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Tuesday, 1 December 2020

लॉकडाउन के कारण बढ़े सोमेटिक डिसऑर्डर के रोगी (आलेख) - संदीप सृजन

 

लॉकडाउन के कारण बढ़े सोमेटिक डिसऑर्डर के रोगी
(आलेख)
दिन-रात कोरोना के बारे में सुनने, देखने और पढ़ने के कारण कुछ लोग बेहद डरे हुए हैं और बार-बार कोरोना के बारे में ही सोच रहे हैं। उनके लक्षणों के बारे में जान रहे हैं। इससे शरीर और मन का संबंध टूट रहा है। यदि किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का दर्द या अन्य कोई शिकायत होती है तो वे उसे कोरोना से जोड़कर देख रहे हैं। मौसम में बदलाव आता है तो हर साल सर्दी और गर्मी आने पर सर्दी-जुकाम के मरीज बढ़ते हैं। कोरोना भी ऐसे समय पर आया है। बुखार, सर्दी-जुकाम होने के कारण लोग घबराए हुए हैं। बार-बार इंटरनेट पर कोरोना के लक्षण जानना, उनके बारे में पढ़ना, सर्च करने के कारण एक दिमागी बीमारी भी हावी हो जाती है। छोटी सी परेशानी भी कोरोना का लक्षण दिखाई देती है।

लॉकडाउन के कारण आजकल मानसिक रोगों से संबंधित समस्याओं में वृद्धि हो रही हैं। इसके प्रमुख कारण हमारी बदलती हुई लाइफस्टाइल है। रोज के काम से दूर दिन भर घर में फ्री बैठे कुछ लोग जो बीमार नहीं हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे अपने आपको कोरोना का मरीज समझने लगे हैं। ऐसे लोग न तो अपनी नींद पूरी कर पा रहे हैं और न ही किसी को बता पा रहे हैं। अस्पतालों में और डॉक्टरों के पास आए दिन इस तरह के केस आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सामान्य सर्दी-जुकाम, सीने में दर्द, सिर दर्द या खांसी होने पर भी लोग भयभीत हो रहे हैं। वे हेल्पलाइन नंबर या डॉक्टरों को फोन कर कोरोना की जांच कराने का कह रहे हैं। मनोचिकित्सकों ने इस बारे में बताया कि यह कोरोना नहीं है, बल्कि एक प्रकार का सोमेटिक डिसऑर्डर है, यह एक मानसिक बीमारी है। यह किसी भी बीमारी को लेकर हो सकती है।

आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही सामान्य बन चुकी हैं जैसे लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज इत्यादि. हालाँकि, ये सभी शारीरिक समस्या हैं लेकिन ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव और चिंता से उत्पन्न होती हैं। जिन्हें साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर अथार्त मनोदैहिक विकार कहते है, इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। इसके विपरीत सोमेटिक डिसऑर्डर अथार्त दैहिक विकार है दैहिक समस्याएं हैं। वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके बायोलॉजिकल कारण सामने नहीं आते है। जैसे कि कोई व्यक्ति पेट दर्द की शिकायत कर रहा है लेकिन व्यक्ति के पेट में कोई समस्या नहीं होती है। बस बार बार पेट के बारे में सोचने, ज्यादा खाना खा लेने के बाद व्यक्ति को लगता है कि बस अब पेट दर्द होगा या हो रहा है।

जैसे किसी को पहले से ब्लडप्रेशर की समस्या है। बदलते मौसम और फ्रिज में रखे ठंडे पदार्थ खाने से गले में खराश हुई और नमक की अधिकता से ब्लडप्रेशर भी असामान्य हो गया। रोग पुराना है पर कोरोना का भय हावी है इससे ब्लडप्रेशर और भी असामान्य हो जाएगा। और दिमाग सीधा कोरोना की तरफ ही जाएगा। लेकिन इसका कोरोना से कोई लेना-देना ही नहीं है। आजकल लोग हर बात से डर जाते हैं।

डॉक्टरों की माने तो अभी सोमेटिक डिसऑर्डर रोगियों की संख्या में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और ऐसे लोग जो फील्ड में जुटे हैं, उनके अलावा जो लोग घरों में बंद हैं, उन्हें भी यह डर सता रहा है। कि कहीं वे कोरोना की गिरफ्त में तो नहीं आ गये। ये लोग बिना किसी विशेष कारण के डरे हुए है, भयभीत महसूस कर रहे है और परेशान हो रहे है।

मनोचिकित्सकों के अनुसार इससे बचने के लिए सुबह व्यायाम करे,ध्यान, योग करें या किताबें पढ़ें। घर के अंदर या कमरे में घूमें। घर से आफिस का काम कर रहे हैं तो कुछ अंतराल में ब्रेक देते रहे। शाम को भी जब भी समय मिले हल्का व्यायाम करें, जिससे दिमाग दूसरी तरफ जाएगा। तथा रोजाना गर्म पानी का सेवन करे तथा यदी संभव हो तो गिलोई, अदरख आदि रोग प्रतिरोधक औषधियों के काढे का सेवन करते रहे जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। कोरोना पर खबरें पढ़े, देखे लेकिन उसका समय निश्चित करें। परिवार के साथ समय बिताएं और सुरक्षा रखें।

कोरोना न होने के बावजूद भी लोगों को इसका डर है। इसलिए उनकी रात की नींद भी पूरी नहीं हो रही है। लोगों को समझना होगा कि कोरोना के मरीज बहुत कम है। यदि खुद की और परिवार की सुरक्षा रखी जाए तो इससे बचा जा सकता है। कोरोना प्रत्येक व्यक्ति को नहीं होता। किसी भी व्यक्ति की यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है तो उसे कोरोना नहीं हो सकता है। यदि हुआ भी है तो वह आसानी से निकल जाएगा और व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा। यदि आप लॉकडाउन में हैं और किसी के संपर्क में नहीं आ रहे हैं तो आपको कोरोना नहीं हो सकता।
-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Wednesday, 29 July 2020

