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Saturday, 30 November 2019

शब्द की माला (कविता) - रश्मि लता मिश्रा

शब्द की माला
(कविता)
श्रृंगार है शब्द की माला
कविता कामिनी का।
उपहार है वह भाव भरे ह्रदय का,
काव्य प्रेमियों का।
भाव के मोती ज्यों- ज्यों पिरोए जाते,
कविता का पथ त्यों-त्यों हैं बढ़ाते।
नदी, पर्वत ,झील पहुंचाते,
तो कभी समाज ,राजनीति ,धर्म निभाते।
प्रकार शब्दों का ,आकार शब्दों का
अनूठा होता है संसार शब्दों का।
कभी इस संसार से कविता गढ़ता है,
एकता की ताकत का चित्र उभरता है।
रवि न पहुंचे वहां कवि को पहुंचाती है,
शब्द की माला कमाल दिखाती है।
पता:
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 
-०-


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विधाता (छन्द गीत) - रीना गोयल

विधाता
(छन्द गीत)
सजी बारात दीपों की ,अनोखी रात आयी है ।
करे मन,प्राण को रौशन, मधुर सौगात लायी है।

सजाती घर रँगोली से ,धरे मुस्कान गालों में ।
खिली दहलीज फूलों से ,भरी लज्जत निवालों में।

सजी महफ़िल ठहाकों से ,हसीं बिन बात आई है ।
करे मन,प्राण को रौशन, मधुर सौगात लायी है।

बड़ी अनमोल घड़ियां हैं ,बड़े अद्भुत नजारें हैं ।
पगे है प्रीत में अँगना ,हुए जगमग चुबारे हैं ।
अमावस रात में लक्ष्मी,गणेशा साथ आयी हैं ।
करे मन,प्राण को रौशन, मधुर सौगात लायी है।

लताएं झूमती गाती,सितारों से भरी रातें।
छनकती पाँव में पायल,नयन से कर रही बातें ।
उजाले हर तरफ बिखरे, हुई टीम की बिदाई है ।
करे मन,प्राण को रौशन, मधुर सौगात लायी है।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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अब भरोसा क्या करना (कविता) - संजय कुमार सुमन


टूट गया उम्मीदों का दामन
(कविता)
प्यार झूठा,
मोहब्बत भी झूठी।
अब किसी पर,
भरोसा क्या करना।
प्यार मरता नहीं
प्यार कभी झुकता नहीं।
हम तो बस,
यही कहेंगे।
प्यार है,
प्यार था,
और प्यार रहेगा।
साथ क्यों नहीं देते,
प्यार में लोग।
यह सोचकर,
घबराता है दिल मेरा।
वफा में कब तक,
हम आंसू पिएंगे।
तेरे विरह में,
अब तक जिंदा हूं।
तुमसे दिल लगाने की
हमने क्या,
खूब सजा पाई हैं।
प्यार झूठा,
मोहब्बत भी झूठी।
अब किसी पर,
भरोसा क्या करना।
-०-
संजय कुमार सुमन
मधेपुरा (बिहार)

-०-

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गठरी (लघुकथा) - डा. नीना छिब्बर

गठरी
(लघुकथा)
नीरजा, अपनी मौसी मोहिनी को बस में बैठाकर अपने पति के साथ घर वापस लौट आई।घर पर मौसी की उपस्थिति हर जगह आभासित ह़ो रही थी ।मौसी के साथ बिताए कुछ दिन माँ की कमी को और जीवित कर गए।अनपढ़ बूढी मौसी किस तरह की गूढ बातें ,बातों बातों मे यूँही बोल जाती थी ।उम्र के अनुभवो की एक गठरी वह नीरजा के पास छोड़ गई थी।
उसने विज्ञान की कक्षा मे पढा था कि लाल लिटमस पेपर रसायन मे डालने पर उस का रंग नीला हो जाता है।आज ना जाने क्यों वह सब याद आ रहा था। यकिन हो गया कि यादों की अदृश्य पोटलियाँ खोलने पर भीतर कुछ और ही निकलेगा। 
पहली पोटली जिसपर कंजूस लिखा था ,उसके भीतर आत्म सुरक्षा के लिए धन संभालना लिखा था क्योंकि बुढापे मे पैसा होने पर ही कोई पूछता है। जिस पोटली पर बहू प्रशंसा लिखा था उसके भीतर अपनी ही बेटी को घर पर आने का प्रतिबंध लगने का भय था। जिस पोटली पर धार्मिक लिखा था उसके भीतर अकेलेपन की टीस थी।जिस पोटली पर सादा भोजन लिखा था उसके भीतर बच्चों की मनमानी व शासन लिखा था।जिस पोटली पर गहनों की लालची ,लोभी लिखा था उसके भीतर अपनी ही संचित कमाई से ,अपने मन मुताबिक बच्चों को उपहार एवं पुराने संस्कारो, यादों से जोडने का मन था।
नीरजा ने घबरा कर अदृश्य गठरी दूर फैक दी।। पर ऐसा महसूस हुआ विक्रम वेताल की कहानी की तरह वह फिर पीठ पर विराजमान हो गई है।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

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सीधी रेखा (लघुकथा) - संतोष श्रीवास्तव

