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Tuesday 1 December 2020

लॉकडाउन के कारण बढ़े सोमेटिक डिसऑर्डर के रोगी (आलेख) - संदीप सृजन

 

लॉकडाउन के कारण बढ़े सोमेटिक डिसऑर्डर के रोगी
(आलेख)
दिन-रात कोरोना के बारे में सुनने, देखने और पढ़ने के कारण कुछ लोग बेहद डरे हुए हैं और बार-बार कोरोना के बारे में ही सोच रहे हैं। उनके लक्षणों के बारे में जान रहे हैं। इससे शरीर और मन का संबंध टूट रहा है। यदि किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का दर्द या अन्य कोई शिकायत होती है तो वे उसे कोरोना से जोड़कर देख रहे हैं। मौसम में बदलाव आता है तो हर साल सर्दी और गर्मी आने पर सर्दी-जुकाम के मरीज बढ़ते हैं। कोरोना भी ऐसे समय पर आया है। बुखार, सर्दी-जुकाम होने के कारण लोग घबराए हुए हैं। बार-बार इंटरनेट पर कोरोना के लक्षण जानना, उनके बारे में पढ़ना, सर्च करने के कारण एक दिमागी बीमारी भी हावी हो जाती है। छोटी सी परेशानी भी कोरोना का लक्षण दिखाई देती है।

लॉकडाउन के कारण आजकल मानसिक रोगों से संबंधित समस्याओं में वृद्धि हो रही हैं। इसके प्रमुख कारण हमारी बदलती हुई लाइफस्टाइल है। रोज के काम से दूर दिन भर घर में फ्री बैठे कुछ लोग जो बीमार नहीं हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे अपने आपको कोरोना का मरीज समझने लगे हैं। ऐसे लोग न तो अपनी नींद पूरी कर पा रहे हैं और न ही किसी को बता पा रहे हैं। अस्पतालों में और डॉक्टरों के पास आए दिन इस तरह के केस आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सामान्य सर्दी-जुकाम, सीने में दर्द, सिर दर्द या खांसी होने पर भी लोग भयभीत हो रहे हैं। वे हेल्पलाइन नंबर या डॉक्टरों को फोन कर कोरोना की जांच कराने का कह रहे हैं। मनोचिकित्सकों ने इस बारे में बताया कि यह कोरोना नहीं है, बल्कि एक प्रकार का सोमेटिक डिसऑर्डर है, यह एक मानसिक बीमारी है। यह किसी भी बीमारी को लेकर हो सकती है।

आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही सामान्य बन चुकी हैं जैसे लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज इत्यादि. हालाँकि, ये सभी शारीरिक समस्या हैं लेकिन ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव और चिंता से उत्पन्न होती हैं। जिन्हें साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर अथार्त मनोदैहिक विकार कहते है, इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। इसके विपरीत सोमेटिक डिसऑर्डर अथार्त दैहिक विकार है दैहिक समस्याएं हैं। वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके बायोलॉजिकल कारण सामने नहीं आते है। जैसे कि कोई व्यक्ति पेट दर्द की शिकायत कर रहा है लेकिन व्यक्ति के पेट में कोई समस्या नहीं होती है। बस बार बार पेट के बारे में सोचने, ज्यादा खाना खा लेने के बाद व्यक्ति को लगता है कि बस अब पेट दर्द होगा या हो रहा है।

जैसे किसी को पहले से ब्लडप्रेशर की समस्या है। बदलते मौसम और फ्रिज में रखे ठंडे पदार्थ खाने से गले में खराश हुई और नमक की अधिकता से ब्लडप्रेशर भी असामान्य हो गया। रोग पुराना है पर कोरोना का भय हावी है इससे ब्लडप्रेशर और भी असामान्य हो जाएगा। और दिमाग सीधा कोरोना की तरफ ही जाएगा। लेकिन इसका कोरोना से कोई लेना-देना ही नहीं है। आजकल लोग हर बात से डर जाते हैं।

डॉक्टरों की माने तो अभी सोमेटिक डिसऑर्डर रोगियों की संख्या में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और ऐसे लोग जो फील्ड में जुटे हैं, उनके अलावा जो लोग घरों में बंद हैं, उन्हें भी यह डर सता रहा है। कि कहीं वे कोरोना की गिरफ्त में तो नहीं आ गये। ये लोग बिना किसी विशेष कारण के डरे हुए है, भयभीत महसूस कर रहे है और परेशान हो रहे है।

मनोचिकित्सकों के अनुसार इससे बचने के लिए सुबह व्यायाम करे,ध्यान, योग करें या किताबें पढ़ें। घर के अंदर या कमरे में घूमें। घर से आफिस का काम कर रहे हैं तो कुछ अंतराल में ब्रेक देते रहे। शाम को भी जब भी समय मिले हल्का व्यायाम करें, जिससे दिमाग दूसरी तरफ जाएगा। तथा रोजाना गर्म पानी का सेवन करे तथा यदी संभव हो तो गिलोई, अदरख आदि रोग प्रतिरोधक औषधियों के काढे का सेवन करते रहे जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। कोरोना पर खबरें पढ़े, देखे लेकिन उसका समय निश्चित करें। परिवार के साथ समय बिताएं और सुरक्षा रखें।

कोरोना न होने के बावजूद भी लोगों को इसका डर है। इसलिए उनकी रात की नींद भी पूरी नहीं हो रही है। लोगों को समझना होगा कि कोरोना के मरीज बहुत कम है। यदि खुद की और परिवार की सुरक्षा रखी जाए तो इससे बचा जा सकता है। कोरोना प्रत्येक व्यक्ति को नहीं होता। किसी भी व्यक्ति की यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है तो उसे कोरोना नहीं हो सकता है। यदि हुआ भी है तो वह आसानी से निकल जाएगा और व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा। यदि आप लॉकडाउन में हैं और किसी के संपर्क में नहीं आ रहे हैं तो आपको कोरोना नहीं हो सकता।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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मौन साँझ (कविता) - व्यग्र पाण्डे

