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Saturday, 9 May 2020

कौमी एकता (कविता) - प्रीति चौधरी 'मनोरमा'

कौमी एकता
(कविता) 
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में,
सद्भाव की फसल उपजे,खेत और खलिहान में।

हिंदू, मुस्लिम,सिक्ख, ईसाई, आपस में सब भाई- भाई,
आखिर सच्चे रिश्तों पर क्यों शक की दीवार लगाई?
लहू सभी का जब है लाल,क्यों हो नफ़रतों से बदहाल?
नेहरू,कलाम,फर्नांडिस जैसे सुमन खिले उद्यान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में।

जब निर्मल बहती पवन करती है समान व्यवहार,
बिन भेदभाव के इंदु बांटे प्रकाश का उपहार,
क्यों धर्म के नाम पर हम करें नित्य तक़रार?
एकता के अखण्ड दीप जलाएं राष्ट्र के गुणगान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित हो जहान में।

मन वचन कर्म में शुचिता सभी धर्मों का मर्म है,
मज़हब का पर्यायवाची शब्द ही धर्म है,
मानवता की सेवा में निहित सर्वश्रेष्ठ कर्म है,
प्रत्येक धर्म साथ चले भारत के उत्थान में।
कौमी एकता का बीज अंकुरित करो जहान में।

बाइबिल, गीता , और कुरान एक ही हैं,
श्लोक,मन्त्र, आरती, अजान एक ही हैं,
धर्म, जाति, भिन्न हैं, हिन्दोस्तान एक ही है,
मतभेद की आंधियाँ न चलें वतन के मकान में,
कौमी एकता का बीज अंकुरित हो जहान में।
-०-
पता
प्रीति चौधरी 'मनोरमा'
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)

-०-


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बेटियां प्यारी हैं (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


बेटियां प्यारी हैं 
(कविता)

दुराचारियों हत्यारों को ,
फांसी पे लटका दे हम ।
बोटी बोटी काट के चीलों,
कव्वो में बटवा दें हम।।
दंड देखकर देहशत में ,
अपराधी जिस दिन आएंगें।
मुक्ति मिलेगी कीचड़ से ,
जीवन निर्मल हो जाएंगें।।
****
जिसने चैन हमारा छीना,
नहीं चैना से रह पाएं।
ऐसी कर दो गति जहां,
जायें बस ठोकर ही खाएं।।
भले आसिफा हो या हो,
निर्भया बेटियां प्यारी हैं ।
एक सुरक्षित जीवन जी ,
पायें इसकी अधिकारी हैं ।।
******
यह समाज की जिम्मेदारी,
है उनको सम्मान मिले ।
उन्हें मिले जो आसपास में ,
अपने वो इंसान मिले ।।
बने जानवर जो समाज में,
रहते उनको दुत्कारो ।
जहां कहीं मिल जाए उन्हें,
नंगे करके जूते मारो।।
******
बेटी तभी बचेगी यह ,
अभियान सफल हो पाएगा।
उजले चेहरे होंगे अपने,
तभी सुकूं भी आएगा।।
इस मुरदार व्यवस्था को,
बदलें हम दिल से बागी हों।
वैचारिक इस महायज्ञ में ,
हम"अनन्त" सहभागी हों ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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