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Tuesday, 25 February 2020

✍🏻 एक कबीरा आता है... (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान

✍🏻 एक कबीरा आता है...
(कविता)
रामानंदी पारस छू के,
वो क्या कुछ कर जाता है...
जन्म जुलाहे के घर ले कर,
वो कबीर बन जाता है।

तपकर स्वर्ण बना वह लोहा,
जग को राह दिखाता है...
सामाजिक पाखण्ड वाद को,
शीशा वो दिखलाता है।

सब धर्मो को आदर देता,
परम ज्ञान बतलाता है...
ढोंगी हिन्दू हो या मुस्लिम,
सच्ची राह बताता है।

धर्म एक ही राह है निर्गुण,
ब्रह्म भाव बतलाता है...
गहन स्वरूप तत्वदर्शन का,
एकाकार बताता है।

मानवता का पाठ सिखाकर,
आत्म प्रेम दर्शाता है...
देश रहे खुशहाल हमेशा,
परम ज्ञान बतलाता है।

मंदिर-मस्जिद क्या है प्यारे,
प्रेम ज्ञान का भण्डारा...
एक रचा रब ने मानव तन,
रेजा बुनते गाता है।

शीलवंत ही शील चुराये,
ढोंगी धर्म बताता है..
ध्यानी ,कपटी,,लम्पट होकर,
सदाचार सिखलाता है।

गहरे में जो गोत लगाता,
हंसा मोती पाता है...
सद्कर्मो की वर्षा करने,

एक कबीरा आता है।
-०-
गोविन्द सिंह चौहान
राजसमन्द (राजस्थान)


-०-

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प्यार तुम्हारा (कविता) - प्रभजोत कौर

प्यार तुम्हारा
(कविता)
एहसास कभी मरा नहीं करते
रूहों के रिश्ते कभी टूटा नहीं करते
तो क्यों करें हम मिलने बिछड़ने की बातें
हम भेजेंगे तुम्हें फूल हर रोज
देख कर बस तुम मुस्कुरा देना
मेरे दर्द नहीं मिटते दवाओं से
तुम दुआ बनके
मेरे जख्मों पे मरहम लगा देना
यह दुनिया के रिश्ते रास नहीं आते मुझे
तुम बनके "खामोश फरिश्ता"
मेरे दिल की दुनिया बसा देना ।
-०-
पता:
प्रभजोत कौर
मोहाली (पंजाब)



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करो दिल का धन्यवाद (कविता) - देवकरण गंडास 'अरविन्द'

करो दिल का धन्यवाद
(कविता)
जमाने की चारदीवारी में कैद हो गए हैं हम भले ही
लेकिन दिल के अरमान परिंदे की तरह हैं आज़ाद।
भले ही उजड़ गई हैं बस्तियां जमाने के आंधियों में
मगर दिल की बस्ती रह गई है सदा सर्वदा आबाद।

बहुत कुचक्र चलाए जमाने ने आशिकों के खिलाफ
वो नहीं जानते इश्क़ के आशियाने होते नहीं बर्बाद।

भले नफ़रत की जोत जला लो, अंगारों से जला दो
प्यार की दो बूंदे कर देंगी निर्जन उपवन को शाबाद।

इश्क़ ख़ुदा की नेमत प्यारे, इश्क़ करो तुम अरविन्द
इश्क़ ही जोड़ेगा जगत को, करो इश्क़ का धन्यवाद।
-०-
पता:
देवकरण गंडास 'अरविन्द'
चुरू (राजस्थान)
-०-


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रंग... (कविता) - सत्यम भारती

रंग...
(कविता)
स्वभाव आकाश का,
काया गिरगिट की,
आंदोलित लहरें समुद्र की,
मिज़ाज मौसम का,
केंचुल साँप का,
बदलता है- 'रंग'
एक निश्चित समय पर;
मनुष्य इनसे कहीं ज्यादा
बदलने लगा है-' रंग '
पल-प्रतिपल-हर-क्षण
रंग स्वभाव का सूचक है ;
रंग जीवन का गूढ़ रहस्य है ।
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

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भोर (कविता) - रीना गोयल

भोर
(कविता)
महाशृङ्गार छन्द रचना
छटीं है धुंध चन्द्रमा अस्त,स्वर्णिम किरणों का उजियार ।
तिमिर के अश्व हुए हैं पस्त ,उठो अब जागो कृष्ण मुरार।।
बरसती प्रेम सुधा चहुँ ओर ,नवल ऊर्जा का हृद संचार ।
उदित दिनकर की मधुरिम भोर ,सरित की धवल बही रस धार ।।

क्षितिज में प्राची का अरुणाभ,लालिमा बिखर रही हर छोर ।
विभा का सकल धुला विमलाभ,तरुणता बधीं प्रीत की डोर ।।
प्रकृति के अधरों पर मुस्कान ,धरा के आंचल में आनन्द ।
शाख पर विहग करें मृदु गान ,पवन भी सुरभित बहती मन्द ।।
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

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