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Wednesday, 27 November 2019

दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई (व्यंग्य) - संदीप सृजन

दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई

(व्यंग्य)

दिवाली वैसे तो खुशी का त्योहार है, हर कोई चाहता है की उसके जीवन में दिवाली आए पर कुछ लोगो को लगता है कि भगवान करे इस बार दिवाली नहीं आए क्योंकि दिवाली आने के पहले ही उनको टेंशन शुरू हो जाती है और दिवाली के बाद तो उनका जीना हराम हो जाता है। उनने उधार किराना, राशन देने वाले को, दूध वाले को, काम वाले को, यहॉ तक की अपनी पत्नी को, बच्चों को और हर किसी को बस यही कहा है कि दिवाली बाद करेंगे। बेचारे दिवाली बाद के कामों की लिस्ट बनाने लगे तो होली आ जाए पर लिस्ट पूरी नही हो।

दिवाली के बाद क्या-क्या करना है,करने वाले कामो की श्रंखला इतनी लंबी है कि चार जन्म इस धरा पर वो ले तो भी पूरी नहीं होगी। दिवाली नहीं हुई तब तक तो एक आड़ थी की दिवाली हो जाने दो फिर करते है । न जाने कितने वायदे दिवाली की आड़ में धक रहे थे। जिनको पूरा करने का समय भगवान करे कभी न आए। पर अब तो ये दिवाली भी गई मतलब अब बहाना बनाने के लिए होली से पहले कोई त्योहार नहीं और कुछ बहाने ऐसे होते है जो केवल दिवाली से जुड़े होते है उनको होली के लिए टाल नहीं सकते। 

सालभर राशन किराना उधार देने वाला या वक्त जरुरत नगद मदद करने वाला दिवाली के बाद कुछ दिन और ज्यादा से ज्यादा देव दिवाली तक मन मार कर नही मांगेगा पर फिर तो मांगेगा ही और कोई बहाना भी उनके पास नहीं होगा। या तो करार हो गया चुकारा करो या मुंह छुपाओ और कोई इलाज नहीं। क्योंकि देने वाल जानता है कि दिवाली पर नहीं मिला तो अगली दिवाली तक इंतजार करना पड़ेगा। और इंताजार का एक पल भी दिनों के समान होता है,वे और हम सब जानते है।

उनकी सेहत की एक मात्र शुभ चिंतक याने उनकी धर्मपत्नी का सुबह घुमने जाने के लिए किया जाने वाला तगादा,जो उनके फेसबुक और व्हॉटसएप चलाते हुए दिनभर सोफे पर पड़े रहने के कारण बढ़ी तोंद को कम करने के लिए होता है,शुरु हो गया। शायद उनकी तोंद कम करने से ज्यादा घर के सुबह के काम शांति पूर्वक कर सके इसका आग्रह भी होता है सुबह घुमने के कठोर आग्रह में। ये काम बिना किसी ना नुकुर के दिवाली बाद शुरु हो गया। क्योकि दिवाली के पहले से ही रेड अलर्ट इस मामले में जारी कर दिया गया था और भाई दूज के एक दिन पहले से ही अपने पीहर वालो के सामने उनको बेइज्जत नहीं करने और उनके सम्मान के इरादे से सचेत कर दिया गया था। तथा धमकी के साथ सुबह 5 बजे का अलार्म लगा दिया जा रहा है। वे भी घरवाली की मनुहार और अपनी तोंद के सामने नत मस्तक होकर मन मार कर घुमने का संकल्प ले कर घर से निकल जाते है। कुछ घुमना, कुछ घुमाना हो जाता है सुबह-सुबह, पर नहीं मिलता है तन-मन को चैन कारण दिनभर याद आते है दिवाली बाद के इकरार और और उनके पुरे करने के लिए क्या जुगाड़ करना है। कई बार लगता है दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई ।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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मृत्यु (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


मृत्यु
(कविता)
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।

निंदाओं के बीच खड़ी है
कब से काया मेरी।
सच्ची जग की हंसीं रही है
झूठी माया मेरी।
बस सांसों का आना-जाना
मुझको खींचें पीछे।
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।

कौन चला है कब चलता है?
भला किसी के साथ।
अन्त निकट जब आता है तो।
मलते रहते हाथ।
अपने बाहु बल पर फिर क्यों?
दुनिया से तू खीझे।
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।

टाल रहे हो अभी वक्त को
फिर टालेगा वक्त।
देह शून्य जब हो जायेगी
जम जायेगा रक्त।
किसके आगे भाग सकोगे
कौन रहेगा पीछे?
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
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सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
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राजा बेटा (लघुकथा) - श्रीमती रश्मि नायर

