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Monday, 31 August 2020

बहुत मुश्किल से मिलते हैं दोस्त ...... ! (कविता) - अशोक 'आनन'

बहुत मुश्किल से मिलते हैं दोस्त ...... !
( कविता )
बहुत  मुश्किल  से मिलते हैं दोस्त ज़माने में ।
सदियां  लग  जाती  हैं  उन्हें  आज़माने   में ।

पेड़  अपने  आंगन  के  तुम जो काट रहे हो -
लहू  अपना  सींचा  है हमने उन्हें पनपाने में ।

तूफां  में  हमने  जिन्हें   डूबने   से   बचाया -
उन्हें पल  भी  न लगा यारों ! हमें  डुबाने में ।

फूलों को खुशबुओं का साथ क्या मिल गया  -
बाग ने की न ज़रा देर बागवां को भुलाने में ।

झोपड़ियों से थी नफ़रत जिन आसमानों को -
उन  पर  वे  ही  लगे  हैं बिजलियाॅं गिराने में ।

व्यर्थ हैं वे गीत जो किसी का दिल न छू सकें  -
फूटना  है  कान  ही अब  उन्हें  गुनगुनाने में ।

पेट  में  जो  अंगारे  भड़क  रहे   हैं ' आनन ' -
समन्दर भी कम पड़ जाएंगे  उन्हें बुझाने में ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (मध्यप्रदेश)




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कारगिल हो या गलवान (कविता) - राज कुमार साव


कारगिल हो या गलवान
(कविता)
कारगिल हो या गलवान
सबसे पहले सैनिकों का
          सम्मान
कारगिल की बुलंद
चोटियों पर जिन्होंने
शान से सोलह हज़ार
फीट की ऊंचाई पर
तिरंगा लहराया
जिन्होंने अपने लहू
    बहाकर
दुश्मनों से गलवान
घाटी को है बचाया
जिसे सिर झुकाकर
पूरा देश करता है
     सम्मान
कारगिल हो या गलवान
हर बाजी जीतेगा
       हिन्दुस्तान।
-०-
पता: 
राज कुमार साव
पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल)

-०-



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बचपन (कविता) - सुशांत सुप्रिय

बचपन
(कविता)
दशकों पहले एक बचपन था
बचपन उल्लसित, किलकता हुआ
सूरज, चाँद और सितारों के नीचे
एक मासूम उपस्थिति

बचपन चिड़िया का पंख था
बचपन आकाश में शान से उड़ती
रंगीन पतंगें थीं
बचपन माँ का दुलार था
बचपन पिता की गोद का प्यार था

समय के साथ
चिड़ियों के पंख कहीं खो गए
सभी पतंगें कट-फट गईं
माँ सितारों में जा छिपी
पिता सूर्य में समा गए

बचपन अब एक लुप्तप्राय जीव है
जो केवल स्मृति के अजायबघर में
पाया जाता है
वह एक खो गई उम्र है
जब क्षितिज संभावनाओं
से भरा था
-०-
पता:
सुशांत सुप्रिय
ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-



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