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Wednesday, 25 March 2020

आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग १ ) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

आखिर वह कौन थी?

(यात्रा वृत्तांत - भाग १ )
आखिर वह कौन थी?
शैर कर दुनियाँ की गाफिल,
जिंदगानी फिर कहाँ।
जिंदगी भी गर रही,
तो नौजवानी फिर कहाँ।
किसी अग्यात शायर का कथन याद दिलाता है कि जब तक जिन्दगी और जवानी है , शैर कर वरना जिन्दगी और जवानी बार बार नहीं मिलते।
कभी कभी व्यक्ति जब अत्यंत भावुक होताहै, तब उन भावनात्मक क्षणों में लिए गए निर्णय बड़े आह्लादकारी सिद्ध होते हैं, हमारी भारतीय सांसकृतिक परंपराओं में तीर्थाटन एवं त्योहारों का विशिष्ट में महत्व है, क्योंकि उन परंपरा के निर्वहन तथा तीर्थयात्राओं से
स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ जीवन को एक नई चेतना, नया उत्साह, नई ऊर्जा मिलती है। मेरी तीर्थ यात्रा के दौरान घटी एक घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वो हाथ किसके थे जो जीवन मृत्यु के बीच झूल रहे मुझ अकिंचन को सहारा देने आगे बढ़े थे, मेरे साथ साथ आप भी सोचें
इसी लिए आप सभी को इस सत्य घटित घटना से परिचित कराना चाहता हूं।
जो मेरी वैष्णोंधाम तीर्थ यात्रा के दौर में घटित हुई थी जो आज भी हृदय में सिहरन पैदा करतीहै।
कुछ समय पहले मेरी पत्नी कुछ रिस्ते वालों के साथ वैष्णोंधाम तीर्थ यात्रा में गई थी, उन्ही के द्वारा माँ वैष्णवी की महिमा तथा हिमालय की प्राकृतिक छटा का वर्णन सुनतें सुनते मेंरे मन में भी मां के दर्शन की तीव्र अभिलाषा जाग उठी, और मैं भी मां के दरशन हेतु लालायित रहने लगा, और मेरे मन की अभिलाषा तीव्र होती गइ,
कुछ समय बाद वह समय भी आया जब माँ ने मुझे बुलाया,
मुझे आज भी याद है उस शुभ दिन की शुभ घड़ी एवम् शुभ घटना जिसने मेरा जीवन दर्शन ही बदल दिया।
दिनांक 2फरवरी सन् 2013की वह घटना जब हम मित्रों के प्रस्ताव पर तीर्थययात्रा के लिए घर से चले थे।
हम लोग रेल तथा बस से यात्रा करते हुए वाराणसी से दिल्ली के रास्ते जम्मू (कटरा) पहुंचे थे, वहाँ की प्राकृतिक छटायेंउचीं उंची पर्वत श्रृखलायें हरी-भरी घाटियाँ तीर्थयात्रियों को अपने मोह पाश में बांध रही थी। मेरा मन आह्लादित था, यात्री टोलियों के साथ जै माता दी के साथ गूंजता परिसर भक्ति मय वातावरण मेरे मन में माता वैष्णों के प्रति अगाध श्रद्धा के भावों का सृजन कर रहे थे, हृदय आत्म विभोर हो गया था।
दिन के लगभग 11•30बजेहमनेंअपनें मित्र के साथ अन्य यात्री टोलियों के साथ चढ़ाई सुरू किया,
सारी स्थितियां सामान्य थी,
चटख धूप खिली हुइ थी, वातावरण में बासन्ती एहसास घुला हुआ था, भक्तों का साथ जै माता दी के नारों नें मन केभीतर श्रद्धा और विश्वास जगा दिया था
यात्रा के दौरान जब मैं बूढ़े बिमार असहाय लोगों को भी जय माता दी के नारे के साथ धीरे धीरे चढाई करते देखता तो, माँ की महिमा के साथ यात्रियों के श्रद्धा भाव देख मेरा भावुकतापूर्ण मन व्याकुल हो उठता, आंखें छलछला उठती, कंठ अवरूद्ध हो जाता, कई कई बार ऐसा भी हुआ जब मैं भावुक पलों में फूट फूट रोया भी, जैसे तैसे चढ़ाई पूरी कर रात के 9•30बजेमैं माँ के मंदिर प्रांगण में पहुंचा था, उससमय आरती हो रही थी, माँ के नाम पे जै कारे लग रहे थे। कि अचानक मौसम नें पलटी मारी थी, तूफानी बादलों ने डेरा डाल दिया था।
अब तूफानी हवाओं ने कहर ढाना सुरू कर दिया था, जिसे जहाँ जगह मिली वही दुबक लिया था, हर वक्त लाखोंकी लगने वाली भीड़ छट गई थी, उस समय मैं तथा कुछ अन्य गिने चुने यात्री मां के दरशनों की हसरतों के साथ मां के दरवाजे को ताक रहे थे,
इसे माँ की कृपा कहें या
यात्रियों का नगण्य संख्या बल दर्शन का ऐसा अवसर पा मेरी आत्मा निहाल हो गई, मन तृप्त हो गया, उसमें अब कोई कामना शेष नहीं थी, न कुछ खोने का भय न कुछ पाने आस,।
पानी की तेज बौछारों और तेज हवाओं ने मौसम को ठंढ से भर दिया था, अब थका हारा तन सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहा था, और बिश्राम कक्ष में भोजन के पश्चात बेसुध हो लेट गया था,
सबेरे उठ दैनिक क्रिया के बाद हमने उस बिपरीत परिस्थिति में काल भैरव के दर्शन करने का दुस्साहस पूर्ण फैसला ले लिया था, जो माँ वैष्णोंधाम धाम से लगभग चार की०मी०उपर था। शर्द मौसम के कारण सदा भीड़ से भरा रहने वाला बाबा भैरव का दरबार आज खाली था,
कुल जमा 20-25यात्री ही थे, हम लोगो ने जैसे तैसे हांकते कांपते भीगते भैरव बाबा के दर्शन तो कर लिया,
लेकिन पर्वत चोटी की आखिरी उंचाई, ठंढी हवा का तीव्र वेग बादलों की सघनता काएहसास हमें अन्तरिक्ष यात्री होने का भ्रम पैदा कर रहे थे, धुन्ध के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था, दिल बैठा जा रहा था घबराहट हो रही थी, हमारे पैसे कपड़े तथा लगेज सब नीचे क्लाक रूम में ही जमा ह़ो गये थे, पास के सारे पैसे खत्म थे। हम उपर रूक नही सकते थे इसीलिए उन परिस्थितियों में ही नीचे उतरने का घातक निर्णय लेना पड़ा।
दिनांक 4---2---2013 को सबेरे सात बजे से नीचे उतरना प्रारंभ कर दिया था।
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क्रमशः ........... २० अप्रैल २०२० (आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग २ )
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पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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