(लघुकथा)
तमाम कोशिशों के बावजूद पद्मा सीधी रेखा नहीं बना पा रही थी।
" जब तक तुम्हारा रेखाओं में हाथ नहीं बैठेगा तुम्हारे लिए चित्रकारी सीखना नामुमकिन है।"
वह असहाय नजरों से कल्पना मैडम की ओर देखने लगी। तब तक कल्पना मैडम दूसरी छात्राओं के चित्रों की ओर मुड़ गई थीं। वह जल्दी-जल्दी ड्राइंग कॉपी पर चित्र बनाने की कोशिश करने लगी। चित्र बन रहे थे पर जहाँ सीधी रेखा की जरूरत थी वहाँ उसकी पेंसिल उसकी विद्रोह पर उतर आती। कल तक सभी रेखा चित्र बनाकर सबमिट करने हैं। प्रादेशिक डिप्लोमा कोर्स के इम्तहान के लिए ।मगर उसके सभी चित्र सीधी रेखा की वजह से अधूरे हैं।
छात्राओं में उसे लेकर खुसर पुसर चल रही थी ।
"पता नहीं क्या हो गया है पद्मा को इतनी अच्छी चित्रकार और सीधी रेखा पर अटक जाती है ।"
"मुझे तो सनकी नजर आती है।"
"सनकी नहीं अड़ियल ।नहीं खींचनी है मतलब नहीं खींचनी है सीधी रेखा।" कड़वी ,तीखी मुस्कुराहटें, दबी दबी हँसी उसकी ओर रेंगने लगी ।
पद्मा घबरा गई --"ममा, ममा बचाओ।" कल्पना मैडम तेजी से उसकी तरफ आईं।
" क्या हुआ पद्मा ,तुम ठीक तो हो ।"
वह पसीने पसीने हो रही थी। छात्राओं में से एक दौड़ कर पानी ले आई ।उसके चेहरे को छींटों से तरबतर किया। और जल्दी-जल्दी कॉपी से हवा करने लगी।
" तुम्हारी मामा को बुलाया है आती ही होंगी। घर जाकर आराम करो। अभी इम्तहान में पूरा महीना शेष है। सब ठीक हो जाएगा ।"
अचानक कल्पना मैडम को पद्मा के प्रति वात्सल्य और कोमलता से भरा देख छात्राएं विस्मित थीं। पदमा की ममा आधे घंटे में इंस्टीट्यूट आ गई। "आप लोगों को पदमा की वजह से जो परेशानी हुई उसके लिए माफी चाहती हूँ।अब नहीं होगा ऐसा। है न पद्मा?" कहती हुई ममा उसे घर ले गई। कल्पना मैडम छात्राओं की ओर मुड़ी "कल से कोई भी पद्मा को परेशान नहीं करेगा। "
छात्राएं उत्सुक थीं--" आखिर हुआ क्या है मैडम ?"
कल्पना मैडम ने बताया कि पदमा की माँ कह रही थी कि पद्मा के पापा जब आई सी यू में थे तो पदमा ने अपने पापा को जीवन के लिये जूझते हुए देखा। उसने स्क्रीन पर पापा के दिल की धड़कनों का उतार-चढ़ाव देखा जो धीरे-धीरे रुक कर एक सीधी रेखा में बदल गया था।
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संपर्क
संतोष श्रीवास्तव
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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