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Wednesday, 11 March 2020

वह जो रहने नहीं देता खामोश मुझे (कविता) - मोनिका शर्मा 'मन''

वह जो रहने नहीं देता खामोश मुझे

(कविता)
खामोश रहकर भी वो 
बहुत कुछ कह जाती थी

वो जो मेरी तमन्नाएं थी
रह-रहकर सिर उठाती थी

रहने नहीं देती थी बेबस मुझे
विद्रोह करने का जोश जगा दी थी 

कुछ कर, कुछ करके दिखा
ऐसी आस मन में जगाती थी

खामोश रहकर वो
बहुत कुछ कह जाती थी
-०-
पता:
मोनिका शर्मा 'मन'
गुरूग्राम (हरियाणा)

-०-

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खुशबू की सौगात (दोहे) अशोक 'आनन'


खुशबू की सौगात
( मधुमास के दोहे)
शाल पलाशी ओढ़कर , गद -गद हुआ पलाश ।
अभिनंदन कर ठूंठ का , धन्य हुआ मधुमास ।

झांके घूंघट ओट से , हौले से कचनार ।
भंवरे करते प्यार से , चुंबन की बौछार ।

चुनर ओढ़कर जयपुरी , नाचे सरसों आज ।
देख अदाएं मदभरी , मौसम करता नाज़ ।

दस्तक देतीं तितलियां , फूलों के अब द्वार ।
करें फूल से तितलियां , बाहों में भर प्यार ।

मधुमास ने फूलों के , चूम - चूमकर गात ।
फिर उन्हें दी प्यार से , खुशबू की सौगात ।

सरसों , चंपक , ढाक के , संग फूला कचनार ।
सेमल , अलसी , केशिया , केथ करें श्रृंगार ।

बैठ आम की शाख पर , कोयल कुहके रोज़ ।
रानी बनकर बाग की , करें बाग में मौज ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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स्वच्छ भारत की धज्जियाँ ( आलेख) - श्रीमती सुशीला शर्मा

