हे देश के नवजवानो !
(कविता)
हे देशवासियों ! हे देश के रखवालों !
कहां खो गये हो ?
आज सारा देश धू-धू कर जल रहा है
ना जाने किसने हमपर नजर लगाई
सुख गया ,शान्ति गया ,
हमने रातों की नींद भी गवायी ।
इसी आड़ मे कुछ लोगो ने राजनीतिक की
मशाल जलाई
हे नवजवानो !
सुनो ओ नादानो !
तुम्हे आन्दोलनकारी बनाकर ,
उपद्रवी के नाम से आगजनी करवायी ।
और !
खेत खेलने वालो ने अपनी अंक बैठाकर ,
सतरंज की गहरी चाल चलाई ।
चाभी अपने हाथो मे रखकर ,
आपलोगों को जलती भट्टी मे झोंककर ;
खुद तंदूर मे घी की रोटी सेंककर खायी ।
देश हमारा हम सब का है,
ये देश की संपत्ति भी हमारी है ;
यह किसी एक की जागीर नही,
नष्ट करने का भी किसी को हक नही ।
हंसी-खुशी हरियाली देश ,
दुश्मनो को रास ना आयी ।
आज हमारी देश की खुशहाली ,
कालनुमा ग्रहण से ग्रसित है हो आयी ।
इस तरह की उपद्रवी कृया-कलाप से ,
नही होनी है किसी की भी भलाई ।
विनाशकारी गतिविधियों से ,
निकालो अपने आपको ;
क्योंकि,
आज देश की बागडोर है तुम्हारे उपर आयी ।
सुरेश शर्मा
-०-
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