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Wednesday, 25 March 2020

कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप (आलेख) - अमित डोगरा


कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप

(आलेख)
मध्य चीन के वुहान शहर में 2019 के मध्य दिसंबर से एक नए किस्म के कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत हुई है ।एक अनुमान के अनुसार यह देखा गया कि बहुत से लोगों को बिना किसी कारण निमोनिया होने लगा और पीड़ित लोगों में से अधिकतर लोग हुआन सीफूड मार्केट में मछली भेजते हैं तथा जीवित पशुओं का भी व्यापार करते हैं ।20 जनवरी 2020 को चीनी प्रीमियर लीग केकियांग ने नोबेल कोरोना वायरस के कारण फैलने वाली निमोनिया बीमारी को नियंत्रित और रोकने के लिए प्रभावी और निर्णायक प्रयास करने का आग्रह किया है। इस वायरस से चीन में मानव से मानव संचरण के अधिक प्रमाण है । इसके अतिरिक्त ताइवान, दक्षिण कोरिया ,थाईलैंड, मकाऊ,सिंगापुर नाम मे भी इस वायरस की पुष्टि के मामले सामने आए हैं ।इस वायरस में पीड़ित व्यक्ति में बुखार ,खांसी, सांस की तकलीफ और दस्त हो सकते हैं और मामूली से बहुत गंभीर भी हो सकते हैं ।2019 -n cov के प्रसार को रोकने के लिए कम से कम 20 सेकंड के लिए साबुन और पानी से हाथ धोएं, खासकर बाथरूम जाने के बाद, खाने से पहले और नाक बहने के बाद, खांसने या छीकने के बाद भी। यदि साबुन और पानी आसानी से उपलब्ध नहीं है तो अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर का उपयोग भी कर सकते हैं। 2019 -n cov होने के संदेह वाले रोगियों के साथ सीधी बातचीत करने वाली हेल्थ केयर पेशेवरों को सलाह दी जाती है ।जनसाधारण से अनुरोध है कि उनकी अपनी सुरक्षा उनके अपने हाथों में है इसलिए पूरी सावधानी से प्रत्येक वस्तु का प्रयोग करें ।

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पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

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आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग १ ) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

आखिर वह कौन थी?