बाजारों की सांसे फूल रही है (व्यंग्य आलेख) - संदीप सृजन

बाजारों की सांसे फूल रही है
(व्यंग्य आलेख)
कोरोना के चलते भारत में लॉकडाउन के लगभग दो माह पूरे होने को है। देश संकट के दौर से गुज़र रहा है। दुनिया के विकासशील कहे जाने वाले देशों में सबसे आगे रहने वाले भारत की अर्थव्यवस्था लॉकडाउन से पूरी तरह से चरमरा गई है। अभी कोई उपाय भी नहीं दिखता कि जल्दी से ये व्यवस्था सुधर जाए। क्योंकि वर्तमान की परिस्थिति में इस महामारी का एकमात्र इलाज है, और वह है स्वयं को इसके प्रकोप से बचाना होगा। जब तक लॉक डाउन है तब तक तो हम घरों में सुरक्षित हैं। पर लॉकडाउन के बाद जीवन पिंजरे से छूटे पंछी की तरह उड़ान भरने लगेगा। जो कि जनजीवन के लिए घातक सिद्द होगा। लेकिन करे भी तो क्या, पहली प्राथमिकता जान बचाना है, तो जान तो बचा ली। लेकिन जान आगे तभी बची रहेगी जब खाना मिलेगा। और खाना तब मिलेगा जब व्यापार की गाड़ी पटरी पर आएगी।

इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। व्यापार जगत में चारों तरफ संकट दिखाई दे रहा है। देश में अनिवार्य चीजों का उत्पादन हो रहा है वह भी जान पर खेलकर। देश की रौनक माने जाने वाला खुदरा व्यवसाय पूरी तरह घुटने टेक चुका है। व्यापारियों के पास अपने नियमित कर्मचारियों और मजदूरों को देने के लिए पैसा नहीं है। छोटे दुकानदार जो गली-मोहल्लों में छोटी सी दुकान लगा कर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे, उनके घरों में अब राशन खत्म होने को है। बड़े शोरुम और मॉल में लाखों की पूंजी लगाकर बैठे दुकानदारों को घर बैठे ये चिंता खाए जा रही है कि दुकान का किराया, कर्मचारियों का वेतन, और लोन का ब्याज किस तरह दिया जाएगा।

लॉकडाउन जिस समय शुरु हुआ वह भारत में शादी ब्याह और पारिवारिक उत्सवों का दौर था। आगे अच्छे व्यापार की संभावनाओं को लेकर देशभर के कपड़ा, बर्तन, इलेक्ट्रानिक, फर्नीचर, ज्वेलरी, कास्मेटीक व्यापारी बड़ा स्टॉक कर चुके थे। अब उस स्टॉक को देख कर कईयों की सांसे फूल रही है। क्योकि एक महिने बाद बरसात की शुरुआत हो जाएगी। बरसात के दिनों में इस तरह के व्यापार की संभावना नहीं होती है। रेस्टोरेंट, होटल के व्यवसाय की तो दिवाली से पहले शुरुआत होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। और अन्य खाने-पीने के समान बेचने वाले, आईसक्रीम, कोल्ड्रिंक्स, आदी के ठेले लगाकर सीजन का व्यापार करने वालों के सारे अरमान धरे के धरे ही रह गये है।

बीस लाख करोड़ का सरकारी पैकेज कुछ लोगों को थोड़ी राहत दे सकता है। लेकिन खुदरा व्यवसायियों और छोटे दुकानदारों को इससे क्या लाभ होगा? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। इस सरकारी पैकेज के बहाने सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘लोकल के लिए वोकल’ जैसी कुछ योजनाओं को जनता के समाने रखा है जो भविष्य में देश के लिए कारगर सिद्ध होगी। इसमे कोई दो मत नहीं है। ये योजनाएँ देश की अर्थव्यवस्था को आने वाले समय में मजबूत करेगी। पर वर्तमान में व्यवसायियों की समस्या इससे हल होगी, ऐसा लगता नहीं है। सरकारी नफे-नुकसान के आंकड़े अर्थशास्त्रीयों और राजनेताओं के भले ही समझ में आ जाए लेकिन भूखे पेट बैठे मजदूर, और सैकड़ों लोगों के जीवन की धूरी बनकर रहने वाले छोटे व्यापारी को न कभी समझ आए है और न आएंगे। उनका उद्देश्य घर चलाना है। और घर चलेगा तो ही देश चलेगा। आदमी अपनी जरुरत के लिए कमाता भी है और टेक्स देता है। इसलिए आज करोना की उलझन के बीच जरुरत है व्यापार को पटरी पर लाने की।

मल्टीनेशन कंपानियों ने तो वर्क फ्रॉम होम का फार्मुला अपनाकर अपनी कार्य व्यवस्था और अपने कर्मचारियों को संभाल लिया। उनको कोई फर्क नहीं पड़ना है। बंद कमरे में वैसे भी उनके काम होते थे, अब घरों में हो रहे है। पर उद्योग और व्यापार जगत जो सीधे-सीधे बाजार को प्रभावित करता है, या कहे बाजार का आधार है वह पुरी तरह से वेंटिलेटर पर आने की तैयारी में है। बगैर कमाए कब तक उद्योगपति अपने कर्मचारी और मजदूरों को तनख्वाह दे पाएंगे। बगैर कमाए कब तक छोटे व्यवसायी और मजदूर अपने परिवार को खाना खिला पाएंगे। दो महिने से घर बैठे मन मार कर खाते रहे पर अब पूरे देश के व्यापारियों को व्यापार चाहिए। पूरे देश में व्यापारी एक ही बात करते नजर आते है। अब लॉकडॉउन में उन्हें राहत मिलना चाहिए।

