(ग़ज़ल)
उम्र के इस पड़ाव पर थकना भी लाज़मी है,
अपने हिस्से में आज भी बस थोड़ी सी जमीं है।
वक्त और हालात के सभी मारे है दोस्तों,
बता ए जिंदगी तू किसके लिए थमीं है।
न रात मेरी थी कभी,न दिन उसका है अभी,
हम दोनों के हिस्से में अभी भी कुछ कमीं है।
हसरतों के बाजार से कुछ ख़्वाब खरीद लाये थे हम,
वो हकीकत न बन सके,उसके जिम्मेदार भी हमीं है।
अफ़सोस रहेगा ताउम्र इस बात का,
किसी की बदौलत आज भी इन आँखों में नमीं है।
थकने लगे हैं वो अब जिम्मेदारियों के बोझ से,
उनके काँपते हाथों में अब ताकत की कमीं है।
मुट्ठी भर खुशियाँ ही माँगते है वो उस ख़ुदा से,
वो खुशियाँ भी न जानें क्यों हमसे अनमनीं है।
-०-
अपने हिस्से में आज भी बस थोड़ी सी जमीं है।
वक्त और हालात के सभी मारे है दोस्तों,
बता ए जिंदगी तू किसके लिए थमीं है।
न रात मेरी थी कभी,न दिन उसका है अभी,
हम दोनों के हिस्से में अभी भी कुछ कमीं है।
हसरतों के बाजार से कुछ ख़्वाब खरीद लाये थे हम,
वो हकीकत न बन सके,उसके जिम्मेदार भी हमीं है।
अफ़सोस रहेगा ताउम्र इस बात का,
किसी की बदौलत आज भी इन आँखों में नमीं है।
थकने लगे हैं वो अब जिम्मेदारियों के बोझ से,
उनके काँपते हाथों में अब ताकत की कमीं है।
मुट्ठी भर खुशियाँ ही माँगते है वो उस ख़ुदा से,
वो खुशियाँ भी न जानें क्यों हमसे अनमनीं है।
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