कौमी एकता
(कविता)
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में,सद्भाव की फसल उपजे,खेत और खलिहान में।
हिंदू, मुस्लिम,सिक्ख, ईसाई, आपस में सब भाई- भाई,
आखिर सच्चे रिश्तों पर क्यों शक की दीवार लगाई?
लहू सभी का जब है लाल,क्यों हो नफ़रतों से बदहाल?
नेहरू,कलाम,फर्नांडिस जैसे सुमन खिले उद्यान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में।
जब निर्मल बहती पवन करती है समान व्यवहार,
बिन भेदभाव के इंदु बांटे प्रकाश का उपहार,
क्यों धर्म के नाम पर हम करें नित्य तक़रार?
एकता के अखण्ड दीप जलाएं राष्ट्र के गुणगान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित हो जहान में।
मन वचन कर्म में शुचिता सभी धर्मों का मर्म है,
मज़हब का पर्यायवाची शब्द ही धर्म है,
मानवता की सेवा में निहित सर्वश्रेष्ठ कर्म है,
प्रत्येक धर्म साथ चले भारत के उत्थान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में।
बाइबिल, गीता , और कुरान एक ही हैं,
श्लोक,मन्त्र, आरती, अजान एक ही हैं,
धर्म, जाति, भिन्न हैं, हिन्दोस्तान एक ही है,
मतभेद की आंधियाँ न चलें वतन के मकान में,
कौमी एकता का बीज अंकुरित हो जहान में।