(कविता)
शरीर के भरणपोषण की प्रक्रिया तो,
जानवर भी बच्चों को सिखाते हैं।
पर संस्कारों का भोजन,
कहाँ दे पाते हैं ?
तभी तो जानवर जानवर हैं,
इंसान कहाँ बन पाते हैं।
ईश्वर ने इंसान को ,
दो दो इंद्रियाँ दी है।
शरीर भी दो हिस्सों में बाँटा है।
इन दो शरीरों के मिलन से ही,
इंसान का व्यक्तित्व तैयार हो पाता है।
माँ जब बच्चे में,
समझ को उतारती है,
अपने भीतर...
आधे पुरुष को पाती है।
उसके लालन पालन की प्रक्रिया में..
पुरुष भी हाथ बँटाता है।
अपने अंदर छिपी एक माँ का..
अहसास उसे हो जाता है।
वह अंदर के व्यक्तित्व की ,
पहचान कर पाता है।
जो इंसान अपने भीतर के अस्तित्व को,
नहीं पहचानता।
स्त्री में पुरुष है, पुरुष में स्त्री,
वह नहीं जानता।
जो अस्तित्व ओर व्यक्तित्व में ,
फ़र्क़ ना कर पाए,
कुटिल उसके कर्म हो जाए,
फिर इंसान ओर जानवर ,
में फ़र्क़ क्या रह जाए ?
इंसान ही इंसान को ,
संस्कार सिखाता है।
अस्तित्व ओर व्यक्तित्व ,
में फ़र्क़ समझ जिसे आता है।
वही इंसान इंसान कहलाता है।
वरना जानवर ओर आदमी में ,
फ़र्क़ क्या रह जाता है।।
-०-
पता
जानवर भी बच्चों को सिखाते हैं।
पर संस्कारों का भोजन,
कहाँ दे पाते हैं ?
तभी तो जानवर जानवर हैं,
इंसान कहाँ बन पाते हैं।
ईश्वर ने इंसान को ,
दो दो इंद्रियाँ दी है।
शरीर भी दो हिस्सों में बाँटा है।
इन दो शरीरों के मिलन से ही,
इंसान का व्यक्तित्व तैयार हो पाता है।
माँ जब बच्चे में,
समझ को उतारती है,
अपने भीतर...
आधे पुरुष को पाती है।
उसके लालन पालन की प्रक्रिया में..
पुरुष भी हाथ बँटाता है।
अपने अंदर छिपी एक माँ का..
अहसास उसे हो जाता है।
वह अंदर के व्यक्तित्व की ,
पहचान कर पाता है।
जो इंसान अपने भीतर के अस्तित्व को,
नहीं पहचानता।
स्त्री में पुरुष है, पुरुष में स्त्री,
वह नहीं जानता।
जो अस्तित्व ओर व्यक्तित्व में ,
फ़र्क़ ना कर पाए,
कुटिल उसके कर्म हो जाए,
फिर इंसान ओर जानवर ,
में फ़र्क़ क्या रह जाए ?
इंसान ही इंसान को ,
संस्कार सिखाता है।
अस्तित्व ओर व्यक्तित्व ,
में फ़र्क़ समझ जिसे आता है।
वही इंसान इंसान कहलाता है।
वरना जानवर ओर आदमी में ,
फ़र्क़ क्या रह जाता है।।
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पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)