✍🏻 एक कबीरा आता है...
(कविता)
१
रामानंदी पारस छू के,
वो क्या कुछ कर जाता है...
जन्म जुलाहे के घर ले कर,
वो कबीर बन जाता है।
तपकर स्वर्ण बना वह लोहा,
जग को राह दिखाता है...
सामाजिक पाखण्ड वाद को,
शीशा वो दिखलाता है।
सब धर्मो को आदर देता,
परम ज्ञान बतलाता है...
ढोंगी हिन्दू हो या मुस्लिम,
सच्ची राह बताता है।
धर्म एक ही राह है निर्गुण,
ब्रह्म भाव बतलाता है...
गहन स्वरूप तत्वदर्शन का,
एकाकार बताता है।
मानवता का पाठ सिखाकर,
आत्म प्रेम दर्शाता है...
देश रहे खुशहाल हमेशा,
परम ज्ञान बतलाता है।
मंदिर-मस्जिद क्या है प्यारे,
प्रेम ज्ञान का भण्डारा...
एक रचा रब ने मानव तन,
रेजा बुनते गाता है।
शीलवंत ही शील चुराये,
ढोंगी धर्म बताता है..
ध्यानी ,कपटी,,लम्पट होकर,
सदाचार सिखलाता है।
गहरे में जो गोत लगाता,
हंसा मोती पाता है...
सद्कर्मो की वर्षा करने,
एक कबीरा आता है।
-०-
गोविन्द सिंह चौहानराजसमन्द (राजस्थान)