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Sunday, 26 January 2020

तिरंगा (कविता) - डॉ.नीलम खरे




तिरंगा
(कविता)
मेरा है अभिमान तिरंगा ।
सचमुच में सम्मान तिरंगा ।

शेष सभी बातें बेमानी,
मेरी तो है आन तिरंगा ।

सुखकर भी है,मंगलदायी,
हरदम मंगलगान तिरंगा ।

गर्व से फहराता है नित ही,
दिल में है जयगान तिरंगा ।

वतन रहे हरदम ही रक्षित,
दे दूंगी निज जान तिरंगा ।


रहे तिरा अस्तित्व सदा ही,
बस इतना अरमान तिरंगा ।

युगों-युगों हो तेरी सत्ता ,
रहे युं ही बलवान तिरंगा ।

तेरा गौरव ,तेरी महिमा,
नहीं कोय व्यवधान तिरंगा ।

आज़ादी का अफसाना तू,
पूत हुए बलिदान तिरंगा ।

तीन रंग से तू है सज्जित,
लगता है तू प्रान तिरंगा ।

'नील' फिदा है केवल तुझ पर,
माने तुझे जहांन तिरंगा ।
-०-डॉ.नीलम खरे
व्दारा- प्रो.शरद नारायण खरे, 
मंडला (मध्यप्रदेश)


***
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1 comment:

  1. सुन्दर प्रभावशाली रचना के लिये बहुत बहुत बधाई है आदरणीय ।

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