लिखूँ न लिखूँ
(कविता)
तुम बताओ वे बातें लिखूँ न लिखूँ
मौत से मुलाकातें लिखूँ न लिखूँ ।।
रात थी रो रही चाँद भी ढल रहा
जागती मैं वे रातें लिखूँ न लिखूँ ।।
गोलियाँ चल रही खून था बह रहा
जान उनको गंवाते लिखूँ न लिखूँ ।।
हाथ बन्दूक थी आँख दुश्मन पे थी
उनको वादा निभाते लिखूँ न लिखूँ ।।
एक एक पर थे वार वे कर रहे
लहू उनको बहाते लिखूँ न लिखूँ ।।
प्रेयसी पत्नी मैया जो मन मे बसी
उनसे नजरें चुराते लिखूँ न लिखूँ ।।
वर्दी उन पर कसी मौत थी बन रही
वीरता को निभाते लिखूँ न लिखूँ ।।
छलनी छलनी हुआ था उनका बदन
जॉ से पीछा छुड़ाते लिखूँ न लिखूँ ।।-०-
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
-०-
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