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Sunday, 27 September 2020

अखबार (कविता) - प्रीति शर्मा 'असीम'

 

अखबार
(कविता)
बंद पड़ी  सोच को ,
जब हिलाना ही नहीं है | 
खबर पढ़कर भी जब ,
आवाज़  उठाना ही नहीं है| 
टुकड़ा यह कागज का रद्दी नहीं, 
तो ........और  क्या है़ं|
कब तक  ,खुद को 
दूसरे  की  आग  से  बचाओगे|
नफ़रतों की  चपेट में, 
तुम भी  तो  आओ गें |
यह  बोले गा.......! 
वो बोलो गा.......? 
गलत को गलत  ,
कहने को भी इतना क्यों सोचेगा |
तू क्यों........नही बोलेगा |
अच्छे  समाज को कौन बनायेंगा|
कलयुग है, भाई कलयुग है |
यह तो सब रोते है |
सतयुग  कोई  बाहर से  नहीं आयेगा|
-०-
पता:
प्रीति शर्मा 'असीम'
नालागढ़ (हिमाचल प्रदेश)

-०-


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सृजन (कविता) - सोनिया सैनी

सृजन
(कविता)
जब कवि करता है
सृजन
नव साहित्य का
जीवन के उदगीत का,
तो बिसार, स्वयं को
हो जाता है, तल्लीन
संसार को राह दिखाने को
नव पीढ़ी को, जीवन
मूल्य समझाने को,
लिप्त हो जाता है
पात्रो की संवेदना में
उस समय कवि, स्वयं
नहीं विद्यमान रहता
स्वयं में,
उसकी लेखनी
मां सरस्वती ,के संसर्ग से
रच डालती है,
नवाचार
गढ़ बैठती है
नव उत्थान, नव प्रभात।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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पितृ पक्ष (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

 

पितृ पक्ष
(कविता) 
पितृ पक्ष में हम अपने पितरों का स्मरण करते हैं,
श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं,
 पिंडदान की यह रीति है बहुत पुरातन,
 हृदय प्रसूनों का भावपूर्वक अर्पण करते हैं।

पूर्वज पूजा की यह प्रथा बहुत प्राचीन है,
 बिन पूर्वजों के हमारा जीवन प्राण- विहीन है,
 आभारी हैं हम अपने पितृ जनों के बहुत,
उनके स्नेहरूपी मेघों से आच्छादित हृदय जमीन है।


इसे अपर पक्ष नाम से भी जानते हैं हम,
पितरों को अपना सर्वस्व मानते हैं हम,
सोलह दिन की अवधि का होता है पितृ पक्ष,
पूर्वजों हेतु ब्रह्मभोज को मानते हैं हम।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)


-०-


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हिमशिखर तक (कविता) अ कीर्तिवर्धन

हिमशिखर तक
(कविता)
हिम शिखर तक देखिए, तिऱंगा फहरा रहा,
सैनिकों की शौर्य गाथा, है गगन तक गा रहा।
पाताल की गहराइयों से, अन्तरिक्ष के पटल,
भारतीय सेना का परचम, दुश्मन थरथरा रहा।
चीन हो या आतंकी पाक, सामने भारत खड़ा,
देखकर म़ंसूबे अपने, लाल आतंक घबरा रहा।
सत्ता के भूखे भेड़िए कुछ, गद्दारी मुल्क से करें,
राष्ट्रभक्त जागरूक अब, बस उन्हें समझा रहा।
-०-
पता: 
अ कीर्तिवर्धन


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