तिरंगा
(कविता)
मेरा है अभिमान तिरंगा ।
सचमुच में सम्मान तिरंगा ।
शेष सभी बातें बेमानी,
मेरी तो है आन तिरंगा ।
सुखकर भी है,मंगलदायी,
हरदम मंगलगान तिरंगा ।
गर्व से फहराता है नित ही,
दिल में है जयगान तिरंगा ।
वतन रहे हरदम ही रक्षित,
दे दूंगी निज जान तिरंगा ।
रहे तिरा अस्तित्व सदा ही,
बस इतना अरमान तिरंगा ।
युगों-युगों हो तेरी सत्ता ,
रहे युं ही बलवान तिरंगा ।
तेरा गौरव ,तेरी महिमा,
नहीं कोय व्यवधान तिरंगा ।
आज़ादी का अफसाना तू,
पूत हुए बलिदान तिरंगा ।
तीन रंग से तू है सज्जित,
लगता है तू प्रान तिरंगा ।
'नील' फिदा है केवल तुझ पर,
माने तुझे जहांन तिरंगा ।
-०-डॉ.नीलम खरे
व्दारा- प्रो.शरद नारायण खरे,
मंडला (मध्यप्रदेश)
सुन्दर प्रभावशाली रचना के लिये बहुत बहुत बधाई है आदरणीय ।
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