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Sunday, 10 November 2019

उपहार (लघुकथा) - मीरा जैन

उपहार
(लघुकथा)
शाम ढले खाना बनाने का वक्त और पड़ौसन को थैला हाथ मे लिए बाजार की ओर जाता देख कमली पूछ बैठी-
' लाटरी लग गई है क्या जो इस समय थैला लिए खुशी
से चहकती बाजार जा रही है ?'
चलते चलते ही पड़ोसन ने जवाब दिया-
' लाटरी ही समझ , इस बार मालिक ने फैक्ट्री मे काम करने वाले सभी मजदूरों को पांच पांच सौ रुपये नवरात्र के पावन पर्व पर बतौर उपहार
स्वरूप दिये हैं बस! बच्चों के लिए मिठाई वगैरह लेने जा रही हूँ '
इतना सुनते ही कमली के चेहरे पर घबराहट के मारे पसीने की बूँदें छलक आई क्योंकि सुकरू भी उसी फैक्ट्री मे काम करता था और
हाथ मे पैसे हो तो कलाली से होता हुआ ही घर आता है फिर गाली गलौच मार पीट ------- 'अब क्या होगा आज तो मेरा उपवास भी है अब क्या करूँ कहाँ जाऊँ ये सेठजी भी ना--'
तभी दूर से हाथ मे थैला लिए सुकरू आता दिखाई दिया लगता है पूरे पाँच सौ रूपये की शराब खरीद लाया है. आते उसने बेमन से कमली
को थैला देते हुए कहा-
'ये ले पूजा का सामान फलाहार और मिठाई '
कमली आश्चर्य से सुकरू का मुहं देखती रह गई कि ये अनहोनी कैसे हो
गई ? इतने मे सुकरू अपनी किस्मत को कोसते हुए बड़बड़ाया-
' मेरी ही किस्मत खोटी थी जो उपहार मे ये थैला मिला , दूसरों को तो पाँच पाँच सौ रूपये मिले '
कमली ने जानबूझ कर पूछा-
' सेठजी ने ऐसा भेद क्यों किया ?'
' बस सेठजी को इस बार जाने क्या सूझी एक एक को अंदर बुलाते और एक पर्ची उठाने को कहते जिसकी पर्ची मे पाँच सौ लिखे होते उसे पाँच सौ दे देते और जिसकी पर्ची मे----- मेरे सारे दोस्तों की यही गिफ्ट पैक
वाली पर्ची खुली '
कमली मन ही मन खुश थी उसका प्रयास सफल हुआ वह कुछ दिन पूर्व ही अपने जैसी सभी पति पिड़िताओं को गुपचुप तरीक़े से एकत्रित कर सेठजी के पास जा अपना दुखड़ा सुनाया था. उसे महसूस हो रहा था अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना ही सच्ची देवी भक्ति है.
-०-
मीरा जैन
516,साँईनाथ कालोनी, सेठी नगर, उज्जैन (मध्यप्रदेश)



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समय नही है (व्यंग्य कविता) - अमित खरे

समय नही है
(व्यंग्य कविता)
कोशिश सबकी जारी है
कैसी मारा मारी है।

वोट माँगने ऐसे आते
जैसे कोई उधारी है।

पूरी ताकत उनके हिस्से
अपनी तो लाचारी है।

बातें हैं कुछ बहकी सी
उतरी नही खुमारी है।

बात बात में 'समय नही है'
फिर कहते बेकारी है।

देश की चिन्ता किसको है?
किसकी जिम्मेदारी है ?

अमित सुनो ये बात तुम्हारी
सब बातों पर भारी है।
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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भारत रत्न सरदार बल्लभ भाई पटेल (आलेख) - राजेश कुमार शर्मा 'पुरोहित'