राजा बेटा
(लघुकथा)
ठंडीके दिन, शिमला की सर्दी चारोतरफ सफेद बर्फ हल्कीसी चादर बिछी थी । आज स्कुलका आखरी दिन था। कलसे क्रीस्मसकी छुट्टीयाँ शुरु होनेवाली थी ।शामके समय टिंकुका आखरी पिरियड खत्म होनेके बाद स्कुल छुटनेकी घंटी बजी । सब बच्चे घर जानेकेलिये स्कूलके गेटके सामने आ गये । कुछ बच्चे स्कूलकी बसमें अपने–अपने घर चले गये । टिंकूका रोजका रिक्शावाला बीमार होनेकी वजह उसे लेने नहीं आ पाया । माता-पिता दोनों नोकरीके कारण उसे लेने नहीं आ पाये । घरमें उसकी बूढी दादी माँ थी पर वो उसे लेने नहीं आ पाई क्योंकि उसकी नजर कमजोर हो गई थी । टिंकू रिक्क्षा रोकनेकी कोशिशमें था । मगर किसीने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया । कई ऑटोरिक्क्षावाले ऑटो खाली होनेके बावजूद भी बिना रुके चले गए। शायद यह सोचकर कि छोटा बच्चा है उसकेपास भाडा देनेकेलिए पैसे नहीं हुए तो और उसकी माँ ने पैसे देनेसे इंकार कर दिया तो उनको नुकासान होगा । एक तो ठंडीका मौसम उपरसे साँय साँय करती ठंडी हवाये चल रही थी स्वेटर पहननेके बावजूदभी ठंडसे कपकपी सी हो रही थी । टिंकु परेशानसा हो गया था । पर वहीं खडा वो ऑटोका इंतजार कर रहा था ।

अचानक एक ऑटोरिक्षा उसके सामने आकर रुकी उसने देखा एक वृध्द ड्रायवर था । टिंकुने अपने घरका पता और इलाकेका नाम बताया वह राजी हो गया। वह ऑटोमें बैठ गया। उसे बहुत राहत महसूस हुई। ऐसा लगा जेसे संताक्लॉज ही रिक्षावाला ड्राईवरके भेसमें उसकी मदत करने आया हो । उसने ऑटोका मीटर देखा तो मीटर 1रुपया बता रहा था । ऑटोरिक्षा चल पडी । टिंकु हैरान था कि कल ही वह अपनी मम्मीके साथ गया था तो सात रुपया था और आज एक रुपया । ऐसे कैसे हुआ? । घर के सामने रिक्षा रुकनेपर उसने पूरे सात रुपये देकर निकल आया । 

वह घर आकर अपनी मम्मीके दफ्तरमें फोन किया और सारा किस्सा बताया । उसकी मम्मीने कहा - "नहीं बेटा,तूने ठीकसे देखा नहीं होगा ? सात रुपये ही होंगे " टिंकुने कहा "नहीं मम्मी मैंने ठीकसे देखा था एक रुपया ही दिखा रहा था । घर पहुँचने पर भी उसका मीटर एक रुपया ही दिखा रहा था । उसको मैनें पूछा तो उसने कहा -"रहने दो बेटा, तुम अभी छोटे हो " तो मैंने उससे कहा" नहीं, दादाजी आपका नुकसान होगा ।"और मैंने कलके हिसाबसे पूरे पैसे दिये। " टिंकुने कहा । 

टिंकु की मम्मीने खुश होकर कहा - " वाह! मेरा राजाबेटा, भले दिलवाला है । वो वृद्ध ड्राईवर तुम्हें बहुत दुआए देगा " कहकर उसने रिसीवर नीचे रख दिया ।
-०-
पता:
श्रीमती रश्मि नायर
ठाणे (महाराष्ट्र)

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अशोक आनन के हाइकु (हाइकु) - अशोक आनन


अशोक आनन के हाइकु
(हाइकु)

पेट पे लात
मारकर वे बोले -
शुभ -प्रभात ।
*****
पूछो न प्यारे
कोल्हू के बैलों जैसे -
हाल हमारे ।
‌‌ *****
पेट ने किया -
उम्र भर लाचार ।
जीवन - सार ।
*****
पेट न होता
शब्दकोश में शब्द -
'भूख़' न होता ।
*****
नाचतीं रहीं -
तवे पर रोटियां ।
पेट के लिए ।
*****
आंख न लगी -
लौट गए सपने ।
पेट था खाली ।
*****
मत देखिए-
भूखे मर जाओगे ‌।
रोटी में धर्म ।
*****
पेट के ठीए ।
भूख के , भूख द्वारा
भूख के लिए ।
*****
रांधती रही -
भूख सारी उमर ।
पेट न भरा ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

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हिन्दी वर्णमाला के स्वरों की ग़ज़ल (ग़ज़ल) - डॉ० अशोक ‘गुलशन’


हिन्दी वर्णमाला के स्वरों की गज़ल
(ग़ज़ल)

मन-चैन से रहें सभी का हम सम्मान करें,
ओ तम में दीप जलाकर जग उजियार करें|

स धरती के रावण का सब मिलकर नाश करें,
श वन्दना कर असुरों का हम संहार करें | 

नको अपना मीत बना लें जो हैं दूर खड़े,
ऊँच-नीच का बन्धन तोड़ें सबसे प्यार करें|

क रहें हम नेक बनें हम नारा यही रहे,
ब मिटाकर हृदय-हृदय से मन को साफ़ करें|

ज-शौर्य हो प्रभा-कान्ति हो ऐसा रूप दिखे,
रों के हित जियें सभी हम यह अरदास करें |

अंग लगाकर दीन-दुखी के दुःख को दूर करें,
अः से आह मिटाकर सबका हम कल्याण करें|

 से मतलब रखें और हम सारे अक्षर जानें,
 से भी कुछ रहे वास्ता सबका पाठ करें|

 एक स्वर है इसको भी आओ पढ़ें-पढ़ायें,
 में भी है मन्त्र छुपा इसका भी मान करें|
-०-
संपर्क 
डॉ० अशोक ‘गुलशन’
बहराइच (उत्तरप्रदेश)
-०-



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