वैसे भी छोटे व्यवसायी कोई बड़ा राहत पैकेज मिले इसकी इच्छा भी नहीं रखते। कारण राहत पाने के लिए जितनी खानापूर्ति करनी और जितने कागज काले करने होते है। उतने समय में वे अपने आज और कल के खाने की व्यवस्था कर सकते है। सरकारी राहत केवल ऊंट के मुंह में जीरे के समान है न कि उम्र भर की रोजी-रोटी, वैसे भी छोटे व्यवसायी अपनी किस्मत रोज अपने हाथों से लिखना जानते है। रोज कमा कर खाना उनको आता है। बस वे चाहते है कि जिन क्षेत्रों में कोरोना का प्रभाव कम है उन क्षेत्रों में सरकार अब लॉकडाउन के तरीके में बदलाव करे। कुछ जगह बदलाव किए गये भी है। जो कारगर लग रहे है। कुछ शहरों में दुकानों को खोलने के अलग-अलग समय निर्धारित किए गये है। ताकि जरुरत का सामान लेने व्यक्ति उसी समय घर से निकले और सामान लेकर व्यर्थ बाजार घुमने की बजाए सीधे घर जाए। इस व्यवस्था से व्यापारियों को, स्थाई कर्मचारियों को, बाजार में हम्माली करने वालों को, घरेलू उद्योग करने वालों को, उत्पाद को बाजार तक पहुँचाने वालों को, खुली मजदूरी करने वालों को, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों को राहत मिलेगी। वर्तमान युग में जीवन भी तभी रहता है जब आजीविका चालु रहे। कमाई होगी तो ही लोग खाएंगे, जरुरत की चीजें खरीदेंगे और तभी धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था भी गति पकडेगी।
वैज्ञानिको के अनुसार कोरोना को लेकर जितना एहतियात देश की जनता आज बरत रही है। उतना ही आने वाले समय में भी बरतना होगा। तो फिर क्यों न इस एहतियात भरे भविष्य को स्वीकार करके सरकार देश को पटरी पर लाने की पहल करे। बाजार खोलने के लिए चाहे ऑड-इवन पालिसी हो या टाईम मैनेज पालिसी। दोनों में से एक व्यवस्था को क्षेत्र की व्यवस्था के हिसाब से लागु करना ही होगा । बाजार खोलने की शुरुआत इसी तरह होगी तो ही भीड़ भी नियंत्रीत होगी। धीरे धीरे पुरा बाजार खुल सकेगा और पैसे की आवक जावक बाजार में होगी।

बगैर पैसे के आज के युग में जीवन की कल्पना संभव नहीं है। और पैसा तभी हाथ में आता है जब काम चले, व्यापार चले, सरकार भी तभी चलती है जब टेक्स आता है। और टेक्स के लिए व्यापार का चलना जरुरी है। लॉकडाउन के कारण छोटे- बड़े सभी उद्योग,धंधे बंद है। कोरोना न फैले इसके लिए ये जरुरी भी था। लेकिन अब उद्योग धंधे करने वालों की सांसें फूलने लगी है। घर में बैठ कर अब खर्चा नहीं चलाया जा सकता है। अब जरुरत इस बात की है कि लॉकडाउन से कैसे बाहर निकले। जानकारों का मानना है कि महामारी पर विजय तो तभी मिलेगी जब इसका कोई इलाज या वैक्सीन बन कर आ जाए। तब तक लॉकडाउन तो नहीं रखा जा सकता है? हॉ व्यापारिक स्थल के तौर-तरीकों में बदलाव ला कर काफी हद तक इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। और देश बचाया जा सकता है।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Wednesday, 27 November 2019

दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई (व्यंग्य) - संदीप सृजन

दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई

(व्यंग्य)

दिवाली वैसे तो खुशी का त्योहार है, हर कोई चाहता है की उसके जीवन में दिवाली आए पर कुछ लोगो को लगता है कि भगवान करे इस बार दिवाली नहीं आए क्योंकि दिवाली आने के पहले ही उनको टेंशन शुरू हो जाती है और दिवाली के बाद तो उनका जीना हराम हो जाता है। उनने उधार किराना, राशन देने वाले को, दूध वाले को, काम वाले को, यहॉ तक की अपनी पत्नी को, बच्चों को और हर किसी को बस यही कहा है कि दिवाली बाद करेंगे। बेचारे दिवाली बाद के कामों की लिस्ट बनाने लगे तो होली आ जाए पर लिस्ट पूरी नही हो।

दिवाली के बाद क्या-क्या करना है,करने वाले कामो की श्रंखला इतनी लंबी है कि चार जन्म इस धरा पर वो ले तो भी पूरी नहीं होगी। दिवाली नहीं हुई तब तक तो एक आड़ थी की दिवाली हो जाने दो फिर करते है । न जाने कितने वायदे दिवाली की आड़ में धक रहे थे। जिनको पूरा करने का समय भगवान करे कभी न आए। पर अब तो ये दिवाली भी गई मतलब अब बहाना बनाने के लिए होली से पहले कोई त्योहार नहीं और कुछ बहाने ऐसे होते है जो केवल दिवाली से जुड़े होते है उनको होली के लिए टाल नहीं सकते। 

सालभर राशन किराना उधार देने वाला या वक्त जरुरत नगद मदद करने वाला दिवाली के बाद कुछ दिन और ज्यादा से ज्यादा देव दिवाली तक मन मार कर नही मांगेगा पर फिर तो मांगेगा ही और कोई बहाना भी उनके पास नहीं होगा। या तो करार हो गया चुकारा करो या मुंह छुपाओ और कोई इलाज नहीं। क्योंकि देने वाल जानता है कि दिवाली पर नहीं मिला तो अगली दिवाली तक इंतजार करना पड़ेगा। और इंताजार का एक पल भी दिनों के समान होता है,वे और हम सब जानते है।

उनकी सेहत की एक मात्र शुभ चिंतक याने उनकी धर्मपत्नी का सुबह घुमने जाने के लिए किया जाने वाला तगादा,जो उनके फेसबुक और व्हॉटसएप चलाते हुए दिनभर सोफे पर पड़े रहने के कारण बढ़ी तोंद को कम करने के लिए होता है,शुरु हो गया। शायद उनकी तोंद कम करने से ज्यादा घर के सुबह के काम शांति पूर्वक कर सके इसका आग्रह भी होता है सुबह घुमने के कठोर आग्रह में। ये काम बिना किसी ना नुकुर के दिवाली बाद शुरु हो गया। क्योकि दिवाली के पहले से ही रेड अलर्ट इस मामले में जारी कर दिया गया था और भाई दूज के एक दिन पहले से ही अपने पीहर वालो के सामने उनको बेइज्जत नहीं करने और उनके सम्मान के इरादे से सचेत कर दिया गया था। तथा धमकी के साथ सुबह 5 बजे का अलार्म लगा दिया जा रहा है। वे भी घरवाली की मनुहार और अपनी तोंद के सामने नत मस्तक होकर मन मार कर घुमने का संकल्प ले कर घर से निकल जाते है। कुछ घुमना, कुछ घुमाना हो जाता है सुबह-सुबह, पर नहीं मिलता है तन-मन को चैन कारण दिनभर याद आते है दिवाली बाद के इकरार और और उनके पुरे करने के लिए क्या जुगाड़ करना है। कई बार लगता है दिवाली क्या गई जीना हराम कर गई ।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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Wednesday, 1 April 2020

