करो दिल का धन्यवाद
(कविता)
जमाने की चारदीवारी में कैद हो गए हैं हम भले ही
लेकिन दिल के अरमान परिंदे की तरह हैं आज़ाद।
लेकिन दिल के अरमान परिंदे की तरह हैं आज़ाद।
भले ही उजड़ गई हैं बस्तियां जमाने के आंधियों में
मगर दिल की बस्ती रह गई है सदा सर्वदा आबाद।
बहुत कुचक्र चलाए जमाने ने आशिकों के खिलाफ
वो नहीं जानते इश्क़ के आशियाने होते नहीं बर्बाद।
भले नफ़रत की जोत जला लो, अंगारों से जला दो
प्यार की दो बूंदे कर देंगी निर्जन उपवन को शाबाद।
इश्क़ ख़ुदा की नेमत प्यारे, इश्क़ करो तुम अरविन्द
इश्क़ ही जोड़ेगा जगत को, करो इश्क़ का धन्यवाद।
-०-
पता:
देवकरण गंडास 'अरविन्द'
चुरू (राजस्थान)
मगर दिल की बस्ती रह गई है सदा सर्वदा आबाद।
बहुत कुचक्र चलाए जमाने ने आशिकों के खिलाफ
वो नहीं जानते इश्क़ के आशियाने होते नहीं बर्बाद।
भले नफ़रत की जोत जला लो, अंगारों से जला दो
प्यार की दो बूंदे कर देंगी निर्जन उपवन को शाबाद।
इश्क़ ख़ुदा की नेमत प्यारे, इश्क़ करो तुम अरविन्द
इश्क़ ही जोड़ेगा जगत को, करो इश्क़ का धन्यवाद।
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पता:
देवकरण गंडास 'अरविन्द'
चुरू (राजस्थान)
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