भारत रत्न सरदार बल्लभ भाई पटेल
(आलेख)
भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता जिन्हें कहा जाता है वे हैं - 'भारत रत्न सरदार बल्लभ भाई पटेल'
हमारे देश के प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई झावेर भाई पटेल जो सरदार बल्लभ भाई पटेल के नाम से लोकप्रिय थे । वे एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वे एक अधिवक्ता और राजनेता थे। भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस के बड़े नेता व भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे।उन्होंने देश को आज़ाद कराने के लिए अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने एक एकीकृत स्वतन्त्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया।भारत और अन्य जगहों पर उन्हें हिन्दी उर्दू और फारसी में सरदार कहा जाता था जिसका सीधा अर्थ है प्रमुख।। पटेल ने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय देश के गृह मन्त्री का दायित्व संभाला।
पटेल का जन्म नड़ियाद गुजरात मे हुआ। लेवा पटेल पाटीदार जाति में जन्में पटेल के पिता झवेरभाई पटेल व माता लाड़बा देवी था। ये चौथी संतान थे। सोमाभाई,नरसीभाई,विठ्ठल भाई उनके बड़े भाई थे।
पटेल की शिक्षा स्वाध्याय से हुई। लन्दन में उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। जब लन्दन से स्वदेश आये तो उन्होंने अहमदाबाद में वकालात की।महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया।
स्वतन्त्रता आंदोलन में पटेल का सबसे बड़ा योगदान रहा।1918 में खेड़ा संघर्ष हुआ। गुजरात का खेड़ा सूखे की चपेट में आ गया था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की माँग की। जब यह स्वीकार नहीं किया तो सरदार पटेल महात्मा गांधी व अन्य लोगों ने उन किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया। अंत मे अंग्रेज सरकार झुकी और करों में राहत दी गई। राजनीति में सरदार पटेल को इस तरह पहली सफलता मिली। 1928 में बारदोली गुजरात मे बारडोली सत्याग्रह में हुआ।जिसका नेतृत्व भी पटेल ने किया। उस समय अंग्रेज सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत वृद्वि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्वि का जमकर विरोध किया। अंग्रेज सरकार ने सत्याग्रह आंदोलन को खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाए। लेकिन मजबूरन उन्हें किसानों की मांगों को मानना पड़ा। उन्होंने 22 फीसदी लगान को 6.3 प्रतिशत कर दिया।
इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने पर वहाँ की महिलाओं ने बल्लभभाई पटेल को" सरदार" की उपाधि प्रदान की।
बारदोली किसान संघर्ष के बारे में गांधीजी ने कहा था इस तरह का हर संघर्ष हर कोशिश हमे स्वराज्य के करीब पहुँच रही है और हम सबको स्वराज्य की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज्य के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
अधिकांश प्रान्तीय कोंग्रेस समितियां पटेल के पक्ष में थी।गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से स्वयं को दूर रखा। और इसके लिए नेहरू जी का समर्थन किया। पटेल भारत के उप प्रधानमंत्री व गृह मंत्री का कार्य सौंप दिया गया।
गृह मंत्री बनने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता थी देशी रियासतों यानि राज्यों को भारत मे मिलाना। इस कार्य को पटेल ने बिना कोई खून बहाये संपादित किया। केवल हैदराबाद ऑपरेशन पोलो के दौरान उन्हें सेना भेजनी पड़ी थी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हें "भारत का लौह पुरुष" के रूप में जाना जाने लगा। पटेल ने 562 देशी रियासतों का एकीकरण का बड़ा कार्य किया।उन्होंने बी पी मेनन के साथ एकीकरण किया। पटेल व मेनन ने रियासतों के राजाओं को समझाया कि स्वायत्तता देना अब सम्भव नहीं है। इस बात को सभी राजाओं ने खुश होकर विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
जूनागढ़ हैदराबाद जम्मू कश्मीर के राजाओं ने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। जब अधिक विरोध हुआ तो जूनागढ़ का राजा भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ का विलय हो गया। हैदराबाद के निजाम ने प्रस्ताव नहीं माना तो पटेल ने सेना भेजकर निज़ाम से आत्मसमर्पण करा लिया। नेहरू ने कश्मीर को अपने पास यह कहकर रख लिया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है।
पटेल कहा करते थे,मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरी। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।
देश की स्वतंत्रता के पश्यात पटेल ने भारतीय संघ में छोटी बड़ी 562 रियासतों का एकीकरण किया। विश्व के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किसी ने नहीं किया। 5जुलाई 1947 को रियासत विभाग की स्थापना की गई। महात्मा गांधी ने पटेल से कहा था रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे। पटेल ने नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प करने का प्रयास किया। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आई.सी.एस का नाम बदल कर आई.ए.एस. कर दिया। अनेक विद्वान उनको भारत का विस्मार्क कहते थे।
पटेल सही मायने में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें शिवाजी की दूरदर्शिता,कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता थी। वे भारतीयों के हृदय के सरदार थे।
सरदार पटेल के पत्रों का विशेष संग्रह (1945 से 1950 तक के) दस खण्डों में किया गया। नवजीवन प्रकाशन से अंग्रेजी में इन पत्रों का प्रकाशन किया गया।
सरदार पटेल चुना हुआ पत्र व्यवहार कृति को वी शंकर ने सम्पादित किया।
अहमदाबाद हवाई अड्डे का नाम सरदार बल्लभ भाई पटेल अंतरराष्ट्रीय विमान क्षेत्र नाम कर उनका सम्मान किया। गुजरात के बल्लभनगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय है।1991 में मरणोपरांत पटेल को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
स्टेच्यू इफ यूनिटी 240 मीटर ऊँची पटेल की आदमकद प्रतिमा को गुजरात मे बनाई जिसे 2018 में 31 अक्टूबर के दिन नरेन्द्र मोदी जी ने राष्ट्र को समर्पित किया । यह प्रतिमा पांच वर्षों में 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई। आओ सरदार पटेल के बताए मार्ग पर चलें।
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राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी, जिला झालावाड़ (राजस्थान)

