादी न करे।
फिर यह भी सत्य है कि जीवन की पूर्णता विवाह से है।पति-पत्नी का आपस में सामजंस्य हो तो पत्नी जीवनसंगिनी के अतिरिक्त माँ, बहन,बेटी, मित्र,शुभचिंतक के रूप में तो पति जीवनसाथी के अलावा पिता,अभिभावक, दोस्त, भाई का रोल निभाते हैं, यही तो इस वैवाहिक जीवन की सफलता की पराकाष्ठा है, यही मंगलमय रूप है । यह भी सत्य है कि वैवाहिक जीवन की सफलता विवाह के बाद अलग होने में नहीं,मां बाप के साथ रह कर ही स्वयं भी, उन्हें भी आनंदित रखने में हैं। जिस घर में बुजुर्ग प्रसन्न व सन्तुष्ट रहते हैं, वह स्वर्ग से भी बढ़ कर है। इसलिये तो कहते हैं कि जो विवाह से भयभीत हो कर पीछे हटता है, वह उसी के समान है, जो युद्धभूमि से पलायन करता है
विवाह स्त्री पुरूष के आपसी अधिकार भाव का नाम है। 
विवाह जीवन एक तपोभूमि है, सहनशीलता व सयंम खो कर इसमें कोई सुखी नहीं रह सकता विवाह के अनेक दुखड़े हैं, पर कुँआरे रहने के भी कोई सुख नही। परस्पर मधुर व्यवहार हो तो जिंदगी गुलाब जामुन की तरह मिठास से भरी लगती है मनमुटाव नित्यप्रति की बात हो जाये तो समय बिताना गुलाब के कांटो सा लगता है और जिंदगी जामुन की तरह खट्टी विवाह हानिकारक नहीं है, केवल वह कमजोरी हानिकारक है, जो इस जीवन में अधिकार जमा लेती है विवाह प्रेम की वह व्यवस्था है जो हमारी शारिरिक, मानसिक आध्यात्मिक शक्तियों के विकास का द्योतक है। विवाह एक आवश्यक बुराई है, मन की अच्छाई है, यथार्थ के धरातल पर आपसी समझौता ही जीवन की सच्चाई है। विवाह की लोकप्रियता इसी में है कि वह सबसे अधिक आनंद का,सबसे अधिक अवसर से मेल कराता है।
शादी--विवाह-- ब्याह--गठबंधन यह सब आकाश में पहले से बन कर आते हैं!इसी से पूर्णता आती है, बस जरूरत है परस्पर एक दूसरे को अधूरा न समझने की,न अधूरा साबित करने की! फिर देखिए आप कह उठेंगें, वाह विवाह! वाह विवाह! और चाहेंगे-"चट मंगनी, पट ब्याह"
-०-
पता: 
राज कुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)


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ये कैसा ख्वाब है (कविता) - सुमति श्रीवास्तव


ये कैसा ख्वाब है
(कविता)
सवाल बना हर जवाब है,
ये कैसा ख्वाब है।
पहरेदारों ने साथ चोरों का दिया ,
खुद ही रुसवा सरे बाजार किया ।
अपने हाथों कत्ल तीमारदारों नें,
क्या करे फरियाद खिदमतगारों में।
काफिर ,जब बन बैठा नवाब है।
ये कैसा ख्वाब है।।।

आज मंजिलें ढूँढ़ती खुद राहों को,
हँसी छुपाती जल्लाद की गुनाहों को।
हरमद पेशोपेश में है वक्त ,
नन्ही चिडि़या के पहरे है सख्त ।
सय्याद का अपना रुआब है।
ये कैसा ख्वाब है।।

है चमन विरान,बागबाँ सो गया ,
पसरा पतझड़ सावन कहीं खो गया।
मसली पैरों से कलियाँ पुकारती ,
कहाँ है माली मेरा ,कहाँ छटा बहार की।
आने को यहाँ क्यों खिंजा बेताब है।।
ये कैसा ख्वाब है।।-०-
सुमति श्रीवास्तव 
जौनपुर (उत्तरप्रदेश)



