ऐ भारत माँ लाल
(कविता)
ऐ भारत माँ के लाल सुनो,
तुमको समझाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
है आज जरूरत उसकी जो ,
बस उजियारे को फैलाए।
जो अंधभक्ति का तम काटे,
सच को लेकर आगे आए।।
है आज जरूरत भारत को,
अध्यात्म ज्ञान के चिंतन की।
जो भ्रमित न हो पाखंडों से,
ऐसे ही कलुष रहित मन की।।
बुद्धि पर पर्दे पड़े हैं जो,
मैं सभी उठाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
है छुआछूत का भेदभाव,
का रोग आज भी भारत को।
दीवारे गर मजबूत नहीं,
खतरा होता ही है छत को ।।
सब एक बने और नेक बने,
तो विश्वगुरु कहलाएंगे।
लड़ते जो रहे अकारण तो,
नाहक ही कुचले जाएंगे ।।
है शक्ति संगठन में भारी,
ये पाठ पढ़ाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
ये तड़क भड़क देखा देखी.
ये भौतिकता निस्सार सभी।
मानव में मानवता उपजे,
गर यही नहीं बेकार सभी ।।
जो मात पिता की करने से,
सेवा पीछे हट जाएंगे।
सम्पन्न भले वो कितने हों ,
आनंद कहाँ से लाएंगे ।।
भारत ये स्वर्ग "अनन्त"बने,
इतना समझाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद ,
से आज जगाने आया हूँ ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
ऐ भारत माँ के लाल सुनो,
तुमको समझाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
है आज जरूरत उसकी जो ,
बस उजियारे को फैलाए।
जो अंधभक्ति का तम काटे,
सच को लेकर आगे आए।।
है आज जरूरत भारत को,
अध्यात्म ज्ञान के चिंतन की।
जो भ्रमित न हो पाखंडों से,
ऐसे ही कलुष रहित मन की।।
बुद्धि पर पर्दे पड़े हैं जो,
मैं सभी उठाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
है छुआछूत का भेदभाव,
का रोग आज भी भारत को।
दीवारे गर मजबूत नहीं,
खतरा होता ही है छत को ।।
सब एक बने और नेक बने,
तो विश्वगुरु कहलाएंगे।
लड़ते जो रहे अकारण तो,
नाहक ही कुचले जाएंगे ।।
है शक्ति संगठन में भारी,
ये पाठ पढ़ाने आया हूँ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद,
से आज जगाने आया हूँ।।
ये तड़क भड़क देखा देखी.
ये भौतिकता निस्सार सभी।
मानव में मानवता उपजे,
गर यही नहीं बेकार सभी ।।
जो मात पिता की करने से,
सेवा पीछे हट जाएंगे।
सम्पन्न भले वो कितने हों ,
आनंद कहाँ से लाएंगे ।।
भारत ये स्वर्ग "अनन्त"बने,
इतना समझाने आया हूँ ।।
अपने बेटों में तुम्हें नींद ,
से आज जगाने आया हूँ ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
-०-