बचिए और बचाइए (दोहे) - संदीप सृजन

बचिए और बचाइए 
(दोहे)

चाल चली इक चीन ने, बिगड़े सबके हाल।
कोरोना यह वायरस, बना जीव जंजाल।

सारा जग इससे दुखी, किसे सुनाये पीर।
कोरोना ने कर दिए, हाल बहुत गंभीर।।

भारत का जन-जन करे, मिलकर बड़े प्रयास।
बिना मास्क छोड़े नहीं, अपना कभी निवास।।

हाथों को धोते रहे, सैनेटाइज साथ।
कीटाणु से मुक्त रहे, हर पल अपने हाथ।।

सर्दी और जुकाम संग,भारी हो गर सांस।
बिन देर किए पंहुचे,तुरन्त डॉक्टर पास।।

बचिए और बचाइए, कोरोना से आज।
इक्किस दिन तक छोडकर, अपने सारे काज।।

चौपालें सूनी करे, करे सड़क वीरान।
देश बचाने के लिए,दे बड़ा योगदान।।

कोरोना से बच गये, तो होंगे त्यौहार।
दीप जलेंगे आंगन में, जगमग होंगे द्वार।।

आओ मिलकर के करे, कोरोना संहार।
संयम से जीवन जिए, दूर सभी व्यवहार।।

इंसा है तो देश है, और देश का ताज।
पहले रक्षा स्वयं की, फिर पूजा व नमाज।।-०-
संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Sunday, 26 January 2020

“हम भारत के लोग” (कृति चर्चा) - संदीप सृजन


“हम भारत के लोग”
भारतीय गणतंत्र की दास्तान कहती कृति
(आलेख)
भारतीय गणतंत्र की स्थापना के 70 वें साल में वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद् डॉ. देवेन्द्र जोशी की हाल ही में प्रकाशित हुई कृति “हम भारत के लोग” में उनके द्वारा गणतंत्र की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को सप्रमाण सचित्र उभारा गया है। पुस्तक की शुरूआत हम भारत के लोग से शुरू होने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना से होती है, इस कारण पुस्तक को नाम दिया गया है “हम भारत के लोग”। पुस्तक के आमुख में भारतीय संविधान की विशेषताएं दी गई है। वहीं पुस्तक के मूल में भारतीय गण है जिसकी वर्तमान स्थिति को अलग - अलग नजरिए से पाठकों के समक्ष लाने की कोशिश की गई है। 

डॉ देवेन्द्र जोशी की नितान्त मौलिक परिकल्पना पर आधारित इस अत्यंत श्रमसाध्यपूर्ण कृति में उनकी प्रखर कलमकारी के दर्शन होते हैं। गणतंत्र के गण की नब्ज को लेखक ने 20 भारतीय चरित्रों के माध्यम से टटोलने की रचनात्मक चेष्टा की है। पुस्तक गणतंत्र के गण के रूप में देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर आम जन तक सबकी खबर लेती है। पहली पड़ताल में डॉ जोशी प्रश्न उठाते हुए लिखते है- “ देश में अरबपतियों की संख्या सिर्फ 101 ही क्यों है? देश में प्रतिवर्ष अर्जित की जाने वाली कुल सम्पत्ति के 73 प्रतिशत हिस्से पर केवल 1 प्रतिशत अमीरों का ही कब्जा क्यों है?”

कृति मे 20 अध्यायों के माध्यम से भारत की वर्तमान स्थिती पर प्रकाश डाला गया है जिनके नाम किसान, मजदूर, सैनिक, पुलिस, गरीब - अमीर,आदिवासी, कैदी, डॉक्टर, नेता, बाल मजदूर, नवजात शिशु, विधवा, महिला सुरक्षा, युवा, वृद्ध, साधु, भीड, जनता और राष्ट्रपति दिए गये है, जो कि सभी एक शब्द के है। और भारत के अभिन्न लोग है। भारत निर्माण की बात यदी की जाए तो इन सभी के योगदान के बगैर भारत का निर्माण संभव नहीं है। लेकिन भारत में गणतंत्र की स्थापना के 70 साल बाद भी अगर किसान आत्म हत्या कर रहे है, युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं, महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही है, मजदूर मेहनताने के लिए संघर्षरत हैं, गरीब - अमीर की खाई चौडी होती जा रही है, निरीह लोग भीड की हिंसा क शिकार हो रहे हैं,विधवाएं बदतर जिन्दगी जीने को अभिशप्त हैं, साधु संत समाज को दिशा देनेके बजाय अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, नेता अपनी कुर्सी बचाने और डॉक्टर मरीज का खून चूसने में लगे हैं तो प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर कब परिपक्व होगा भारत का गणतंत्र ? 

डॉ जोशी की यह पुस्तक सवाल ही नहीं खडे करती उनका समाधान भी देती है। गणतंत्र की दास्तान होने के बावजूद यह एक प्रामाणिक कृति है क्योंकि हर बात पूरी जिम्मेदारी के साथ भारत सरकार के प्रमाणित आंकडों के आधार पर कलमबद्ध की गई है। सीधी सरल भाषा, रोचक शैली और उत्कृष्ट कलमकारी के साथ प्रस्तुत यह पुस्तक हम भारत के लोग का यथार्थ चित्र उपस्थित करने के साथ ही पाठकों के ज्ञान में वृद्धि भी करती है। हम भारत के लोग को गणतंत्र के 70 वें साल में गण की दास्तान को लिपिबद्ध करने की एक अभिनव कोशिश के रूप में स्वीकारा जाना चाहिए। डॉ जोशी इस कृति को सामाजिक और राजनैतिक जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से समाज को सौप रहें है। यह कृति आज के लिए लिए है, वर्तमान स्थिती पर है, जो कि भारत के भविष्य को उज्जवल बनाने का मार्गदर्शन करती नजर आती है।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Monday, 16 March 2020

