(ग़ज़ल)
हो जख्म दिल में लाख मुस्कुराना चाहिए।
आंसू भी अगर आएं तो छुपाना चाहिए।।
कितना भी गम हो दर्द हो इस जिंदगी में पर।
अफसुर्दगी चेहरे में नहीं आना चाहिए।।
अपना तजुर्बा मैं बताता हूं सभी सुनो।
बिन सोचे समझे दिल नहीं लगाना चाहिए।।
गम का खजाना दिल के तहखाने में यूँ रखो।
जो सामने दुनिया के नहीं आना चाहिए।।
जब दर्द हद से बढ़ जाए छुपकर के रोने लेना।
कुछ जख्म दिल के दिल में ही दफनाना चाहिए।।
जिस दिल में वर्षों से मैं रोज आता जाता हूं।
अब मुझको भी लगता है नहीं जाना चाहिए।।
शायद अब हो चुका है इख्तियार गैर का।
अब मुझको उनपे हक नहीं जताना चाहिए।।
हम तो नुमाइंदे हैं मोहब्बत के 'रघुवंशी'।
हमें प्यार दो हमको नहीं खजाना चाहिए।।
-०-