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Wednesday, 4 December 2019

कैसा खेवनहार (नवगीत) - राजपाल सिंह गुलिया


कौन सा योग करें
(नवगीत)
मन की खिड़की खोल तनिक सी ,
घुटन न डाले मार .

एक आसरा मन के दर पर ,
बैठा है दम तोड़ .
भाव भोथरे नवाचार से ,
रहते नाक सिकोड़ .
मन मंदिर यूँ शोर शराबा ,
हो मछली बाजार .

चाहत है अब आत्महंता ,
प्रेम खड़ा लाचार .
अपने ही अब अपनों से ही ,
खाए बैठे खार .
ओढ़ तमस को खड़ा चौक पर ,
देखो अब उजियार .

खुद की हँसी उड़ाता फिरता ,
बनकर जोकर क्रोध .
डरा रहा अंजाम दिखाकर ,
साहस को अब बोध .
डुबा रहा है नाव स्वयं ये ,
कैसा खेवनहार .
-०-
राजपाल सिंह गुलिया
गाँव - जाहिदपुर,  डाकखाना - ऊँटलौधा
तहसील व जिला - झज्जर (हरियाणा)

-०-
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जीवन मांगल्य है (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


जीवन मांगल्य है
                    (कविता)
उदात्त उर निर्मल नेह, जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
नहीं कोई छोटा-बड़ा,सब एक समान हो ।
ऊँच-नीच दूर हो,सबका एक-सा मान हो ।।
सता का अभिमान नहीं,बल्कि विनम्र भाव हो ।
हर हाल, परिस्थिति में सबके प्रति समभाव हो ।
उदात्त उर, निर्मल नेह ......…..
भूखों को भोजन हो,पथिकों को दीपशिखा हो ।
सत्कर्म ही हमारे भाग्य की जीवन रेखा हो ।।
माता-पिता का आदर ही जीवन-दर्पण हो ।
छोटे-बड़े का समादर ही धर्म को अर्पण है ।। 
उदात्त उर, निर्मल नेह............
प्रकृति प्रेम हो परमात्मा में विश्वास हो ।
दृष्टि ऐसी हो कण-कण में प्रभु का वास हो ।।
निर्मल हृदय-दर्पण में ही सारा जग समाया है ।
पवित्रता की आँखों में भला-बुरा समाया है ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह..............
कंचन काया में कभी कालिमा का न दाग़ हो ।
विशुद्ध मन में अशुद्धता का कभी न दाग़ हो ।।
मन-मंदिर की मूर्ति मानवीयता से शोभित हो ।
दिल-दीपक की दीप्ति दिव्यता से दीपित हो ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच,नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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बचपन (कविता) - राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"


बचपन
(कविता)

हँसी ठिठोली मौज मस्ती।
बचपन के ये लक्षण हैं जी।।

चिन्ता रहित खेलना खाना।
और स्वच्छन्द विचरना जी।।

माँ की गोदी में मुस्कराना
पापा के कंधे पर रहना जी।।

रुमाल झपट्टा कुर्सी दौड़ में।
सदा ही अव्वल आते जी।।

बैर द्वेष से दूर ही रहना।
सबसे मिलकर रहना जी।।
केवल खेल खिलौने लाते।
मेले ठेले में जब जाते जी।।

रंग बिरंगी पतंग उड़ाते।
पेंच काट कर हँसते जी।।

कागज़ की कश्ती लेकर।
पानी मे उसे तैराते जी।।

कैरम की गोटी जीतना।
और खुशियां मनाते जी।।

राजा मन्त्री चोर सिपाही।
खेल खेल में बन जाते जी।।
मोबाइल पर खेल खेलना।
बाहर घर से न जाना जी।।
-०-
राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
झालावाड़ (राजस्थान)

-०-


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चाय (कविता / गीत) - डॉ.सरला सिंह 'स्निग्धा'


चाय
(कविता / गीत)
ये चाय तो इक बहाना है,
तेरे संग मुझको आना है।
कहें कुछ अपने दिल की,
कुछ तेरी सुनके आना है।
जिंदगी की भूल कटुता को,
सपनों को जी के आना है।
ये चाय तो इक बहाना है----२
छिपा है दर्द सीने में जो ये,
कुछ तुझको भी दिखना है।
रुकी जाने कब से आंखों में,
उन्हें बहाने का इक बहाना है।
दिल पर हैं बोझ कई भारी हैं,
कुछ उनको भी तो हटाना है।
ये चाय तो इक बहाना है-----२
मिलते ही नहीं ऐसे तो तुम,
तुमसे मिलने का बहाना है।
मुझसे पूछोगे तुमको ही क्यों?
दर्देदिल सबको नहीं सुनाते हैं।
आओ बैठें कहें अपनी अपनी,
दिल को सुकून तो दिलाना है।
ये चाय तो इक बहाना है---२
-०-
डॉ.सरला सिंह 'स्निग्धा'
दिल्ली


