मुझे न कोई पा सके, चीज़ बड़ी मैं ख़ास।
मुझे न कोई खो सके, रहती सबके पास //१. //
छोटी-सी है देह पर, मेरे वस्त्र पचास।
खाने की इक चीज़ हूँ, मैं हूँ सबसे ख़ास // २. //
लम्बा-चौड़ा ज़िक्र क्या, दो आखर का नाम।
दुनिया भर में घूमता, शीश ढ़कूँ यह काम // ३. //
विश्व के किसी छोर में, चाहे हम आबाद।
रख सकते हैं हम उसे, देने के भी बाद // ४. //
वो ऐसी क्या चीज़ है, जिसका है आकार।
चाहे जितना ढ़ेर हो, तनिक न उसका भार // ५. //
देखा होगा आपने, हर जगह डगर-डगर।
हरदम ही वो दौड़ता, कभी न चलता मगर // ६. //
घेरा है अद्भुत हरा, पीले भवन-दुकान।
उनमें यारों पल रहे, सब काले हैवान // ७. //
पानी जम के बर्फ़ है, काँप रहा नाचीज़।
पिघले लेकिन ठण्ड में, अजब-ग़ज़ब क्या चीज़ // ८. //
मैं हूँ खूब हरा-भरा, मुँह मेरा है लाल।
नकल करूँ मैं आपकी, मिले ताल से ताल // ९. //
सोने की वह चीज़ है, आती सबके काम।
महंगाई कितनी बढ़े, उसके बढ़े न दाम // १०. //
नाटी-सी वह बालिका, वस्त्र हरे, कुछ लाल ।
खा जाए कोई उसे, मच जाए बवाल // ११. //
भाग - २ - १५ मार्च २०२०
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पता:
महावीर उत्तराँचली
दिल्ली
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