हे ....वीर
(कविता)
हे...वीर क्या बांध रखे हैं हाथ सियासतदानों ने क्या कमजोर किये इरादे संसद के गलियारों ने क्या रोकती हैं राह पत्थरबाजों की भीड़ क्या रूलाती हैं अपनों की बलिदानी तुम्हें भी आजाद कहाँ है ??भगत कहाँ है?? तुम अब गांधी ना बनो मौन से निकल, आगे बढ़ो वीर, तुम वीर हो कर्तव्य पालन करो कुछ गद्दार देश में है, कुछ सीमा पर समेट लो , हे वीर ! समय आ गया इन्हें घेर लो व्यर्थ ना जाएगी कुर्बानियां लहू से ही लिखी जाएगी आजाद कहानियां.... रो रहे किसान और जवान के परिजन परेशान अब सिर्फ आम हिन्दुस्तान हैं सियासत की परिभाषाएं अंतःवस्त्र सी नित सुबह बदल रही हैं देश में गुलामी की नई जंजीरें बन रही.... हे वीर...तुम जागो..उठो..चल पड़ो हे वीर...तुम बढ़ो...शस्त्र उठा...निशाना साधो...।।
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गोविन्द सिंह चौहानराजसमन्द (राजस्थान)
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