■■ कल■■
(कविता)
कल......
जैसे सीपी में
बन्द मोती
कल.....
जैसे अँखियाँ
आधी खुली
आधी सोती
अबूझ, अनसुलझी सी
कोई पहेली
कल....
घूंघट में सकुचाई
कोई दुल्हन
व्यग्र दिन
देखने को जिसका
चंद्र वदन
कल….
जैसे मदमाता पवन
कल.....
रेशमी कपड़े में
लिपटा हुआ
कोई उपहार
कौन जाने
किसकी जीत और
किसकी हार !!!!!
कल.....
जैसे प्रिय का
इंतज़ार।
-०-
अलका 'सोनी'बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
रचना को रचना को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार आपका......💐💐
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