 

मौन साँझ
(कविता)
सुबह मुखर
मौन सांझ
तपती दोपहरी 
रात बांझ 
      -------
समाधिस्थ पेड़ 
वीरान छांव 
निहारें पखेरू 
ना कांव-कांव
        -------
सर्पिली हवा 
सूरज क्रुद्ध 
दोनों हुए
सबके विरुद्ध 
        -------
व्याकुल सभी 
ग्रीष्म का असर
पंखे - कूलर
सबकुछ बेअसर
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चोटी से एडी
पसीने की धार
तन के कपड़े 
करें तीखी मार
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कवि की कलम
उकेरे चित्र 
गर्मी के रंग 
बड़े विचित्र 
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व्यग्र पाण्डे
सिटी (राजस्थान)

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बैर (लघुकथा) - अनीता शर्मा

 

बैर
(लघुकथा)
"अहा मम्मी! मजा आ गया।  कितना स्वादिष्ट होता है ना  यह बेर।  खट्टा... मीठा..." खाते हुए मीतिबोली।
 "हां बेटा! यह छोटा सा फल बेर स्वादिष्ट होने के साथ-साथ फायदेमंद भी बहुत है।"
 "अच्छा! पर ममा कितनी अच्छी बात है ना, अपने घर के पीछे खेत में यह पेड़ लगा है लेकिन इसकी डालियां अपने और आसपास के सभी घरों की छत पर आ गई हैं। इसी से रोज मस्त-मस्त बेर खाने को मिलते हैं और वह खेत वाली आंटी भी कितनी अच्छी है ना जो सब को बेर खाने की परमिशन दे देती है।"
 "हां बेटा सो तो है."
 "देखा नहीं उनके खेत में कितने सारे पेड़ लगे हुए हैं"
  "हां बेटा यह पेड़ एक फलदार एक फलदार पेड़ है एक बार लगने के बाद इसे किसी विशेष देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि फल यह साल में एक बार ही देता है लेकिन इसकी पत्तियां पशुओं के लिए बहुत पोस्टिक आहार होती है। मिति बेटा इसकी कांटेदार झाड़ियों से ढाणियों की, खेतों की, चारा-भंडारे की बाड़ भी बनाई जाती है"
  "बाड़ क्या होता है मम्मी?"
  "बाड़ यानी अस्थाई छोटी-छोटी कांटे की दीवार इसकी झाड़ियों से बना सकते हैं। वर्षा ऋतु के समाप्त होते-होते इसमें फूल आ जाते हैं। जनवरी-फरवरी में इसके फल पक कर तैयार हो जाते हैं। राजस्थान में तो यह पाया ही जाता है पर स्थानों पर भी यह वृक्ष मिलता है, और इसकी 300 से ज्यादा किसमें होती हैं। छोटे से लेकर बड़े आकार में यह मिलता है। आजकल तो यह छोटे छोटे अमरूद के आकार के भी बाजार में देखने को मिलते हैं।"
  "लेकिन मुझे तो यही लाल पीला खट्टा मीठा बेर अच्छा लगता है । मैं तो सोचती हूं इसकी गुठली अपने घर के सामने वाले गार्डन में डाल दूं।
  "अरे बेटा, यह एक पेड़ है।  इसे फैलने के लिए बहुत जगह चाहिए।"
   "ठीक है मम्मी, तो फिर मैं इसे बोनसाई बनाकर अपने गार्डन में लगाऊंगी।"
    "अच्छा लगा लेना बेटा।"
     "पर एक काम अच्छा हो गया, आज बातों बातों में इस छोटे से बेर के बारे में इतनी बड़ी बड़ी बातें मुझे पता चल गई।"
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अनीता शर्मा
अजमेर (राजस्थान)


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और नहीं (लघुकथा) - मधुकांत

 

और नहीं
(लघुकथा)

पत्नी-मैं तो कल भी रात भर जागती रही।
पति-क्यों?
 पत्नी-रात बारह बजे दीपेंद्र का फोन आना था ।वह एक बजे तक नहीं आया। फिर तो नींद उचट  गई।
पति-बुढ़ापे में यह भी भारी रोग है, एक बार नींद उचट गई तो हो गई सारी रात काली। 
     (तभी फ़ोन की घंटी बजी) 
पति-लो आ गया,,,,, हेलो  दीपेंद्र,,, कल तुम्हारा फोन नहीं आया इसलिए तुम्हारी मां सारी रात जागती रही। दीपेंद्र-पापा करोना मैं अमरजेंसी ड्यूटी लग गई थी। बहुत भयानक बीमारी है,,, न जाने कौन, कब उठ जाए ,,,,,,आप कैसे हो?
 पिता-अपने देश में सब ठीक है ।बेटे तुम्हें ही अमेरिका में जाकर धन कमाने की लगी थी। 
दीपेंद्र-कुछ नहीं पापा सब मृगमरीचिका है ।एक बार अपने देश की सीमाएं खुल जाए तो विदेश की ओर मुंह भी नहीं करूंगा ।
पिता-अच्छा विचार है ।भारत माता  ने तुझे डॉक्टर बनाया और सेवा कर रहा है विदेशी लोगों की,,,।
 दीपेंद्र-(सुबकने लगता है )बस पापा ,,,सब समझ गया,,। उधर तुम अकेले, इधर मैं ,,,,क्या करेंगे इस धन का ,,,,,,और नहीं, पापा ,,,,,,,बस और नहीं,,,।
-०-
पता:
मधुकांत
रोहतक (हरियाणा)
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