माँ! मैं तेरी लाडली
(कविता)
माँ ! मैं तेरी लाडली,
सीख रही सब काम
पढ़ लिख करने हैं मुझको
बड़े बड़े सब काम ।
लेकिन तुम घबराना ना
हार कभी ना मानूँगी
बेलन और कलम दोनों के
राज सभी पहचानूँगी ।
गोल गोल रोटी बनी
पृथ्वी भी है गोल
अग्नि लकड़ी से जली
प्रकृति चारों ओर ।
पढ़ कर मैं भी कर दूँगी
नए नए आविष्कार
हाथ सने आटे से ही माँ
करूँगी मैं चमत्कार ।
उडूँ आसमां की ऊँचाई
चाँद, सितारे छू लूँगी
धरती से अंबर तक सारे
नक्षत्रों को छू लूँगी ।
अब न रुकूँगी, नहीं थमूँगी
आगे बढ़ती जाऊँगी
कितनी भी बाधाएँ आएँ
अब मैं नहीं घबराऊँगी ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा
जयपुर (राजस्थान)