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Thursday, 5 March 2020

तुम आए (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


तुम आए
      (कविता)
मेरे सुने सुने मन - मंदिर में
प्रेम देव बन के तुम आये ।
मेरे तमस - सा आत्मा में
दिव्य दीप दीपित करने तुम आये ।
मेरी अंधियारी धुँधली आँखों में
आलोक अंजन करने तुम आये ।
मेरी बंजर उर अवनी में
प्रेम - वाटिका सींचने तुम आये ।
मेरे मुरझाये हृदय कमल को
पुष्पित सुगंधित करने तुम आये ।
मेरे शुष्क जीवन पात्र को
मधु रस का पान कराने तुम आये ।
मेरे रुखे सूखे होष्ठों में
मोहक मुस्कान भरने तुम आये ।
मेरे कुण्ठा भरे कंठ में
प्यार का गीत गुनगुनाने तुम आये ।
मेरे बुझे दिल - दीपक में
स्नेह की प्रीत जलाने तुम आये ।
मेरे अकेलेपन की साधना में
उम्मिदों का उत्साह बरसाने तुम आये ।
मेरे घने बिखराये बालों में
उष्मा का स्पर्श जगाने तुम आये ।
मेरी सुनी सुनी धडकनों में
दिव्य प्रेम स्पंदित करने तुम आये ।
मेरी भावना के अभावों में
मंगल ज्योत जलाने तुम आये ।
मेरे जीवन कुरुपता के खण्डहर को
सौंदर्य समृद्धि प्रदान करने तुम आये ।
तेरे अद्वितीय समर्पण भाव से
भावना को तुममय बनाने तुम आये ।
मेरे विरह सींचित कागजों में
अमर प्यार की कविता उगाने तुमआये।
कितनी बडभागी हूँ मैं आज !
जीवन मीत बनके 'जगदीश' तुम आये !!
जीवन की रीत सिखाने तुम आये
प्यारे प्रेम गीत सिखाने तुम आये ।।
मेरे सुने सुने मन - मंदिर में
प्रेम देव बन के तुम आये ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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हरा भरा बगीचा (कविता) - सुनील कुमार माथुर

हरा भरा बगीचा
(कविता)
मनुष्य को प्रतिदिन किसी न किसी रूप में
जरूरतमदो की सेवा करते रहना चाहिए
इस प्रकार के कृत्य करने से
आपका मन निर्मल हो जायेगा
मन के सारे विकार व बुराईयां
स्वतः ही बाहर निकल आयेगी और
मन प्रसन्न हो जायेगा
जब आप सुधर जायेगे तो
यह जगत स्वतः ही सुधर जायेगा
व्यक्ति को दान पुण्य
जरूरतमंद की सेवा करके
भूखे को भोजन कराके
कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए
अगर परिवार के सदस्यों में दया,
करूणा, ममता, प्रेम, स्नेह व
भाईचारे की भावना है तो
वह परिवार एक हरे भरे बगीचे के समान है
अगर इसी परिवार के सदस्यों में अंहकार,
घमंड, क्रोध के भाव आ जाये तो यही
हरा भरा बगीचा सूखकर उजड जायेगा व
परिवार की सुख शांति नष्ट हो जाती है
हम परिवार, समाज व राष्ट्र व समूचे विश्व को
दया , प्रेम व करूणा से ही
एकता के सूत्र में बांधे रख सकते हैं
-०-
सुनील कुमार माथुर
जोधपुर (राजस्थान)

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तुझमें समा जाऊँ (कविता) - डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)

तुझमें समा जाऊँ
(कविता)
कान्हा मैं तुझमें समा जाऊँ
तेरे रंग में तेरे संग हो जाऊँ
झूम झूमकर नाचू मैं
तेरी मुरली के तान पर
ताल से ताल मिला लूँ मैं
तुझ संग होकर झूम लूँ मैं
तेरे मुरली से निकले गीत
एकपल मैं बन जाऊँ
वसुधा से राधा बनकर मैं
एकबार तुझमें समा जाऊँ।।

कान्हा मैं तुझमें समा जाऊँ
तेरे रंग में तेरे संग हो जाऊँ
निल गगन तले तेरी राह में
पुष्प से राहें तेरी सजा़ दूँ
तेरे पग से पग मिलाकर
मैं तेरे संग चलती रहूँ
जहाँ भी तू मुझे ले जायें
तेरी बाँह धरकर मैं चलती रहूँ
ना छूटे तेरा साथ मेरे राधेय
तुझमें समाकर तुझ चलती रहूँ।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)  


-०-

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धारा ही बदल गई (कविता) - राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'

धारा ही बदल गई
(कविता)
धारा ही बदल गई
न जाने क्यों,मालूम नहीं
रिटायर्ड आदमी को ही
हर कोई बेकार में,
बेकार सा ही समझता है।।
कामकाजी इंसान भी
उससे दूर भागता है।
क्योंकि वह हर समय अपनी ही
हांकता और फांकता है।।
पत्नी कहती 
सारा दिन कुर्सी क्यों तोड़ते हो।
हर समय मोबाइल में, 
आँखे ही क्यों फोड़ते हो।।
जाओ बाज़ार से, 
कुछ जरूरी सामान ही ले आओ।
बहुरानी कहती, 
साथ में मुन्नू को भी तो घुमा लाओ।।
अरे!रिटायर क्या हुआ,
मेरी तो सरकार ही चली गई।
पत्नी जी भी मुझको भुला,
बहू के साथ ही पूर्णतया मिल गईं।।
जब भी टी०वी०चलाता हूं, 
बच्चे रिमोट ही छीन लेते हैं।
मैं चाहूं देखना न्यूज़,
आस्था वो पोगो,कार्टून लगाते हैं।
फिल्म देखूँ या गाना सुनूं,
कहते हैं,क्या जवानी आ गई।
योगा करूँ,तो कहते हैं,
अब जवान हो कर क्या करोगे।
रिटायर क्या हुआ,
मेरे तो जीवन की धारा ही बदल गई।
पड़ा हूं, मंझधार में,
किश्ती मेरी न जाने,कहाँ,किस ओर बह गई।।
न जाने क्यों,हर बार,
मेरी ही बात रह जाती है, अनसुनी।
अब तो जब तक जीऊंगा,होती रहेगी
खुद से खुद की, तनातनी।।
-०-
पता: 
राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)


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बैठकर पढ़ने लगा (रूपमाला छंद) - छगनराज राव

बैठकर पढ़ने लगा
(रूपमाला छंद)
बैठ कर पढ़ने लगा जब, आज कांपे हाथ
हादसा ऐसा हुआ है, कौन उसके साथ
तन जला करके उतारा, मौत के ही घाट
भेड़ियों ने लूट अस्मत, अब लगा दी वाट

आज मानवता मरी है, खोय शिष्टाचार
व्याभिचारी पाप देखो, आज अत्याचार
रो गई है आँख मेरी, रो रहे घर बार
रोज आता लाल होकर, खून से अख़बार

ना डरे कानून से भी, हो गई हद पार
मार डाले काट डाले, बंदूकें तलवार
नर्क में फिर आज डूबी, जो चली पतवार
खड़ग लेकर दौड़ आओ, शेरनी असवार

रोज ये पाखंड देखो, बिक चुका बाजार
क्यों मरा ये कर्म तेरा, धर्म का आधार
लोग कब तक चुप रहेंगे, कौन कितनी बार
मौन कैसे आज बैठी, देखती सरकार
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
-०-

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