रिसॉर्ट का खेल (व्यंग्य आलेख) - संदीप सृजन

रिसॉर्ट का खेल
(व्यंग्य आलेख)
मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट का खेल अभी चल रही है वह पुरे देश में चर्चा में है। कुछ लोग तो ऐसे है जिन्होंने रिसॉर्ट का नाम ही इससे पहले कभी सुना नहीं था। हॉ इससे पहले फार्म हाऊस प्रयोग राजनीति में होते रहे है। लेकिन अबकि बार मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट प्रयोग हुआ उसके कारण इन रिसॉर्टस् की वैल्यू में बढ़ोतरी हुई है। सिंधिया समर्थकों को बैंगलोर, कांग्रेस समर्थकों को जयपुर, भाजपा समर्थकों को हरियाणा के रिसॉर्ट में ले जाया गया। तो मीडिया में सुबह से लेकर देर रात तक केवल रिसॉर्ट पर ही चर्चा का दौर चल रहा है।

पिछले कुछ सालों से रिसॉर्ट का नाम जिस तरह से हमारे देश की राजनीति में स्थापित हुआ है। उससे लगता है कि ये स्थान देश के बड़े शहरों में किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। रिसॉर्ट अब राजनीति के केन्द्र बन गये है। जिसके पास भी थोड़ा रसूख है और बीस-पच्चीस एकड़ जमीन है वो सबसे पहले अपने फार्महाऊस को रिसॉर्ट बनना चाहता है। चाहे भी क्यों नहीं आखिर एक न एक दिन उनका रिसॉर्ट भी राजनीति का महातीर्थ बन सकता है और प्रदेश या देश की सरकार बदलने में अहम योगदान दे सकता है। और भविष्य में ऐतिहासिक स्थल का दर्जा पा कर लोक पर्यटन का अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक बन सकता है। कोरोना जैसा अन्तर्राष्ट्रीय वायरस भी रिसॉर्ट राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। टॉप पर रहने वाला कोरोना परोक्ष में चला गया।

रिसॉर्ट से जब भी राजनीति के प्यादों के कम-ज्यादा होने के नये आंकड़े आते है तो देश-विदेश का मिडिया बड़े चटखारे लेकर आंकड़ों का कम रिसॉर्ट के बाहर से उसकी भव्यता का बखान ज्यादा करता है, कईं बार समझ ही नहीं पाते है कि हम समाचार देख रहे है या रिसॉर्ट का विज्ञापन। न्यूज़ रिपोर्टर इस रिसॉर्ट महातीर्थ की बार-बार महिमा बता कर आपके और मेरे जैसा सामान्य आदमी पर पारिवारिक दबाव बनवाकर जीवन में एक बार यहॉ की यात्रा को मजबूर कर देता है। घर के लोग भी एक स्वर में इस महातीर्थ की यात्रा यह सोच कर करने को आतुर रहते है कि मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा धरती का स्वर्ग तो ये रिसॉर्ट ही है, आओ यही देख ले। और अपने मन को तृप्त कर ले।

वैसे सामान्य जन की तो औकात ही क्या जो यहॉ की सैर करे, यदा-कदा ब्याह-शादी में मेहमान बन कर गये होंगे या जीवन में 1-2 बार अपने निजी खर्च पर बच्चों और पत्नी की जिद के सामने कसमसाते हुए गये होंगे। लेकिन जो लोग विधायक और सांसद बनते है उनको तो अपने कार्यकाल के दौरान इस दिव्य जगह जाने का सुख स्वतः ही मिलने लगा है और हफ्तों मजा लेने का देव दुर्लभ मौका पार्टी के खर्च पर ही मिल जाता है। वो भी वीआईपी आवभगत के साथ। बिना घरवाली या घरवाले के घर से बेहतर माहौल वाले ये तीर्थ स्थान वैसे तो इन नेताओं के लिए बंदीघर है, लेकिन जब नरक में भी अप्सराएँ सोमरस का पान कराए तो उस स्थान को भी सामान्यजन स्वर्ग से कम नहीं मानेगे। रिसॉर्ट वैसे भी धरती पर स्वर्ग जैसा आनंद लेने के लिए बनाए गये है। और सब जानते है की स्वर्ग जाने के लिए मरना जरुरी है । मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता। इन रिसॉर्ट में कैद हुए विधायक जानते है कि वे स्वर्ग में है या नरक में और रिसॉर्ट मुक्त होने के बाद वे पुण्य फल बांटेंगे या पाप का प्रसाद ये तो भविष्य ही बताएगा।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Tuesday, 24 December 2019

समाज में मनुष्यता के प्रतिस्थापक भगवान पार्श्वनाथ (आलेख) - संदीप सृजन

समाज में मनुष्यता के प्रतिस्थापक भगवान पार्श्वनाथ
(आलेख)
सनातन धर्म की पावन गंगोत्री से निकले विभिन्न धर्मों में जैन धर्म भारत का सर्वाधिक प्राचीनतम धर्म है। चौबीस तीर्थकंरों की समृद्ध जनकल्याण की परम्परा, जो वर्तमान अवसर्पिणी काल में ऋषभदेव से लेकर महावीर तक पहुंची, उसमें हर तीर्थंकर ने अपने समय में जिन धर्म की परम्परा को और आत्मकल्याण के मार्ग को समृद्ध किया है तथा संसार को मुक्ति का मार्ग दिखाया है।