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राम पर कविता के बहाने (आलेख) - अमित खरे

राम पर कविता के बहाने
(आलेख)
आप मेरी बात को सबसे पहले पढ़ें , समझें ,
और फिर इस बात का परीक्षण करें कि मै सही हूँ या गलत । अगर सहमत हों तो इस को कहीं आगे बढ़ाएं ।
अन्यथा मै पहले भी खुश था अभी भी खुश हूँ ।
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमे अनामिका अम्बर प्रभु श्री राम पर एक कविता का वाचन कर रहीं हैं ।
प्रभु श्री राम ने जाने कितने कण्ठों को अपनी स्तुति गान करने के लिए चुना है । फिर चाहे महाऋषि बाल्मीकि हों , तुलसी दास जी हों, निराला जी हों , मैथली शरण गुप्त हों जाने कितने कितनों ने राम की महिमा गान करके खुद की श्री वृद्धिकी है । जिन जिन को प्रभु श्रीराम ने चुना है वे भाग्यवान हैं । उन्हें बधाई ।
राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त जी कहते हैं
"राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है
कोई कवि हो जाए सहज सम्भाव्य है "।
राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त जी के अनुसार
राम सबके हैं । हर कलम साधक को राम पर अधिकार है ।
एक तर्क यह भी है कि "प्रभु श्री राम पर कुछ भी लिखा जाए वह तुलसी दास जी का पुनर्वाचन ही होगा "। यह तर्क कहीं न कहीं राम पर लिखे में साम्य और रचनाकार पर लगने वाले चोरी के आरोप के बचाव में एक दलील मात्र है ।सबका अपना तेवर होता है जो रचनाकारों को एक दूसरे से पृथक करता है ।
लेकिन इस बात पर भी विमर्श होना चाहिए कि किसने क्या लिखा कैसा लिखा क्यों लिखा ।
मै कुछ कहना चाहता हूँ ।
पिछले दिनों जो वीडियो वायरल हुआ उससे मुख्य रूप से तीन किरदारों की चर्चा आई जिसमे डॉ हरीओम पँवार मेरठ , श्री कमलेश शर्मा इटावा , एवं अनामिका अम्बर मेरठ ।
मै तीनों के विषय में बात रखने की कोशिश करूँगा ।
सबसे पहले डॉ हरीओम पँवार की कविता की बात डॉ पँवार की कविता एक लंबी कविता है । जिसे वो चीख चीख कर पढ़ते हैं ।
इसमे उन्होंने रामकथा से जुड़े प्रसंग लिए हैं , राम कथा से जुड़ीं घटनाएं लीं है । किरदार वही रहेंगे । घटनाएं वही रहेंगी । सबका कहने का अपना तरीका होता है । सबका अपना शिल्प होता है जो रचना में झलकता है ।
अब कमलेश शर्मा जी के गीत पर बात करते हैं । "राम हुए हैं कितने और प्रमाण दें " गीत मै ने कई बार समक्ष में सुना है । वो इसे गाकर पढ़ते हैं । चीखने में और गाने में फर्क होता है और यह गीत विशुद्ध कविता है ।
ह्रदय पटल पर अपने आप अंकित होने वाला गीत है ।
राम कथा के संदर्भ , पात्र , घटनाएं इसमें सबसे बेहतर तरीके से उल्लेखित की गईं हैं ।
ताजा मामले में कमलेश जी का गीत सर्वश्रेष्ठ है । यह मेरी निजी राय है । मुझे यह कहने में कोई संकोच नही है ।
अब अनामिका अम्बर - कविता के अवमूल्यन के सन्दर्भों में चर्चित वायरल वीडियो में राम प्रभु पर कविता हो रही है यह तो पता चल रहा है । किसकी कविता हो रही है पता नही चल रहा है ।
कहीं कहीं यह लगता है कि डॉ हरीओम पँवार के शब्दों को पर्यायवाची के रूप में रख दिया हो ।
कहीं कमलेश जी के गीत की मिट्टी उठा ली हो ।
चलो उठा भी लो तो आपका कोई साँचा भी नही है जिसमे आप पँवार जी या कमलेश जी की मिट्टी उठा कर सही आकृति दे पाएं । मै इसे कविता नही मानता हूँ। मुझे कोई संकोच नही है ।
मेरे विचार से तीनों रचनाओं को एक कागज पर लिखकर विश्लेषण होना चाहिए । पत्र पत्रिकाएं इस विषय पर छापकर चर्चा खड़ी करें । तो और सही होगा ।
और अंत में मै श्रोताओं से , पाठकों से , समीक्षकों से , आलोचकों से यह पश्न करता हूँ कि वे तय करें कि ये उचित है , अनुचित है , चोरी है , महाजनी है क्या है ।
तय हो ।
दिनकर जी की अदालत से
समर शेष है नही पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध ।
जय जय
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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