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कल का सच (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

कल का सच
(लघुकथा)
मम्मी मै जा रही हूँ आपकी दवा लेती आऊँगी ,आप आज की खुराक ले लीजियेगा वही पर रखी है....।
मिन्नी ने बैग टांगते हुए कहा
और बाहर जाने लगी
"अरे बेटा मै ले लूँगी तुम अपना ध्यान रखना ।
स्कूटी धीरे चलाना..........
और हाँ बैंक होते हुए आंफिस जाना,
पिंकू की फीस जमा होगी आज..."......
"ओके मम्मा लव यू .......बाय बाय."....कहकर बाहर निकल गई.......
बाहर आकर स्कूटी स्टार्ट ही की थी कि पीछे से सासूमां हाथ में स्प्रे लेकर आई ............."अरे ये तेरा मिर्ची स्प्रे तो रह ही गया इसे तो बैग से बाहर निकाला ही मत कर बहु."......।
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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अंतरात्मा की पुकार अनसुनी ना करें (आलेख) - संजय कुमार सुमन

अंतरात्मा की पुकार अनसुनी ना करें
(आलेख)
खुद को जानने और समझने के लिए अपने अंदर की आवाज को अनसुना ना करें। जब तक आप खुद को ही अच्छे से नहीं जानेगें तो लोगों का सामना कैसे करेंगे। हमारे आसपास कई तरह के लोग होते हैं। कौन से लोग हमारे लिए अच्छे हैं और किन लोगों के साथ रहना हमें खतरे में डाल सकता है इसका निर्णय अपने अंदर की आवाज के जरिए करें। जब आपके मन किसी मुद्दे पर काफी सारे विचार आ रहें हो तो जरूरी नहीं कि आप अंदर ही अंदर इस समस्या से जूझते रहें। अगर आप इस मुद्दे पर अपने किसी खास से बात करना चाहते हैं तो बेहिचक जाकर उनसे दिल की बात कहें और इस पर खुल कर चर्चा करें। यह खास कोई भी हो सकता है आपका दोस्त, परिवार का कोई सदस्या, पार्टनर या कोच या मेंटर।किसी भी निर्णय को लेने के लिए आपके अंदर आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है। अगर आप अंदर डरे हुए और असहाय रहेगें तो आप अपनें अंदर की आवाज कभी नहीं सुन पाएंगे। खुद को अपने अंदर की आवाज को सुनने के लिए प्रेरित करें। इससे आप जानेंगे कि आप सच में क्या चाहते हैं और उन्हें किस प्रकार पाना चाहते हैं।मनुष्य जब भी कोई गलत काम करने के बारे में सोचता है तब कोई अज्ञात संकेत उसे एक-बार रोकने की कोशिश जरूर करता है। हम चाहें उस संकेत को मानें या नहीं, वह बार-बार हमें चेतावनी भरे संकेत देता रहता है। लगभग सभी के जीवन में ऐसी अनुभूति होती है। इस प्रकार के अदृश्य संकेत हमें हमारा अंतर्ज्ञान देता है। तो ये हम पर है कि हम अपने अंतर्मन की आवाज सुने या नहीं। लेकिन जो ये आवाज सुनता है, बेहतर जीवन जी पाता है।अपने मन की सुनें और फिर उसकी बतायी राह पर चलें। आपको कामयाबी जरूर मिलेगी। लेकिन, आप अगर बार-बार अपने मन की आवाज को अनसुना करेंगे, तो फिर आपके हिस्‍से में नाकामी और पतन ही आएगा।दरअसल मन तो मन है, उसमें विचारों का बहना हमेशा जारी रहता है और लगातार चलता भी रहता है। लेकिन अंतर्ज्ञान की मदद से इन विचारों में से स्वयं के व्यक्तित्व और स्वभाव के अनुरूप क्या ठीक हो सकता है, इसका चयन करना आवश्यक है। आइए एक कहानी के माध्यम से जानें खुद को समझनें और अंदर की आवाज को सुनने के तरीकों के बारे में -

एक बार, एक गांव का मुखिया भगवान बुद्ध के पास आया। मुखिया ने पूछा, 'क्या बुद्ध सभी जीवों के प्रति करुणा भाव रखते हैं?' बुद्ध ने कहा, 'हां।' मुखिया ने आगे पूछा, 'क्या बुद्ध अपनी संपूर्ण शिक्षा कुछ लोगों को देते हैं, औरों को नहीं?'