काल के प्रवाह में ऐसा होता आया है कि एक महापुरुष के निर्वाण के बाद उसका प्रभाव तब तक ही विशेष रूप से जन सामान्य में रहता है जब तक की उसके समान कोई अन्य महापुरुष धरती पर अवतरित न हो। लेकिन कुछ महापुरुष इसका अपवाद होते है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में तेवीसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के बाद भगवान महावीर हुए लेकिन भगवान पार्श्वनाथ के प्रभाव में कोई कमी आज तक नहीं आई है। जैन मान्यताओं के अनुसार वर्तमान में भगवान महावीर का शासन चल रहा है लेकिन सर्वाधिक जैन प्रतिमाएँ आज भी केवल भगवान पार्श्वनाथ की ही है। जैन मंत्र साधनाओं में भी सर्वाधिक महत्व पार्श्वनाथ के नाम को ही दिया जाता है।
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म भगवान महावीर के जन्म से 350 वर्ष पहले हुआ। सौ वर्ष की आयु उनकी रही तदानुसार लगभग तीन हजार वर्ष पहले वाराणसी के महाराजा अश्वसेन के यहॉ माता वामा देवी की कुक्षी से पोष कृष्ण दशमी को हुआ। राजसी वैभव के बावजूद आत्मा में असीम करुणा का भाव जो सांसारिक जीवन में उनको लोकप्रिय बना देता है। वे उस दौर के तमाम आडम्बरों के बीच एक कमल पुष्प थे। धर्म और समाज में फैली हिंसा और कुरीतियों के बीच एक धर्म पुरोधा थे। जो मनुष्य समाज में मनुष्यता के गुण करुणा, दया, अहिंसा के जीवन की प्रतिस्थापना करने को आए थे।
जैन धर्म ग्रंथो में एक प्रसंग आता है- जब भगवान पार्श्वनाथ मात्र उम्र सोलह वर्ष थे तब वाराणसी नगरी में एक तापस आया जो नगर के मध्य अग्नी तप कर रहा था। और सारा नगर उस तापस के इस हठ योग से प्रभावित हो कर उसके दर्शन के लिए जा रहा था। ऐसे में लोक व्यवहार अनुसार पार्श्वकुमार भी वहॉ पहुंचे। तभी उन्होने अपने ज्ञान से देखा की तापस ने जो लकड़ी अपने सामने जला रखी है उसमें नाग नागिन का जोड़ा है, और वो जल रहा है। पार्श्वकुमार ने तापस से कहा कि- योगी आपके इस हठ योग में जीवों की हिंसा हो रही है। इस पर तापस क्रोधित हो गया और अशिष्ठ भाषा का प्रयोग पार्श्वकुमार के प्रति किया। तभी पार्श्वकुमार ने अपने कर्मचारी को आदेश देते हुए काष्ठ के उस टुकड़े को आग से निकालने कर उसे चीरने को कहा, जैसे ही कर्मचारी ने लकड़ी को चीरा उसमें से जलता हुआ नाग नागिन का जोड़ा निकला जो मरणासन स्थिती में पहुँच चुका था । पार्श्वकुमार ने जलते नाग नागिन के प्रति अपनी करुणा बरसाते हुए उनको नमस्कार महामंत्र सुनाया और बोध दिया कि वैर भाव को त्याग करे और समाधी मरण का वरण करे। पार्श्वकुमार की वाणी उस समय उस सर्प युगल के लिए किसी अमृत से कम नहीं थी। क्योंकि कहा जाता है ‘अंत मति सो गति’। पार्श्वकुमार के वचनों से उनके मन से वैर भाव खत्म हुआ और वे समाधी मरण को प्राप्त कर देव लोक में धरणेन्द्र और पद्मावती नाम से इन्द्र और इन्द्राणी बने। जो की भगवान पार्श्वनाथ के जीवन काल में हर समय उनके साथ रहे और माना जाता है कि आज भी भगवान पार्श्वनाथ का स्मरण करने वाले के साथ रहते है।
भगवान पार्श्वनाथ करुणावतार तो थे ही वे कर्मावतार भी थे उन्होने अपने सत्तर साल के दीक्षा पर्याय में कभी किसी से सहायता की याचना नहीं की अपने तपोबल के माध्यम से केवल ज्ञान को प्राप्त किया। और मोक्ष को गये। भगवान पार्श्वनाथ कर्मकांड और आडम्बर को धर्म नहीं मानते थे वे जीवंत धर्म को ही धर्म मानने और उसकी प्रतिस्थापना करने के लिए धरा पर आए थे। उन्होंने करुणा, दया, परोपकार और जगत कल्याण के कार्यों को धर्म बताया और उसी तरफ जगत के जीवों के ले जाने के लिए उपदेश दिया। भगवान पार्श्वनाथ का जन्मकल्याणक मनाते हुए हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Saturday, 26 October 2019

महावीर का निर्वाणोत्सव: ज्ञान का प्रतीक है प्रज्जवलित दीपक (आलेख) -संदीप सृजन

महावीर का निर्वाणोत्सव

ज्ञान का प्रतीक है प्रज्जवलित दीपक 
(आलेख)

दीपावली का पर्व भारतीय सनातन परम्परा का लौकिक और अलौकिक पर्व माना गया है। लौकिक स्वरूप में जहॉ खानपान, वैभव और उत्साह का वातावरण इस पर्व को प्रमाणिकता प्रदान करता है। वहीं अलौकिक रूप में यह पर्व आत्मोकर्ष का प्रमुख पर्व है। लौकिक और अलौकिक के बीच तंत्र साधकों के लिए परालौकिक स्वरूप भी इस पर्व का है। लेकिन जन सामान्य के लिए लौकिक और अलौकिक इन दो रूपों में ही इसकी महत्ता है। सनातन धर्म की वैष्णव परम्परा में भगवान राम का अयोध्या आगमन उत्सव लौकिकता तो श्रमण परम्परा (जैन धर्म) में भगवान महावीर का निर्वाण अलौकिकता का स्वरूप है। 

कार्तिक अमावस्या की रात्री में भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इस दिन महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है।अपनी आयु के 72 वें वर्ष में जब महावीर पावापुरी नगरी के मनोहर उद्यान में चातुर्मास के लिए विराजमान थे। तब चतुर्थकाल पूरा होने में तीन वर्ष और आठ माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान भगवान महावीर अपने औदारिक शरीर से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए। उस समय इंद्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावा नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उसी समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है। प्रतिपदा के दिन भोर में महावीर के प्रथम शिष्य गौतम को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इससे दीपोत्सव का महत्व जैन धर्म में और बढ़ गया। 

भगवान महावीर अरिंहत है, और अरिहंत को संसार में गुरु के रूप में माना जाता है। भगवान महावीर के सिद्द गमन को तब विद्वजनों ने ज्ञान दीप का राज होना (बुझना) माना और मिट्टी के दीप प्रज्जवलित कर संसार को आलोकित करने का प्रयास किया था।भगवान महावीर ने दीपावली वाले दिन मोक्ष जाने से पहले आधी रात तक जगत के कल्याण के लिए आखिरी बार उपदेश दिया था, जिसे 'उत्तराध्यान सूत्र' के नाम से जाना जाता है। इस ग्रंथ में सर्वाधिक बार कोई वाक्य आया है तो वह है ‘समयं गोयम ! मा पमायए’गौतमस्वामी कोजो कि भगवान महावीर के प्रधान शिष्य थे, प्रधान गणधर थे, उनको संबोधित करते हुए यह प्रेरणा महावीरने दी कि आत्मकल्याण के मार्ग में चलते हुए क्षण भर के लिए भी तू प्रमाद मत कर। ढाई हजार वर्ष पहले दी गई वह प्रेरणा कितनी महत्त्वपूर्ण है। प्रमाद अज्ञानता की ओर ले जाता है।ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया- 'नाणं पयासयरं' अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है। इसीलिए ज्ञान को प्रकाश और अज्ञान को अंधकार की उपमा दी जाती है । दीपक हमारे जीवन में प्रकाश के अलावा जीवन जीने की सीख भी देता है, दीपक हमारे जीवन की दिशा को उर्ध्वगामी करता है, संस्कारों की सीख देता है, संकल्प की प्रेरणा देता है और लक्ष्य तक पहुंचने का माध्यम बनता है।दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है, जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही।