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इमली (लघुकथा) - प्रतीक प्रभाकर

इमली
(लघुकथा)
" इमली"
"भैया ! पैसे दो ना!" वैभव ने कहा
सौरभ ने कहा " नहीं , फिर तू जाकर इमली खाएगा ।"
"नहीं भैया पाचक खाऊंगा या चॉकलेट "वैभव ने उत्तर दिया।
सौरभ ने वैभव को दो रुपए दिये। सौरभ अभी पहली कक्षा में था तो वैभव के.जी. में पढ़ रहा था । कुछ दिन पहले ही उनकी मम्मी ने आकर गुमटी लगाकर बिस्कुट ,चॉकलेट बेचने वाले लड़के को समझाया था कि वह वैभव को इमली ना खाने दे । पर वैभव से इमली खाये बिना रहा नहीं जाता था ।
वैभव था शरारती और चालाक भी। उसने अपने एक सहपाठी को एक रुपए दिए और इमली लाने को कहा । एक रुपये में सोलह इमलियां मिलती थी ।स्कूल में कक्षाओं के दौरान उसने आठ इमलियाँ खा ली।
अहा ! कितना आनंद आता है। अब छुट्टी का वक्त हो रहा था। वैभव, सौरभ पैदल घर की ओर निकले। शरारती वैभव ने कुत्ते के बच्चे को बोतल दे मारी। कुत्ते का बच्चा भड़क गया और उसपर भौंक कर दौड़ाने लगा । तभी वैभव ने दो इमालियाँ एक साथ खा ली और इमली जा फंसी वैभव के कंठ में ।वैभव दर्द से कराह उठा तब सौरभ का ध्यान उसकी तरफ आया । वह समझ चुका था कि माजरा क्या है । उसने उसे खांस कर पर इमली बाहर निकलने को कहा पर इमलियाँ बाहर निकलती ही नहीं थी ।
अब क्या किया जाए सौरभ यह सोच ही रहा था कि एक बड़ी कक्षा का छात्र साइकिल से उनके पास से गुजरा । सौरभ ने उससे मदद मांगी । उस छात्र ने वैभव को पीछे से पकड़ा और छाती पर जोर लगाते हुए धक्का दिया। इसके बाद इमलियां उसके मुंह से निकल कर बाहर रोड पर गिर गई।
अब वैभव के जान में जान आई और सौरभ के भी । सौरभ ने गौरव को डांटा । गौरव ने रुआंसा होकर जेब मे पड़ी इमली को जमीन पर फेंक दिया । सौरव ने उसे समझाते हुए घर पर इसस बात का जिक्र करने से मना किया।
अब जब सौरव और वैभव घर पहुंचे थे मां ने दरवाजा खोला पर उन्होंने मां से कुछ नहीं कहा। मां ने वैभव को देखकर कहा, " आज तुम्हारे पसंद की इमली की चटनी बनाई है ।"
सौरभ और वैभव एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे ।
-०-
प्रतीक प्रभाकर
गयाजी (बिहार)

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पलायन (पद्य-दोहे) - डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'


पलायन
(पद्य-दोहे )

गांव और खलिहान सब, रहते थे भरपूर।
घर घर में खुशियां भरी, पुष्प बिखेरे नूर।।

गरमी या बरसात हो, या सर्दी हेमंत।
चहल-पहल थी गांव में, सुनते वाणी संत।।

हुआ आज क्या अचानक, गांव हुए वीरान।
धरती बंजर है पड़ी, बाग खेत खलिहान।।

घरों में ताले हैं पड़े, आगन उगी है घास।
बंदर, जंगली-जीव सब, गांव बीच घर-पास।।

डर लगता एकांत में, रहना गांव के बीच।
राह भरी है झाड़ियां, लेते वसन हैं खींच।।

पलायन घर से हुआ, गए शहर की ओर।
शुद्ध हवा जल छोड़कर, स्वच्छ, स्वस्थ शुभ भोर।।

शहरों की आलस भरी, मस्ती में सुख ढूंढ।
प्रदूषित जल-वायु में, रोगी तन आरूढ़।।

दशा आज यह देखिए, चलवाणी में खोय।
सुध-बुध की नहीं होश है, व्हाट्सएप के बस होय।।

आगे जाने राम ही, क्या होगा परिणाम।
पर्यावरण की दुर्दशा, अब जीवन के नाम।।

शहरों का यह छल भरा, आकर्षण ले जाय।
गांव उजाड़े लोग सब, निज घर छोड़े जांय।।
-०-
डॉ० धाराबल्लभ पांडेय 'आलोक'
अध्यापक एवं लेखक
अल्मोड़ा, उत्तराखंड, भारत।


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