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Sunday, 26 January 2020

ए भारत तुझे प्रणाम (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'



ए भारत तुझे प्रणाम
(कविता)
ये भारत तुझे प्रणाम बार-बार प्रणाम
हजार बार प्रणाम अनगिनत बार प्रणाम
बनी रहे शान तेरी चाहे चली जाए जान मेरी
ऐसे विचार जहाँ के लोगों का हो
उस भूमि को मेरा सलाम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
माँ से भी प्यारी मातृभूमि होती है
तभी तो माएं अपने लाल
तुझ पर निछावर करती है
वैदिक काल से ही हो तुम महान
इस बात को जानता सकल जहान
यहीं पर जन्मे बुद्ध, नानक, राम और श्याम
हे भारत तुझे बार-बार प्रणाम
यहाँ की संस्कृति है बेमिसाल
अतिथि देवो भवः बना महान
वसुधैव कुटुंबकम का दिया संदेश
यहां की मिट्टी है बड़ी अनोखी
देवता भी करना चाहे यहां विश्राम
हे भारत तुझे बार -बार प्रणाम
कल करती बहती नदियां तेरी
हरियाली से भरे जंगल पर्वत विशाल
पांव पखारे समुद्र जहाँ
ऐसा मनोरम दृश्य और कहाँ
इंडिया हिंदुस्तान तेरा ही नाम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
तेरी आन बान शान की खातिर
कितने वीर शहीद हुए कितनी
मांओं की कोख उजड़ी
कितनी दुल्हन विधवा बनी
कितनी बहने रोती रही लेकर भैया का नाम
येभारत तुझे बार-बार प्रणाम
हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ने वाले तेरे बेटे यहाँ अनेकता में एकता की विशेषता यहां
सभी धर्मों का मेल होता यहां
सुबह को अजान तो शाम को आरती यहाँ
होती रहती है आठों याम
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक
कच्छ से लेकर कोहिमा तक
कितना सुंदर है तस्वीर तेरा
भाव राग ताल का मिश्रण जीवन तेरा
"दीनेश"का तुझे शत बार प्रणाम
बार- बार प्रणाम
ए भारत तुझे बार-बार प्रणाम-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


***
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