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Friday, 28 February 2020

परीक्षा आई (बाल कविता) - राजीव डोगरा


परीक्षा आई
(बाल कविता)
परीक्षा आई परीक्षा आई
मन हमारा बड़ा घबराए।
कहीं हम फेल न हो जाए
पर एक थी चीकू रानी
पढ़ती थी कक्षा में हमारी।
थी भी वो बड़ी सयानी
परीक्षा आने पर भी
वो हंसती मुस्काती,
कक्षा में हमेशा प्रथम आती।
हमने भी अब मन में ठानी
और जाकर उस से
पूछी सारी कहानी।
बताओ हमें भी चीकू रानी
कैसी कक्षा में तुम प्रथम आती?
परीक्षा वाले दिन भी मुसकाती?
हंसती मुस्कुराती बोली चीकू रानी
स्कूल का काम मैं रोज करती
सुबह-शाम दोहराई भी करती।
इसीलिए मैं नहीं घबराती
और कक्षा भी में प्रथम आती हैं।
हमने भी अब मन में ठानी
रोज पढ़ेगे दिल लगा कर।
-०-
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-




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"छुटकारा हो बस्ते का " (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'



"छुटकारा हो बस्ते का "
(कविता)
भविष्य के जिन कंधों पर ,
भार सुरक्षित रहेगा देश का ।
उन्हीं नन्हें कंधों पर है क्यों,
भारी बोझ लदा बस्ते का ।।

अब इन नन्हें-नन्हें बच्चों के,
बचपन पर तरस कौन करे।
बाल मनोवैज्ञानिक भी सोचें।
कैसा हाल हो शिक्षा नीति का।।

किताबों के बोझ तले फिर,
दब जाता बच्चों का बचपन ।
बच्चों की दुनियाँ को भी,
मौका दो स्वच्छंद होने का।।

खेल-खेल में भी बच्चे सीखेंगे,
जीवन की सारी उपयोगी बातें।
स्कूल-ट्यूशन तक भारी बस्ता,
मौका दें प्रकृति संग विचरण का।।

बच्चे स्वयं करके कुछ सीखें,
ऐसी आशा रखें इन बच्चों से ।
बाल मन फन-फूड-फाईट से,
सपने संजोएं अपने जीवन का।।

अब बस्ता कैसे छोटा हो,
शिक्षाविद, मिल मंथन करें।
नन्हैं बच्चों का उपकार करें,
छुटकारा मिल जाए बस्ते का!!
-०-

मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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मनुष्य में भी ईश्वर (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

मनुष्य में भी ईश्वर
(कविता)
जिस दिन इंसान को इंसान में
इंसान नज़र आयेगा।

दूसरे के मान में ही अपना
सम्मान नज़र आयेगा।।

जब समझ लेगा मनुष्य कि सब
हैं एक ईश्वर की संतानें।

आदमी को आदमी में ही तब
भगवान नज़र आयेगा।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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सप्त भार्या (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


सप्त भार्या
(कविता)
दुनिया में बीवियों सात हैं
साथियों के नियति की बात हैं
शादी में हाथ से हाथ लेते ,
वे सदा पतियों के साथ ही हैं ।

वृक्षों और लताएं बन कर
वर्षा के द्वारा इसे पानी दे कर
खुशी से रहने का आसमान सा
मातृ, भगिनी, दासी, सखी,
बीवियाँ हैं चाँद की तरह ।।

पाप में जलती रहती हैं
रेगिस्तान की तरह ही हैं
चोर, वधक, स्वामी हैं नाम
नरक में मालिक होने की
शैतानें सी इन पत्नियों के ।।।
-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

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गुरु दक्षिणा (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

गुरु दक्षिणा
(लघुकथा)
तालियों की गड़गड़ाहट और आँसुओ ने हमेशा ही मजबूत किया है मुझे आज मेरी पुस्तक का विमोचन जो हो रहा था ।
कबसे सजाया ख्वाब आज हकीकत हो रहा था ।
मुख्य अतिथि जी ने पुस्तक के बारे मे बताना शुरू किया तो मै अतीत में खो गई ।जिन्दगी के मीठे घूंट तो जूस की तरह पी लियें जाते हैं , कड़वी दवाई से पल पीने में भले ही मुश्किल आती हैं पर सीख वही दे जाते हैं ऐसे ही किसी पल को मां से बांच बैठी तो
माँ ने याद दिलायी वो डायरी जिनमें बचपन से ही कुछ अनछुए पहलुओं को सँजोया करती थी बस शुरू हो गई मेरी अनवरत कलम यात्रा । "आज माँ तुम तो नही हो पर तुम्हें ही समर्पित हैं ये मेरी पहली पुस्तक
यादो के पुष्प समर्पित है तुम्हें मेरी पहली गुरु तो तुम ही हो ना ".........-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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