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Saturday 18 January 2020

हमसफ़र - (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


हमसफ़र
      (कविता)
चली थी अकेली मैं जीवन यात्रा में ,
मिल गया रास्ते में मुझे प्यारा हमसफ़र ।
थके-हारे कदम रुकनेवाले ही थे ,
मिला दिया तूने अपना कदम हमसफ़र ।
खौफ-तमस भरी जीवन गलियारे में ,
प्रकाश-दीप तूने जलाया हमसफ़र ।
संघर्ष,तनाव,हताशा के गरकाब में ,
हौसले की उड़ान तूने भर दी हमसफ़र ।
लक्ष्यहीन जीवन पथ की दिशा में ,
मंजिल की सीढ़ियाँ तू बना हमसफ़र ।
भावशून्य नीरस मेरे जीवन में ,
अमृत सा रसपान तूने पिलाया हमसफ़र ।
विषाक्त,कटु, व्यर्थ मेरे जीवन में ,
मधु वाणी का शृँगार तूने किया हमसफ़र ।
निष्ठुर, अज्ञान, अशिष्ट व्यवहार में ,
संवेदना, ज्ञान का सींचन तूने किया हमसफ़र ।
डूबी मैं उद्दंडता,अविवेक के गरुर में ,
शील,विनय की नाव में तूने बिठाया हमसफ़र।
मेरे कँटीला सा वीरान जीवन वन में ,
खिलता-महकता उद्यान तू बना हमसफ़र ।
जीवन मांगल्य का तू है मेरा सौभाग्य ,
जन्म जन्म का जीवन साथी तू मेरे हमसफ़र ।
प्रभु ! करो शृँगार मेरी ह्रदय वाणी का ।
हर हाल में साथ निभाये हम हमसफ़र ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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माँ तो माँ है (कविता) - डा. नीना छिब्बर

माँ तो माँ है
(कविता)
माँ की आँखे चाहे भरी हों कितने ही जालों से
देख लेती है,पहचान लेती है,झपट लेती है
बच्चों के हृदयतल मे फँसे दुख के कीडे को।।

माँ की बाँहें चाहे कितनी ही झुरीदार,
पतली और कमजोर हों
पकड लेती है,संभाल लेती है,
संबल देती है अपने बच्चों को
मजबूती से अपने हड्डी वाले हाथों से,
और खडा करती है फिरसे जग मे।।

माँ का हृदय चाहे दवाइयों और जीवन आघातों ने
किया हो कमजोर पर पढ लेती है
दूर से ही बच्चों की उखडती साँसों को
लेती है सीने से लगाऔर पल मे अपने हृदय की घडकनो
से सामान्य करती उनका हृदयाघात।।

माँ के पैर चाहे कितने ही कमजोर हों
पहचान लेती हैं, पदचापों से,
बच्चों के उत्साह, निरूत्साह को
पहुँच जाती है हिम्मत की लाठी टेककर,
निकटतम देने बचपन वाला दबंग उत्साह ।।

माँ का संतुलन चाहे पलभर भी स्थिर नहीं रहता पर
देख लेती है बच्चों की आँखों में.स्वाद की भूख
पहुँच जाती है रसोई मे बनाने 
फिर से मीठा परांठा और गुड हलवा शानदार।।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

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तुम्हारी ज़ुल्फ़ की (ग़ज़ल) - डा जियाउर रहमान जाफरी

धरती ला दो 
(ग़ज़ल)
हमारे अपने सारे भाइयों में
हमारा नाम है दंगाइयों में

सभी नफ़रत मुझे करने लगेंगे
अगर जीते रहे रुस्वाइयों में

क़दम रखना ज़रा तुम भी संभलकर
बहुत से गिर गये हैं खाइयों में

ज़मीं को छोड़ कर हम आ गये हैं
मज़ा कुछ भी नहीं ऊचाइयों में

ग़ज़ल तो आजतक सोती रही है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की परछाइयों में
-0-
डा जियाउर रहमान जाफरी
नालंदा (बिहार)
-०-



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स्वच्छ भारत -स्वस्थ भारत (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


स्वच्छ भारत -स्वस्थ भारत
(कविता)
तन भी हो सुन्दर
मन भी हो सुन्दर
जन जन अब कहेगा
भारत भी हो सुन्दर ।

घर- आँगन का कचरा
गली -सड़क पर न फैंके
घर - घर हो कचरा पात्र
तब हो घर - गली सुन्दर ।

स्चच्छ स्कूल-कॉलेज हों
घर-बाजार भी स्वच्छ हों
पहले हम सब जाने समझें
तब गांव - नगर बने सुंदर ।

खुले में क्यों हम सोच करें
शौचालय का उपयोग करें
स्वच्छता के संकल्प से ही
आचार विचार भी हो सुन्दर ।

स्वच्छ भारत - स्वस्थ भारत
ये सोच हम हम सब की हो
सफाई जहां देव भी बसे वहां
स्वच्छ भारत हो स्वर्ग से सुन्दर ।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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छोडो बीती बातें (लघुकथा) - अंजलि गोयल 'अंजू'


छोडो बीती बातें
(लघुकथा)
क्या कहा-क्या सुना-क्या खोया क्या पाया. छोड़ो बीती बातें कल की नया साल है आया. सूरत नही देखी जिनकी जाने कितने साल से बात नहीं होती महीनों कैसे हो किस हाल से उनका भी पैगाम फोन पे सुबह-सुबह ले आया छोड़ो बीती बातें कल की नया साल है आया.

नाचो-गाओ धूम मचाओ गीत खुशी के गाओ भूले बिसरे लोगों को भी शुभ संदेश सुनाओ भूल जाओ जो मिला नहीं सोचो क्या है पाया छोड़ो बीती बातें कल की नया साल है आया.

बच्चे खाते केक पेस्ट्री और उड़ाते गुब्बारे कवियों की वाणी से भी खूब छूटते फ़व्वारे गजलों की महफिल को देख चाँद भी मुस्काया छोड़ो बीती बातें कल की नया साल है आया.

शुभ और मंगलमय हो सबका आने वाला कल खुशियों से भरपूर रहे जीवन का हर पल 'अंजू'दिल ने झूम-झूम कर गीत यही है गाया. छोड़ो बीती बातें कल की नया साल है आया.
-०-
अंजलि गोयल 'अंजू'
बिजनौर (उत्तरप्रदेश)

-०-
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