इसका उत्तर देने के लिए बुद्ध ने एक दृष्टांत बताया और कहा, चलो हम इसको किसान के उदाहरण से समझते हैं। मान लो एक किसान के पास तीन अलग-अलग मिट्टी के खेत हैं। एक खेत की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। दूसरे खेत की मिट्टी सामान्य है। तीसरे खेत की मिट्टी खराब है, जिसमें ज्यादा कुछ नहीं उग सकता है। मान लो किसान खेत में बीज बोना चाहता है। तुम्हारे ख्याल से कौन से खेत में वह उन्हें बोएगा?'

गांव के मुखिया ने उत्तर दिया, 'वह सबसे पहले उन्हें उपजाऊ मिट्टी में बोएगा। उस खेत को भर लेने के बाद, वह उस खेत में बीज डालना शुरु करेगा, जिसकी मिट्टी सामान्य है। जो खेत बंजर है, हो सकता है उसमें वह बीज बोए या न बोए। उन बीजों को नष्ट करने की बजाय, वह उनका प्रयोग जानवरों के चारे में कर सकता है।'

भगवान बुद्ध ने समझाया, 'आध्यात्मिक शिक्षाओं के साथ भी ऐसा ही है। जो शिष्य मठवासी (उवदा) बनना चाह रहे हैं, जो सच की तलाश में हैं, वे उपजाऊ जमीन के जैसे हैं। उनको संपूर्ण शिक्षा दी जाती है। वे सभी साधनाओं को और जागृति के मार्ग को पूर्ण रूप से सीख लेते हैं। मैं उन्हें पूरी शिक्षा देता हूं क्योंकि वे ऐसा ही चाहते हैं।

बुद्ध ने आगे कहा, 'आम लोग सामान्य जमीन के जैसे हैं। वे भी शिष्य हैं पर वे मठवासियों के जैसे अपनी पूरी जिंदगी शिक्षाओं के लिए समर्पित नहीं करना चाहते हैं। पर आम लोगों को भी मैं पूरी आध्यात्मिक शिक्षाएं देता हूं। इस पर गांव का मुखिया अचंभित हुआ और बोला, 'आप उन लोगों को अपनी शिक्षाएं क्यों देते हो जो सुनने को तैयार नहीं हैं? क्या वह बर्बादी नहीं हैं?'

भगवान बुद्ध ने इसका उत्तर दिया, 'अगर किसी एक दिन वे शिक्षा का एक भी वाक्य समझ लेंगे और उसे दिल में उतार लेंगे, तो उससे उन्हें लंबे समय तक खुशी और आशीष प्राप्त होंगे।' इस प्रकार मुखिया को समझ आया कि भगवान बुद्ध पूरी दुनिया को अपनी शिक्षाएं देने के लिए आए थे, चाहे वे सभी उसके लिए तैयार थे या नहीं, क्योंकि एक दिन वे तैयार हो जाएंगे।

हम भी इस किस्से से बहुत कुछ सीख सकते हैं। क्या हम उपजाऊ मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं, सामान्य मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं या बंजर मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं?

