ओहदा
(लघुकथा)
(लघुकथा)
आज कॉलेज में फंक्शन था रोमी सुबह से ही तैयारी में लगी थी,खूब मेहनत की थी उसने पढाई में भी बहुत होशियार थी पढ़ लिखकर एक मुकाम हासिल करना था उसको और अपने माता-पिता का सपना साकार करना था।स्टेज पर उसका नाम बोला गया उसने एक शानदार नृत्य प्रस्तुत किया हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
सभी ने उसको बहुत बधाईयाँ दी रोमी की खुशी का ठिकाना न था,कॉलेज में उसका ये आखिरी साल था।प्रिसींपल ने भी पास आकर ढेरों बधाईयाँ दे डाली, फूली नहीं समाई थी रोमी इतने बड़े ओहदे वाले इतने प्रतिष्ठित व्यक्ति से प्रशंसा पाकर कोई भी खुश ही होता,परीक्षा भी दूर नहीं थी तो प्रिंसिपल साहब ने उसको कहा-" इतने सालों से तुम कॉलेज में हो पर पता नहीं था कि इतना अच्छा नृत्य भी करती हो,पढ़ने में भी होशियार हो,मैं चाहता हूँ कि तुम बी०एड० में भी टॉप करो, मैं तुम्हारी मदद करुँगा, तुम कल से मेरे पास पढ़ने आना"
"जी जरूर शुक्रिया"कहकर रोमी चली गई।
अगले दिन निर्धारित समय पर पहुँच गई रोमी, प्रिंसीपल ने काम दिया और खुद उठकर बाहर चले गये रोमी लिखने में मशगूल थी तभी किसी को बहुत करीब महसूस किया चौंक कर घबरा कर उठी-"सर आप यहाँ?"
इससे पहले कि कुछ कहती सुनती सर ने उसे बाँहों में कस लिया रोमी ने बहुत तेजी से उनको धक्का दिया और एक जोरदार तमाचा उनके मुँह पर रसीद कर दिया"
प्रिसींपल साहब अपना गाल सहलाते दरवाजे को घूरते रह गए।
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डॉ० भावना कुँअर
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
सुन्दर सार्थक लघुकथा
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