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Saturday, 29 February 2020

आहटें सुनी सुनी (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

आहटें सुनी सुनी
(कविता)
सर्द रात के बाद,
अल सुबह ,
दरवाज़े पर,
दस्तक देता अख़बार।
ख़बरें ,सुर्ख़ियाँ बटोरती,
कुछ आहटें सुनी सुनी,
मन को कचोटती।
पर क्या ये सिर्फ़ सुर्ख़ियाँ हैं ?
घटनाएँ है...? जो घट गई।
आज आइ,कल गई ?
कुछ पल की चर्चा,
कुछ पल की बातें,
ख़बरें ही तो हैं,
आती हैं,जाती है,
अगले दिन भूल जाती हैं।
कुछ सपनों को ,
उम्मीदों को,आकांक्षाओं को,
रौंदते हादसे,
ज़िम्मेदार ,ज़िम्मेवारी से भागते।
सोच ओर सिस्टम के प्रहार,
जन जन पर पड़ रही,इनकी मार,
नक़ाबों में छिपे,
कुछ असामाजिक तत्व,
नज़ारे विभत्स ।
मूक बन देख रहा समाज।
दे रहे ख़तरनाक संकेत,
ग़ुस्से,तनाव,अराजकता का माहोल,
कौन बना रहा ,नहीं मालूम।
सरकारी अस्पतालों में,
क़ब्रगाह बनते मासूम।
कैसे मिले सकूँ ?
हिचकोले खाता स्वास्थ् शिक्षा विभाग,
मंदी का मकड़जाल।
संकट में पड़ी महत्वकांक्षा
,बाज़ार बर्बाद, घोर निराशा।
हर दिन,हर पल,
इन ख़बरों का का जीवन पर,
धीमें विष सा असर।
निपटने का खोजते रास्ता,
कोशिशें विफल।
हुडदंगियो से पटी गालियाँ,
मरता इंसान,कीड़े मकोड़ों सा,
इंसान ही इंसान की बर्बादी के तत्व बोता ।
कहाँ गई,नए साल की उम्मीद..?
अच्छे दिनों की ताक़ीद..?
बदलनी होगी,
मानव विकास की परिभाषा,
टूट रही आशा,पसरती निराशा।
उठ रहे सवाल..?
खोजने होंगे जवाब।
कैसे सम्भाले,कैसे रोकें ?
कुछ तो करें,कुछ तो सोचें।
प्रश्न करता अख़बार,
है ...कोई...जवाब...?-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)

-0-


***
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