*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Monday 10 August 2020

ऐ भारत माँ लाल (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


ऐ भारत माँ लाल 
(कविता)
ऐ भारत माँ के लाल सुनो,
तुमको समझाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।

है आज जरूरत उसकी जो ,
बस उजियारे को फैलाए।
जो अंधभक्ति का तम काटे,
सच को लेकर आगे आए।।
है आज जरूरत भारत को,
अध्यात्म ज्ञान के चिंतन की।
जो भ्रमित न हो पाखंडों से,
ऐसे ही कलुष रहित मन की।।
बुद्धि पर पर्दे पड़े हैं जो,
मैं सभी उठाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।

है छुआछूत का भेदभाव,
का रोग आज भी भारत को।
दीवारे गर मजबूत नहीं,
खतरा होता ही है छत को ।।
सब एक बने और नेक बने,
तो विश्वगुरु कहलाएंगे।
लड़ते जो रहे अकारण तो,
नाहक ही कुचले जाएंगे ।।
है शक्ति संगठन में भारी,
ये पाठ पढ़ाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।

ये तड़क भड़क देखा देखी.
ये भौतिकता निस्सार सभी।
मानव में मानवता उपजे,
गर यही नहीं बेकार सभी ।।
जो मात पिता की करने से,
सेवा पीछे हट जाएंगे।
सम्पन्न भले वो कितने हों ,
आनंद कहाँ से लाएंगे ।।
भारत ये स्वर्ग "अनन्त"बने,
इतना समझाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद ,
से आज जगाने आया हूँ ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सूने पनघट (सजल) - मृदुल कुमार सिंह

सूने पनघट
(सजल)
सूने पनघट चुप चोपालें गाँवों में|
हम-तुम होली ईद मनालें गाँवों में|

मक्का की हे रोटी बोली चूल्हे से,
आ सरसों का साग बनालें गाँवों में|

खेत, मडैया, ताल, बगीचा देख लिए,
थोडी सी गौ-धूल उडालें गाँवों में|
घर-आंगन में पानी-पानी वर्षा का,
कागज़ की फिर नाव चलालें गाँवो में|

मिल जायेगी सब लोगों की खैर-खबर,
सर्दी है चल अलाव जलालें गाँवों में।

मोबाइल पर कैसी बातें सावन की,
आओ सखियो झूला डालें गांवो में।

पशु पंक्षी क्या पेड़ 'मृदुल' से है बोले,
खूब जियें हम मिटटी वाले गाँवो में|
-०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
अलीगढ़ (अलीगढ़) 

-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

चले गए बादल (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

चले गए बादल
(कविता)
आए तो थे, किन्तु गरज कर,
चले गए बादल.

सघन स्वरूप हवाओं का रुख,
गति के सँग घूमा,
मानसून से मिला, नमी का,
भौतिक मुख चूमा,
इंद्रदेव के, मंत्रसूत्र में,
ढले गए बादल.

तेज हवा के, राजमार्ग से,
आसमान चौका,
मड़ई, चूक गई अपनी छत,
छाने का मौका,
ऊपर सूरज, नीचे धरती,
दले गए बादल.

बादल घिर तो गये, कहीं भी,
झींसी नहीं झरी,
फूलों की अनमनी पँखुड़ियाँ,
रोती झिरी-परी,
किस मौसम विभाग के द्वारा,
छले गए बादल.

बस अड्डे के पीछेवाला,
नाला अंध पड़ा,
जलनिकास की, बाधित नाली,
रस्ता गंध सड़ा,
कालिख, कथित प्रगति के मुँह पर,
मले, गए बादल.-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