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Saturday, 29 February 2020

हे देश के नवजवानो ! (कविता) - सुरेश शर्मा


हे देश के नवजवानो !
(कविता)
हे देशवासियों ! हे देश के रखवालों !
कहां खो गये हो ? 
आज सारा देश धू-धू कर जल रहा है
ना जाने किसने हमपर नजर लगाई 
सुख गया ,शान्ति गया ,
हमने रातों की नींद भी गवायी ।

इसी आड़ मे कुछ लोगो ने राजनीतिक की
मशाल जलाई 
हे नवजवानो !
सुनो ओ नादानो !
तुम्हे आन्दोलनकारी बनाकर ,
उपद्रवी के नाम से आगजनी करवायी ।
और !
खेत खेलने वालो ने अपनी अंक बैठाकर ,
सतरंज की गहरी चाल चलाई ।
चाभी अपने हाथो मे रखकर ,
आपलोगों को जलती भट्टी मे झोंककर ; 
खुद तंदूर मे घी की रोटी सेंककर खायी ।

देश हमारा हम सब का है, 
ये देश की संपत्ति भी हमारी है ;
यह किसी एक की जागीर नही, 
नष्ट करने का भी किसी को हक नही ।

हंसी-खुशी हरियाली देश ,
दुश्मनो को रास ना आयी ।
आज हमारी देश की खुशहाली ,
कालनुमा ग्रहण से ग्रसित है हो आयी ।

इस तरह की उपद्रवी कृया-कलाप से ,
नही होनी है किसी की भी भलाई ।
विनाशकारी गतिविधियों से ,
निकालो अपने आपको ;
क्योंकि, 
आज देश की बागडोर है तुम्हारे उपर आयी ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

 ***
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