उपनिषदों में भी कहा गया है- ‘असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय॥‘अर्थात-मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ इस प्रकार हम प्रकाश के प्रति, सदाचार के प्रति, अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए आदर्श जीवन जीने का संकल्प करते हैं।आज के समय में चारों ओर फैले अंधेरे ने मानव-मन को इतना कलुषित किया है कि वहां किसी दिव्यता, सुंदरता और सौम्यता के अस्तित्व की कोई गुंजाइश नहीं बचती। परंतु अंधकार को चीरकर स्वर्ण-आभा फैलाती प्रकाश की प्राणशक्ति और उजाले को फैलाते दीपक की जिजीविषाअद्‍भूत है।

दीपावली का संदेश जितना अध्यात्मिक है उतना ही भौतिक भी है। राम, महावीर, दयानंद सरस्वती, नानकदेव आदी कई महापुरुषों के जीवन की विशिष्ट घटनाएँ इस पर को अलौकिक बनाती है। और सभी के ज्ञान का सम्मान दीपक के रूप में किया जाना सभी के आदर्षों को स्वीकार कर जीवन को उत्साह पूर्वक जीना इस पर्व को भौतिक रूप से समृद्ध करता है।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन 456006

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Monday, 6 April 2020

महावीर के सिद्धांत श्रेष्ठतम उपाय है कोरोना को हराने में (आलेख) - संदीप सृजन

महावीर के सिद्धांत श्रेष्ठतम उपाय है कोरोना को हराने में
(आलेख )
आज सारा विश्व कोरोना की चपेट में है, सभी देश अपने-अपने स्तर पर प्रयासों से इसे हराने में लगे हुए है। इस विश्वव्यापी समस्या से निपटने में विश्व के सभी देशों के बीच में भारत एक महाशक्ति बनकर उभरने की तैयारी में है। भारत विश्व की एक तिहाई जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भी कोरोना पर विजय प्राप्त करने की तैयारी में है। जहॉ विश्व कोरोना के सामने घुटने टेक रहा है वहॉ यह कैसे संभव हुआ। आज सारा विश्व अचंभित है। और भारत की तरफ ही नजरें लगाए देख रहा है। यदि हम देखे तो इसका मूल कारण भारतीय संस्कृति और सनातन परम्परा में होने वाले दिव्य महापुरुषों के द्वारा सुझाए गये वे सिद्दांत है। जो हर समय जीव और जगत के कल्याण के लिए बनाए गये थे।

आज से 2619 वर्ष पूर्व भारत में एक ऐसे महामानव का जन्म हुआ। जो स्वयं के कल्याण से ज्यादा जगत के कल्याण का भाव मन में ले कर जन्मे। जो जन्मे तो राज महल में पर अपने कर्मों से लड़ने के लिए तीर्थंकर ऋषभदेव की परम्परा में वैराग्य के पथिक बने और बगैर दैविक और भौतिक सहयोग के कर्म जंजालों को तोड़ते हुए समाज में नई दिशा का सूत्रपात कर गये। वह राजकुमार थे वर्धमान जो दुनिया में जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के नाम से जाने जाते है। महावीर की उपाधि वर्धमान कुमार को यूँ ही नहीं दी गई है। वे कर्म करने में विश्वास रखते थे, स्वंय ने अपने तप के बल कर्मों पर विजय प्राप्त की थी और दूनिया को भी कर्म करने का संदेश दे गये । इसीलिए उनको श्रमण भी कहा गया है।

महावीर ने मार्ग दिखाया वे किसी के हमराही नहीं बने और न ही उन्होंने किसी को अपना हमराही बनाया, महावीर ने कहा- “धार्यते इति धर्मः” अर्थात जो धारण किया जाए वह धर्म है। शरीर जिसे धारण करे वह वस्त्र है, उसी तरह आत्मा जिसे धारण करे वह धर्म है। और धर्म को जो धारण करता है वह कभी किसी का अहित नहीं करता है, वह अहिंसक होता है। याने जैसा मैं हूँ वैसे ही अन्य जीव है। जैसा मेरा शरीर है, वैसा ही दुसरों का शरीर है। जैसी मेरी आत्मा है, वैसी ही दुसरों की आत्मा है। जैसे कोई मुझे मारता है तो दर्द होता है, वैसे ही मैं दुसरे को मारुंगा तो उसे भी दर्द होगा। जैसे कोई मुझे गलत कहता है, तो मुझे बुरा लगता है, वैसे ही मै दूसरे को कहूंगा तो उसे भी बुरा लगेगा। अहिंसा इन्हीं वेदना और संवेदना का एकाकार रूप है। दुसरों के दुख की अनुभूति जिसे है। वही सच्चा धर्मी है।
कोरोना की रोकथाम के लिए जितने उपाय विश्व स्वास्थ संगठन और हमारे प्रधानमंत्री की पहल पर किए जा रहे है, वे सब महावीर के अहिंसा सिद्धांत का ही विस्तार है। महावीर ने 2600 वर्ष पहले कहा था सामान्य स्थिती में भी मनुष्य को स्वच्छता का पालन करना चाहिए। जिनमे शरीर, वस्त्र, आहार, भूमि और मन की शुद्धता प्रमुख है। महावीर के सिद्धांतों पर केंद्रित 21 दिवसीय लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस की पहल सराहनीय है। इसके कारण जहां शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आम व्यक्ति प्रयासरत है। वही आहार और वस्त्र शुद्धि भी स्वतः ही हो रही है। आसपास का परिवेश और पर्यावरण भी इन दिनों में सुधरने के कगार पर है। और जब सारी स्थितियां मनुष्य के लिए सकारात्मक होने लगेगी तो मन का शुद्ध होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है यह उल्लेख हमारे यहां के प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है। आज व्यक्ति चाहे आर्थिक और पारिवारिक और सार्वजनिक गतिविधियों से दूर है। लेकिन उसे अपने आप को समझने का, अपने आप को सुधारने का, अपने आपको जानने का एक अवसर मिला है। महावीर भी यही कहते थे कि अपने आप को जानो। जो अपने आप को जान लेगा वह संसार को जान लेगा। आप यदि स्वयं सुधरे है, स्वयं साफ-सुथरे हैं। तो दूसरों को भी साफ सुथरा रहने के लिए प्रेरित करेंगे। आप स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हैं। तो दूसरों को भी स्वास्थ्य के लिए सचेत करेंगे।