(यात्रा वृत्तांत - भाग १ )
आखिर वह कौन थी?
शैर कर दुनियाँ की गाफिल,
जिंदगानी फिर कहाँ।
जिंदगी भी गर रही,
तो नौजवानी फिर कहाँ।
किसी अग्यात शायर का कथन याद दिलाता है कि जब तक जिन्दगी और जवानी है , शैर कर वरना जिन्दगी और जवानी बार बार नहीं मिलते।
कभी कभी व्यक्ति जब अत्यंत भावुक होताहै, तब उन भावनात्मक क्षणों में लिए गए निर्णय बड़े आह्लादकारी सिद्ध होते हैं, हमारी भारतीय सांसकृतिक परंपराओं में तीर्थाटन एवं त्योहारों का विशिष्ट में महत्व है, क्योंकि उन परंपरा के निर्वहन तथा तीर्थयात्राओं से
स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ जीवन को एक नई चेतना, नया उत्साह, नई ऊर्जा मिलती है। मेरी तीर्थ यात्रा के दौरान घटी एक घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वो हाथ किसके थे जो जीवन मृत्यु के बीच झूल रहे मुझ अकिंचन को सहारा देने आगे बढ़े थे, मेरे साथ साथ आप भी सोचें
इसी लिए आप सभी को इस सत्य घटित घटना से परिचित कराना चाहता हूं।
जो मेरी वैष्णोंधाम तीर्थ यात्रा के दौर में घटित हुई थी जो आज भी हृदय में सिहरन पैदा करतीहै।
कुछ समय पहले मेरी पत्नी कुछ रिस्ते वालों के साथ वैष्णोंधाम तीर्थ यात्रा में गई थी, उन्ही के द्वारा माँ वैष्णवी की महिमा तथा हिमालय की प्राकृतिक छटा का वर्णन सुनतें सुनते मेंरे मन में भी मां के दर्शन की तीव्र अभिलाषा जाग उठी, और मैं भी मां के दरशन हेतु लालायित रहने लगा, और मेरे मन की अभिलाषा तीव्र होती गइ,
कुछ समय बाद वह समय भी आया जब माँ ने मुझे बुलाया,
मुझे आज भी याद है उस शुभ दिन की शुभ घड़ी एवम् शुभ घटना जिसने मेरा जीवन दर्शन ही बदल दिया।
दिनांक 2फरवरी सन् 2013की वह घटना जब हम मित्रों के प्रस्ताव पर तीर्थययात्रा के लिए घर से चले थे।
हम लोग रेल तथा बस से यात्रा करते हुए वाराणसी से दिल्ली के रास्ते जम्मू (कटरा) पहुंचे थे, वहाँ की प्राकृतिक छटायेंउचीं उंची पर्वत श्रृखलायें हरी-भरी घाटियाँ तीर्थयात्रियों को अपने मोह पाश में बांध रही थी। मेरा मन आह्लादित था, यात्री टोलियों के साथ जै माता दी के साथ गूंजता परिसर भक्ति मय वातावरण मेरे मन में माता वैष्णों के प्रति अगाध श्रद्धा के भावों का सृजन कर रहे थे, हृदय आत्म विभोर हो गया था।
दिन के लगभग 11•30बजेहमनेंअपनें मित्र के साथ अन्य यात्री टोलियों के साथ चढ़ाई सुरू किया,
सारी स्थितियां सामान्य थी,
चटख धूप खिली हुइ थी, वातावरण में बासन्ती एहसास घुला हुआ था, भक्तों का साथ जै माता दी के नारों नें मन केभीतर श्रद्धा और विश्वास जगा दिया था
यात्रा के दौरान जब मैं बूढ़े बिमार असहाय लोगों को भी जय माता दी के नारे के साथ धीरे धीरे चढाई करते देखता तो, माँ की महिमा के साथ यात्रियों के श्रद्धा भाव देख मेरा भावुकतापूर्ण मन व्याकुल हो उठता, आंखें छलछला उठती, कंठ अवरूद्ध हो जाता, कई कई बार ऐसा भी हुआ जब मैं भावुक पलों में फूट फूट रोया भी, जैसे तैसे चढ़ाई पूरी कर रात के 9•30बजेमैं माँ के मंदिर प्रांगण में पहुंचा था, उससमय आरती हो रही थी, माँ के नाम पे जै कारे लग रहे थे। कि अचानक मौसम नें पलटी मारी थी, तूफानी बादलों ने डेरा डाल दिया था।
अब तूफानी हवाओं ने कहर ढाना सुरू कर दिया था, जिसे जहाँ जगह मिली वही दुबक लिया था, हर वक्त लाखोंकी लगने वाली भीड़ छट गई थी, उस समय मैं तथा कुछ अन्य गिने चुने यात्री मां के दरशनों की हसरतों के साथ मां के दरवाजे को ताक रहे थे,
इसे माँ की कृपा कहें या
यात्रियों का नगण्य संख्या बल दर्शन का ऐसा अवसर पा मेरी आत्मा निहाल हो गई, मन तृप्त हो गया, उसमें अब कोई कामना शेष नहीं थी, न कुछ खोने का भय न कुछ पाने आस,।
पानी की तेज बौछारों और तेज हवाओं ने मौसम को ठंढ से भर दिया था, अब थका हारा तन सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहा था, और बिश्राम कक्ष में भोजन के पश्चात बेसुध हो लेट गया था,
सबेरे उठ दैनिक क्रिया के बाद हमने उस बिपरीत परिस्थिति में काल भैरव के दर्शन करने का दुस्साहस पूर्ण फैसला ले लिया था, जो माँ वैष्णोंधाम धाम से लगभग चार की०मी०उपर था। शर्द मौसम के कारण सदा भीड़ से भरा रहने वाला बाबा भैरव का दरबार आज खाली था,
कुल जमा 20-25यात्री ही थे, हम लोगो ने जैसे तैसे हांकते कांपते भीगते भैरव बाबा के दर्शन तो कर लिया,
लेकिन पर्वत चोटी की आखिरी उंचाई, ठंढी हवा का तीव्र वेग बादलों की सघनता काएहसास हमें अन्तरिक्ष यात्री होने का भ्रम पैदा कर रहे थे, धुन्ध के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था, दिल बैठा जा रहा था घबराहट हो रही थी, हमारे पैसे कपड़े तथा लगेज सब नीचे क्लाक रूम में ही जमा ह़ो गये थे, पास के सारे पैसे खत्म थे। हम उपर रूक नही सकते थे इसीलिए उन परिस्थितियों में ही नीचे उतरने का घातक निर्णय लेना पड़ा।
दिनांक 4---2---2013 को सबेरे सात बजे से नीचे उतरना प्रारंभ कर दिया था।
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क्रमशः ........... २० अप्रैल २०२० (आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग २ )
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पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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मेरे बच्चों (कविता) - डा. नीना छिब्बर

