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Monday 20 April 2020

साहस (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

साहस
(कविता) 
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा,
अपने संयम, सहनशक्ति को आजमाना होगा।

देश बन गया है असाध्य बीमारी का घर,
स्वयं पर अंकुश लगाकर देश बचाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

देश के हालात बद से बदतर हो रहे हैं,
हम सबको मिलकर अपना फ़र्ज निभाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

इस संकट में हिम्मत से काम लेने का प्रण करें,
अपनी सूझ-बूझ का परचम लहराना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

वीरभूमि है भारत, देशभक्ति से ओतप्रोत है,
अपने भक्ति भाव का साक्ष्य दिखाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।

अगर इस जहान में कहीं भी ईश्वर है साथियों,
मानव रूप में उसे धरती पर लाना होगा।
आज हम भारतीयों को साहस दिखाना होगा।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

-०-






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मौत से लड़ना क्या (कविता) - रूपेश कुमार

मौत से लड़ना क्या
(कविता)
मौत से लड़ना क्या ,
मौत तो एक बहाना है,
जिन्दगी के पन्नों में,
कब क्या हो जाए,
ये न तो मै जानता न तुम,

उल्फत न मिलती ,
जिवन के रुसवाईयो मे,
हर जहा हमे पता होता ,
जिवन के रह्नुमाईयो मे,
मौत से मुड़ना क्या,

आरजू , गुस्त्जू से ,
अनुभूतियाँ नही होती ,
हर रास्तों मे हमे,
कोई खूबियाँ नही मिलती,
क्या जाने कब मौत आ जाए ,

जिन्दगी की डगर पे ,
धूप की छाँव मे,
वर्षा की राहों मे,
मुद्ते बदल देती है,
मौत तो एक आकांक्षा है ,

मौत से लड़ना,
मौत तो एक बहाना है ,
जिवन की राहो मे,
यमदूत से डरना क्या,
दोस्त बना लेना है!
-०-
पता:
रूपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार
-०-


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आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग २ ) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

आखिर वह कौन थी?

(यात्रा वृत्तांत - भाग २ )
क्रमशः २० मार्च २०२० से आगे ...
मैं जैसे तैसे नीचे उतर रहा था, रास्ते की कठिनाइयाँ बढ़ती जा रही थी, रास्ते कीचड़ तथा फिसलन भरे थे, 
रास्ते में इक्के दुकाने फंसे बदनसीब यात्री ही दिखाई दे रहे थे, उस फिसलन युक्त रास्तों पर मैं कइकइ बार फिसला गिरा, लेकिन चोट कभी नही लगी, ऐसा लगता जैसे कोई अदृश्य ताकत मुझे संभाल रही हो, यह तो अवश्य माँ की ही कृपा रही होगी। जिसने मुझे बार बार संरक्षण दिया, लेकिन उसी समय घटित एक घटना ने मेरे मन को झकझोर दिया। 
बार बार कीचड़ में फिसलने से मैंने अपने पांवों के जूते उतार फेंके थे नंगे पांव ही नीचे बढ़ चला था, उबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्ते, तथा बर्फीले बारिस से भीगनें से मेरे पांवों के घुटने कमर तथा पंजों में सूजन जकड़न हो गई थी रास्ता चला नही जा रहा था। फिर भी जै माता दी नाम के सहारे विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते अपनी मंजिल तय करता जा रहा था। कि अचानक से मैंने जो दृश्य देखा उसने मुझे भीतर तक हिला दिया, 
शायद ये विपरीत परिस्थि में मां द्वारा मेरे हृदय की परीक्षा थी, 
मैंने देखा कि जंहा मैं खड़ा था, वहा से लगभग बीस पच्चीस सीढियाँ उपर आठ से दश वर्षीय बालक जोर जोर से रो रहा था, उसकी करूण आवाज ने मेरे पैरों को थाम लिया था, और मैं पीछे लौटने पर मजबूर था मैं अपने दिल की आवाज की अनसुनी नही कर पाया, और वापस चल कर बच्चे के पास जा पहुचा था, मैंने देखा बच्चा भीगे होने के कारण ठंढ से थर थर कांप रहा था, हवा के तीव्र वेग एवम् सरसराहट से भयभीत हो रो रहा था। उन विपरीत परिस्थितियों में ही मैं समझ पाया था कि एक माँ और बाप के दिल में अपनी औलादों के प्रति कितना गहराप्रेम छुपा होता है, उसके माँ बाप अपना भींगा कम्बल तथा शाल निचोड़ कर उसे ही बच्चे को ओढ़ा कर उसकी प्राण रक्षा का प्रयास कर रहे थे, जब कि वे खुद ही ठंढ जाड़े थरथरा रहे थे। 
मैंने उनके नजदीक पहुँच उनसे बच्चे के रोने का कारण जानना चाहा तथा उनकी मदद की पेशकश की तो उन्होंने विनम्रता पूर्वक इन्कार कर दिया, तथा बतायाकि अंकल जी यह बच्चा, हवा के वेग से डर कर रो रहा है, आप जाइये आप तो खुद ही परेशान है, माँ की कृपा रही तो इसे कुछ भी नही होगा, 
उस विपरीत परिस्थितियों में भी माँ के प्रति एसी अगाध श्रद्धा देख मेरा मन करूणा से भर आया। आंखें छलक उठी, मैंने मन ही मन उनके जोश जज्बे विश्वास एवम् भरोसे को सिर झुका कर नमन किया, और चल पड़ा बोझिल कदमों से नीचे की ओर, ईस घटना के द्वारा संभवतः माँ ने मेरे हृदय के मानवीय संवेदना की गहराई की परीक्षा ली होगी।
-०-
क्रमशः ........... २० मई २०२० (आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग ३ )
 -०-
पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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