हमारी आत्मा पुकार रही है कि हम उसके विकास के लिए मिट्टी तैयार करें। आत्मा चाहती है कि हम उपजाऊ मिट्टी के जैसे बन जाएं ताकि आत्मा विकसित होकर फलदार वृक्ष बन जाए, जो सबको छाया और फल दे।

हम एक ऐसा खेत जोतें, जो उत्कृष्ट हो। ऐसी मिट्टी तैयार करें, जिसमें आत्मा फल-फूल सके। आत्मा के लिए सर्वोत्तम मिट्टी वह है जो प्रेम, नम्रता, सच्चाई, पवित्रता और नि:स्वार्थ भाव से ओत-प्रोत हो और जिसे आंतरिक ज्योति पर ध्यान-अयास करके जोता गया हो। ऐसी मिट्टी में संतों का संपूर्ण विवेक फलेगा-फूलेगा और इससे हम भी जागृत हो सकते हैं।

प्रत्येक मनुष्य की आत्मा ईश्वर का स्वरूप है। वह गलत कार्य से रोकती है। व्यक्ति अगर किसी कार्य के पूर्व अंतरात्मा की आवाज सुने तो वह सही-गलत का निर्णय सुना देती है। अच्छे-बुरे, नीति-अनीति, न्याय-अन्याय और धर्म-अधर्म में अन्तर सबको समझ आता है। लेकिन बुद्धि कुतर्क करके आत्मा की आवाज दबा देती है, जिसे मनुष्य अपनी चतुराई समझता है। सोना एक धातु है। उससे आप चाहे जो आभूषण बना लें उसके मूल में सोना ही रहेगा। बदलाव केवल स्वरूप का होगा सत्ता का नहीं।हाल के दिनों में भारतीय राजनीति के भीतर अंतरात्मा की आवाज़ पर एक नए सिरे से बहस शुरू हुई है. जो नेता कल तक राजनीतिक गुनाहों की सारी सीमाओं को लांघ चुके थे आज वो एक दूसरे को अंतरात्मा की आवाज सुनने की सलाह दे रहे हैं. इसकी शुरुआत कर्नाटक विधानसभा में येद्दुरपा ने अपने विदाई भाषण में की और उसके बाद देश के सभी नेता अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनने के लिए तमाम तरह के नुस्खे खोजने लगे।

जो अंतरात्मा की पुकार सुनता है व जो अंतर्द्वंद्वों की अनुभूति करता है वही सफल होता है।मनुष्य का विवेक उसकी बुद्धि,उसका हृदय यह सभी इस संसार रुपी क्षीर सागर के मंथन में लगे हुए हैं। दीर्घ काल तक मथने के बाद उसमें से मक्खन निकलता हैं और यह मक्खन है भगवान् ।हृदयवान व्यक्ति मक्खन पा लेता है और कोरे बुद्धिमानों के लिए सिर्फ छाछ बच जाती है। यदि दूसरों को सिखलाना हो तो बहुत सी विद्वत्ता और बुद्धि की आवश्यकता होगी , पर आत्मानुभूति के लिए यह आवश्यक नहीं है। क्या हम शुद्ध हैं ? क्या हम पवित्र हैं ? यदि शुद्ध हैं तो परमेश्वर को पायेंगे। जिनका हृदय शुद्ध है वे धन्य हैं क्योंकि उन्हें परमात्मा की प्राप्ति अवश्य ही होगी पर यदि हम शुद्ध नहीं हैं फिर चाहे दुनिया के सारे विज्ञान ही हमें मालूम क्यों न हो,उसका कुछ भी उपयोग न होगा।आत्मा की अनुभूति मानव जीवन में ही सरलता व सुगमता से चेतन (तत्व) का अनुभव ज्ञान लाभ कर सकते हैं केवल हमें गुहार लगाने की देर है अर्थात सच्चे मन से,सरल ह्रदय से उनका दर्शन संभव है।मानव जीवन का लक्ष्य क्षणिक सुख प्राप्त करना नहीं है,स्थायी शांति और चिर-स्थायी आनंद तभी संभव है जब हमें अनंत की अनुभूति हो तथा इस तथ्य की अनुभूति हो की अनंत ईश्वर ही हमारा वास्तविक स्वरुप है ।
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संजय कुमार सुमन
मधेपुरा (बिहार)
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