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Friday, 28 February 2020

गुरु दक्षिणा (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

गुरु दक्षिणा
(लघुकथा)
तालियों की गड़गड़ाहट और आँसुओ ने हमेशा ही मजबूत किया है मुझे आज मेरी पुस्तक का विमोचन जो हो रहा था ।
कबसे सजाया ख्वाब आज हकीकत हो रहा था ।
मुख्य अतिथि जी ने पुस्तक के बारे मे बताना शुरू किया तो मै अतीत में खो गई ।जिन्दगी के मीठे घूंट तो जूस की तरह पी लियें जाते हैं , कड़वी दवाई से पल पीने में भले ही मुश्किल आती हैं पर सीख वही दे जाते हैं ऐसे ही किसी पल को मां से बांच बैठी तो
माँ ने याद दिलायी वो डायरी जिनमें बचपन से ही कुछ अनछुए पहलुओं को सँजोया करती थी बस शुरू हो गई मेरी अनवरत कलम यात्रा । "आज माँ तुम तो नही हो पर तुम्हें ही समर्पित हैं ये मेरी पहली पुस्तक
यादो के पुष्प समर्पित है तुम्हें मेरी पहली गुरु तो तुम ही हो ना ".........-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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