सीधी रेखा
(लघुकथा)
तमाम कोशिशों के बावजूद पद्मा सीधी रेखा नहीं बना पा रही थी।
" जब तक तुम्हारा रेखाओं में हाथ नहीं बैठेगा तुम्हारे लिए चित्रकारी सीखना नामुमकिन है।"
वह असहाय नजरों से कल्पना मैडम की ओर देखने लगी। तब तक कल्पना मैडम दूसरी छात्राओं के चित्रों की ओर मुड़ गई थीं। वह जल्दी-जल्दी ड्राइंग कॉपी पर चित्र बनाने की कोशिश करने लगी। चित्र बन रहे थे पर जहाँ सीधी रेखा की जरूरत थी वहाँ उसकी पेंसिल उसकी विद्रोह पर उतर आती। कल तक सभी रेखा चित्र बनाकर सबमिट करने हैं। प्रादेशिक डिप्लोमा कोर्स के इम्तहान के लिए ।मगर उसके सभी चित्र सीधी रेखा की वजह से अधूरे हैं।
छात्राओं में उसे लेकर खुसर पुसर चल रही थी ।
"पता नहीं क्या हो गया है पद्मा को इतनी अच्छी चित्रकार और सीधी रेखा पर अटक जाती है ।"
"मुझे तो सनकी नजर आती है।"
"सनकी नहीं अड़ियल ।नहीं खींचनी है मतलब नहीं खींचनी है सीधी रेखा।" कड़वी ,तीखी मुस्कुराहटें, दबी दबी हँसी उसकी ओर रेंगने लगी ।
पद्मा घबरा गई --"ममा, ममा बचाओ।" कल्पना मैडम तेजी से उसकी तरफ आईं।
" क्या हुआ पद्मा ,तुम ठीक तो हो ।"
वह पसीने पसीने हो रही थी। छात्राओं में से एक दौड़ कर पानी ले आई ।उसके चेहरे को छींटों से तरबतर किया। और जल्दी-जल्दी कॉपी से हवा करने लगी।
" तुम्हारी मामा को बुलाया है आती ही होंगी। घर जाकर आराम करो। अभी इम्तहान में पूरा महीना शेष है। सब ठीक हो जाएगा ।"
अचानक कल्पना मैडम को पद्मा के प्रति वात्सल्य और कोमलता से भरा देख छात्राएं विस्मित थीं। पदमा की ममा आधे घंटे में इंस्टीट्यूट आ गई। "आप लोगों को पदमा की वजह से जो परेशानी हुई उसके लिए माफी चाहती हूँ।अब नहीं होगा ऐसा। है न पद्मा?" कहती हुई ममा उसे घर ले गई। कल्पना मैडम छात्राओं की ओर मुड़ी "कल से कोई भी पद्मा को परेशान नहीं करेगा। "
छात्राएं उत्सुक थीं--" आखिर हुआ क्या है मैडम ?"
कल्पना मैडम ने बताया कि पदमा की माँ कह रही थी कि पद्मा के पापा जब आई सी यू में थे तो पदमा ने अपने पापा को जीवन के लिये जूझते हुए देखा। उसने स्क्रीन पर पापा के दिल की धड़कनों का उतार-चढ़ाव देखा जो धीरे-धीरे रुक कर एक सीधी रेखा में बदल गया था।
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संपर्क
संतोष श्रीवास्तव
भोपाल (मध्य प्रदेश)


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ओहदा (लघुकथा) - डॉ० भावना कुँअर सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

ओहदा
(लघुकथा)
आज कॉलेज में फंक्शन था रोमी सुबह से ही तैयारी में लगी थी,खूब मेहनत की थी उसने पढाई में भी बहुत होशियार थी पढ़ लिखकर एक मुकाम हासिल करना था उसको और अपने माता-पिता का सपना साकार करना था।स्टेज पर उसका नाम बोला गया उसने एक शानदार नृत्य प्रस्तुत किया हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

सभी ने उसको बहुत बधाईयाँ दी रोमी की खुशी का ठिकाना न था,कॉलेज में उसका ये आखिरी साल था।प्रिसींपल ने भी पास आकर ढेरों बधाईयाँ दे डाली, फूली नहीं समाई थी रोमी इतने बड़े ओहदे वाले इतने प्रतिष्ठित व्यक्ति से प्रशंसा पाकर कोई भी खुश ही होता,परीक्षा भी दूर नहीं थी तो प्रिंसिपल साहब ने उसको कहा-" इतने सालों से तुम कॉलेज में हो पर पता नहीं था कि इतना अच्छा नृत्य भी करती हो,पढ़ने में भी होशियार हो,मैं चाहता हूँ कि तुम बी०एड० में भी टॉप करो, मैं तुम्हारी मदद करुँगा, तुम कल से मेरे पास पढ़ने आना"

"जी जरूर शुक्रिया"कहकर रोमी चली गई।

अगले दिन निर्धारित समय पर पहुँच गई रोमी, प्रिंसीपल ने काम दिया और खुद उठकर बाहर चले गये रोमी लिखने में मशगूल थी तभी किसी को बहुत करीब महसूस किया चौंक कर घबरा कर उठी-"सर आप यहाँ?"

इससे पहले कि कुछ कहती सुनती सर ने उसे बाँहों में कस लिया रोमी ने बहुत तेजी से उनको धक्का दिया और एक जोरदार तमाचा उनके मुँह पर रसीद कर दिया"

प्रिसींपल साहब अपना गाल सहलाते दरवाजे को घूरते रह गए।
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डॉ० भावना कुँअर 
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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