राष्ट्रभक्ति
(लघुकथा)
"अरे,आप सुनिए ज़रा ।यह देखो कि सुबह के आठ बज गये,पर अभी तक यह स्ट्रीट लाइट जल रही है।लगता है कि बिजली विभाग वाले स्ट्रीट लाइट बंद करना ही भूल गए।" पत्नी नीता ने पति से कहा।"हां होगा,पर तुम छोड़ो ,आज गणतंत्र दिवस है,और मुझे 8-30 पर अपने ऑफिस झंडावंदन कार्यक्रम में पहुंचना है,मुझे देर हो रही है ।"
"हां,वह तो ठीक है,पर देखो पूरे नगर की लाइट जल रही है ।जबकि इस समय उसकी कोई ज़रूरत नहीं है ।यह तो बिजली की बरबादी है ।"
"है तो,पर यह तो बिजली विभाग की ड्युटी है,हमारी नहीं ।"पति हरीश ने टका-सा जवाब दिया ।
"पर,देश तो हमारा भी है ।यह बिजली की बरबादी रोकना हमारा भी तो काम है । "पत्नी ने अपनी बात कही ।
"क्या मतलब ?" पति ने प्रश्न किया ।
"मतलब,आप अपने ऑफिस के झंडावंदन कार्यक्रम के लिए जाते समय बिजली विभाग होते जाइए,और विभाग को उसकी भूल का अहसास कराकर बिजली की बरबादी रोकने में मदद कीजिए ।" पत्नी ने सलाह दी ।
"रहने दो नीता ,मैं ऑफिस पहुंचने में लेट हो जाऊंगा तो मुझे मेरे बॉस बहुत डांटेंगे ।वैसे भी आज राष्ट्रीय पर्व है,मुझे समय पर पहुंचकर राष्ट्रभक्ति का परिचय देना चाहिए ।"
"पर,बिजली की बरबादी को रोकना,क्या देशभक्ति नहीं है ।बल्कि यह तो सच्ची देशभक्ति है ।इससे जनता का पैसा बचेगा,और बिजली बजेगी जो कि विकास के काम में प्रयोग होगी ।वैसे भी आजकल बिजली की कितनी अधिक कटौती होती रहती है ।"
"हां नीता,तुम कह तो सही रही हो,पर ----।"
"पर क्या ?आप मेरी बात मान लीजिए प्लीज ।"
आख़िर हरीश ने वही किया,जो पत्नी चाहती थी ।विभाग के करमचारी ने अपनी भूल मानते हुए ततकाल सारे शहर की स्ट्रीट लाइट बंद कर दी ।वह ऑफिस लेट पहुंचने पर डांट का शिकार भी बना ,पर उसे इस बात का संतोष था कि गणतंत्र दिवस पर वह राष्ट्रभक्ति के कार्यक्रम में देर से भले ही पहुंचा,पर वह देशहित का अच्छा काम करके न केवल पत्नी सहित ख़ुद को एक अच्छा नागरिक सिध्द करने में सफल रहा,बल्कि वह राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर भी खरा उतर सका ।"
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प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
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