महावीर का हर सिद्धांत 'जियो और जीनो दो' पर आधारित है। आज हम परिग्रह के चक्रव्यूह में उलझे है। लेकिन इस 21 दिन के लॉकडाउन से अपरिग्रह को समझने और अपनाने का अवसर मिला है। जो मेरा है वो सबका है। मुझे जितना चाहिए वो मिल गया दुसरों के अधिकारों पर मैं क्यों कब्जा करुं। यह जिसने समझ लिया उसके लिए सारा संसार अपना घर परिवार होगा। और हमारी“वसुधैव कुटुम्बकम्” अवधारणा साकार हो जाएगी। महावीर ने कहा कि उतना रखो जितनी आवश्यकता है, यानी 'पेट भरो- पेटी नहीं।'यदि आज हम महावीर के इन सिद्धांतों को मान लें और इसका अनुसरण करें तो विश्व भर में सामाजिक खुशहाली होगी। और सारे विश्व में सच्चा समाजवाद स्थापित हो सकेगा।

महावीर ने संसार को अनेकान्तवाद का आदर्श पाठ सिखाया। यानी मैं जो कह रहा हूं। वह भी सत्य है और जो दूसरे कह रहे हैं वह भी सत्य हो सकता है। हम हर तरफ अपनी आंख और कान खुले रखें। देश-विदेश हो, समाज हो, जाति हो या परिवार आपसी संघर्ष का मुख्य कारण है वैचारिक वैमनस्यता। लेकिन अनेकान्तवाद ही एकमात्र औषधि है जो इस वैचारिक वैमनस्यता की बीमारी को जड़ से समाप्त कर सकती है।

कोरोना के संक्रमण को मिटाना है तो हमें अपने आप में केन्द्रीत होना पड़ेगा, सामाजिक दुरी रखनी होगी। साथ ही शरीर की शुद्धि तथा आहार की शुद्दि पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। विश्व में जो महामारी फैलाकर तीसरे विश्व युद्ध का अप्रत्यक्ष आगाज़ किया है। इससे बचे रहने के लिए महावीर के सिद्धांत ही श्रेष्ठतम उपाय है। समस्याएं महावीर के युग में भी थी, वर्तमान में भी है और आने वाले समय में भी होगी पर महावीर के दिखाए अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत का मार्ग यदी हम अपनाए तो विश्व की हर समस्या का हल हमें अपने आसपास ही मिल जाएगा। हमें कहीं और ढूढ़ने की जरुरत नहीं है।
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संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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Sunday, 26 January 2020

२६ जनवरी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभाकामनाएं

७१ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बढ़ियाँ एवं शुभकामनाएँ 
सादर प्रणाम
प्रस्तुत हैं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर सृजन महोत्सव पटल प्रकाशित रचनाएं। सभी रचनाकार और पाठक गणों का हार्दिक अभिनंदन और आभार। अपनी रचनाओं को अधिकाधिक साहित्यिक मित्रों व व्हाट्सएप्प ग्रुप में शेयर करें ताकि आपकी रचना अधिक पाठकों तक पहुंचे।धन्यवाद
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
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★★ एकता की पहचान ★★ (कविता) - अलका 'सोनी'
मेरा भारत महान (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'
भाईचारा (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
ए भारत तुझे प्रणाम (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'द...
आओ एकता का डोर बुने (कविता) - संगीता ठाकुर (नेपाल)
भारत देश महान (कविता) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"
! ग्रेसी ! (लघुकथा) - डॉ विनीता राहुरीकर
'भारत माँ की जय' (कविता) राजू चांदगुडे
संडे का खून (लघुकथा) - गोविंद भारद्वाज
“हम भारत के लोग” (कृति चर्चा) - संदीप सृजन
ज़रा याद करें (कविता) - राजीव डोगरा
ऐ मेरे मेहबूब वतन (गीत) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'
गणतांत्रिक देश हमारा..... (कविता) - रामगोपाल राही...
!! मैं देश बदलने निकला हूँ !! (कविता) - अमन न्याती...
नया अभियान करें (राष्ट्रभक्ति बालगीत) - राजेंद्र श...
आये वतन पे खतरा (कविता) - रूपेश कुमार
हिंदुस्तान हमारा है (कविता) - अलका पाण्डेय
भारत माँ की जय (कविता) - विजयानंद विजय
हे...वीर (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान
भारत की शान तिरंगा (कविता) -शुभा/रजनी शुक्ला
नन्ही कोशिश (कघुकथा) - डा. नीना छिब्बर
प्यारा वतन (कविता) - रश्मि लता मिश्रा
लिखूँ न लिखूँ (कविता) - सुशीला जोशी
आँख मेरी भर आती है (कविता) - अंजलि गोयल 'अंजू'
तिरंगा (कविता) - डॉ.नीलम खरे
राष्ट्रभक्ति (लघुकथा) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
तिरंगे का मान बढाये (कविता) - सुनील कुमार माथुर
मेरा भारत महान (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'
गणतंत्र उबल रहा है (कविता) - श्रीमती सरिता सुराणा
सुभाषचन्द्र बोस (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'
दास्तान भारत की (ग़ज़ल) - महावीर उत्तराँचली
सिर्फ लाल... (कविता) - रूपेश कुमार
आ गया गणतंत्र दिवस (कविता) - डॉ. प्रमोद सोनवानी
मिट्टी में मिल जानी है (कविता) - सरिता सरस
बलिदानी (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान
वतन हमारा (कविता) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