मेरे बच्चों 
(कविता)
मेरे बच्चों
आओ बैठो संग साथ
हसे ,खेले ,बोले मन की बात
जानों कुछ मेरा अतीत,बतलाओ अपना आज
सुने,गुणें, समझे मिल कल और आज
कहाँ -कहाँ उलझे तुम ,कहाँ कब रूका मैं
वर्तमान और भूतकाल का अपना-अपना सच
पहचाने इतिहास ,भूगोल, समाज ,धर्म फिर से
कुछ नयी व्याख्याएँ,कुछ पुराने अनुभव से नया गढ़े।।
मेरे बच्चों
आओ बैठे संग -साथ
. ढूंढे फिर से ग्रंथों व कथाओं में छुपा ज्ञान -विज्ञान
अपनाए जो छूटा,टूटा पर था दृढ़ परखा विश्वास
पकाएं समय की आँच पर नये पुराने सत्य
लड़े भय, घुटन, अवसाद, नकरात्मकता से ड़ट कर
लाए फिर से घर, परिवार, कुटंब -कबिला पास
सीखे दिल की आवाज़ सुनने की वही कला
ना कोई पड़े अकेला ,निराश उदास ।।
मेरे बच्चों
आओ बैठे संग -साथ
हवा ,मिट्टी,पानी ,वाणी,रखे खरी- खरी
देश के पेड़, पर्वत , नदियाँ झरने नित बढ़ते जाएं
भूल द्वेष,दुराव, वैमनस्य, झगड़े ,धार्मिक उन्माद
माँगें सुख शांति, भाईचारा, वर्गहीन उन्नत समाज
समय -चक्र आगे बढ़ता, रोक सके ना कोय
. मैं भी सीखूँ ,तुम से नये समय की तकनीक
नशा, उपद्रव, आधुनिकता हैं ये झूठे फंदे
मन से सच्चे, हृदय से निर्मल बनो कर्म के पक्के।।
मेरे बच्चो
आओ बैठे संग -साथ
कल्पना के पंख फैलाओं, भरो इंद्र धनुषी रंग
हसे ,रोएं, दौड़े -भागें, गिरे -उठे सब साथ
अपनों के संग, अपनों के लिए ,अपनों के बीच
अपनत्व फैलाएं, विश्व बने हमारा घर
आतंक, हिंसा, मार -काट, युद्ध हैं विनाशकारी
प्रेम ,अहिंसा, करूणा, दया ,है सच्चा अवलंब।।
मेरे बच्चो ।।।
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डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

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■ इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे?■ (कविता) - अमन न्याती

■ इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे?■
(कविता)
उस महताब के खातिर रात हर रोज होती है,
बंद पड़े दरवाजे पर दस्तक हर रोज होती है,
वो खयाल है मेरे,उनसे अब बचोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?

हर रोज थोड़ा थोड़ा लिखता हूँ तुम्हे मैं,
समंदर है वो, जहाँ रोज दरिया बन बहता हूँ मैं,
दरिया को समंदर में मिलने से रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?

दूर कहीं है दिल, धड़कता फिर भी है,
शायद मिलने को मन, मचलता अब भी है,
ये दौर खयालो के अब तुम रोकोगी कैसे,
बोला था ना ! इतना जल्दी तुम मुझे भूलोगी कैसे ?
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पता :
अमन न्याती
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

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कसमें - वादें (कविता) - दीपिका कटरे

कसमें - वादें
(कविता)
कई कसमें , कई वादें ,
यूँ ऐसे तोड़ गए तुम।

तुम्हें जिस दिल में रखा था,
वहीँ दिल तोड़ गए तुम ।

किसी , और के खातिर,
मुझे रोता ,छोड़ गए तुम।

तुम्हें तो , हमदर्द समझा था,
बड़े खुदगर्ज, निकले तुम।

क्या कमी थी, मेरे प्रीत में,
एक बार तो ,कहते तुम।

तुम्हारी यादों का, वो वक़्त,
बड़ा ही सख़्त होता है।

तुम्हारी ही तरह, वो वक़्त भी,
बड़ा कम्बख़त होता है।
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पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

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इसी जन्म का हिसाब (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

इसी जन्म का हिसाब
(कविता)
जैसा करोगे तुम सवाल
वैसा जवाब होता है।

अच्छे बुरे कर्मों का वैसा
नामो खिताब होता है।।

भाग्य कर्म फल का चक्र
पूर्ण होता है यहीं पर।

इसी जन्म में करनी का
पूरा हिसाब होता है।।
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पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

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