स्वच्छ भारत की धज्जियाँ
(आलेख)
कुछ समय पूर्व जब हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी को समुद्र किनारे से सुबह-सुबह कचरा उठाते देखा तो शर्म से सिर झुक गया ।महसूस हुआ कि यदि भारत का सर्वोच्च नागरिक अपने देश को सुंदर, स्वच्छ और मनोरम बनाने के लिए स्वयं व्यक्तिगत रूप से निस्वार्थ सेवा में प्रस्तुत है तो हम इस अभियान में सौ प्रतिशत भागीदारी क्यों नहीं दे पा रहे हैं ।
हमारे भारतीय आजकल धड़ल्ले से विदेश यात्राओं में जा कर अपना मनोरंजन कर रहे हैं और हफ्ते भर की यात्राओं से आते ही वहाँ की स्वच्छता और सुन्दरता का बखान दिल खोलकर करते हैं लेकिन वो ही लोग अपने घरों का कचरा स्वच्छ भारत की गाड़ी में डालने पर भी आलस करते हैं और रात के अंधेरे में यहाँ वहाँ फैंक कर राहत की साँस लेने लगते हैं। 
हर छोटे-बड़े समारोह, रैली, शादियाँ आदि होने के दूसरे दिन सड़कों ,मैदानों, भवनों में नेता, समाजिक कार्यकर्ता या सफाई कर्मचारी हाथ में बड़ी बड़ी झाडुएँ लेकर प्लास्टिक की ग्लासेज, पेपर प्लेट,पानी की खाली बोतलें, इश्तिहारों के पैम्प्लेट्स,फूलों की मालाएँ और ना जाने क्या-क्या गंदगी बटोरते नजर आते हैं और मीडिया के सामने बड़ी बड़ी बातें करते हैं और टीवी चैनल्स में छाए रहते हैं।
सवाल ये उठता है कि क्या हमारी जनता इतनी अनपढ़ गँवार है जो हाथों में झंडे और स्वच्छ भारत के बैनर लेकर नारे लगाने के लिए तो सड़कों पर निकल पड़तीं लेकिन जब भी किसी समारोह में जाती है तो उन्ही नारों की धज्जियाँ उड़ा देती है ।बराबरी तो हम विदेशों की करना चाहते हैं लेकिन सफाई की सारी जिम्मेदारी प्रशासन, सरकार और सफाई कर्मचारियों पर थोप देते हैं।हमें हर जगह सफाई चाहिए चाहे वह ट्रेन ,सड़क, उद्यान, धार्मिक स्थल या घर के बाहर । "स्वच्छ भारत का इरादा " गाती हुई गाड़ियाँ सुबह से रात तक हमारा गंदा और बदबूदार कचरा भर कर ले जाती है ।क्या वे इंसान नहीं है जो हम सबके कचरे को अपने हाथों से दबा दबाकर गाड़ियों के ऊपर अपना दिन गुजार देते हैं ।धिक्कार है हमें जो हम स्वयं को सभ्य नागरिक समझते हैं और जहाँ भी जाते हैं अपनी असभ्यता और असामाजिक होने की छाप छोड़ आते हैं।
धन्य हैं हमारे प्रधानमंत्री जी जिन्होंने कुंभ मेले में सफाई कर्मचारियों को सम्मानित किया ।वास्तव में ऐसे ही लोग सम्मान देने योग्य हैं जो अपने वजूद को भुलाकर देश की निस्वार्थ सेवा करते हैं ।नेता, अभिनेता और सफेदपोश लोग हाथ में झाडू लेकर मीडिया के लिए बड़ी बड़ी तस्वीरें खिंचवा कर अंतर्ध्यान हो जाते हैं ।जब तक देश का हर व्यक्ति अपनी गंदगी स्वयं साफ नहीं करेगा, भारत स्वच्छ कभी नहीं हो पाएगा ।जागो भारत जागो ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
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परिवर्तन (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

परिवर्तन
(लघुकथा)
जब से रिश्ता हुआ था तब से हर दूसरे तीसरे दिन विशाल के पापा का फोन आ जाता था कभी किसी खर्चे को लेकर कभी किसी रीति रिवाज को लेकर तीस लाख के बजट से बढ़ते बढ़ते बजट पचास भी पार करने लगा था
मै रोज उन्हे परेशान देखती थी पर क्या कर सकती थी । अतुल बचपन से हमारे घर आता था बचपन मे घर घर खेलते खेलते कब हम बड़े होकर भी घर बसाने का सपना देखने लगे पता ही ना चला था । मै ब्राहमण कुल की कन्या और वो कायस्थ कुल का लड़का पर प्यार कब देखता है जात पात ......कब दबे पांव सपनो ने हमे एक दूसरे का बना दिया पता ही न चला ।
वो मेरी हर बुराई जानता था मै उसकी हर खूबी ये मेल जीवन यापन के लिये बहुत था और क्या चाहिये पर पापा को जबसे पता चला था उन्होने सख्त हिदायत दे दी थी मेरी शादी वो बिरादरी के बाहर किसी हालत मे न करेगें । मां का क्या वो मूक बधिर सी हो जाती थी पापा के सामने ........खैर मैने भी घुटने टेक दिये पापा की जिद के आगे ।आनन फानन मे उन्होने विशाल से मेरा रिश्ता तय कर दिया ।
आज सुबह पापा की तेज आवाज सुनकर मै और मम्मी दौड़कर आये तो देखा पापा चिल्ला कर कह रहे थे देखिये सहाब मै आप से हाथ जोड़ कर विनती कर रहा हूं कि इससे ज्यादा मै कुछ नही कर पाऊंगा मेरी बेटी पढ़ी लिखी सक्षम है वही दहेज है अगर आपको मंजूर नही तो मुझे माफ कीजिये...............
फिर पसीना पोछंते हुये..... उन्होने मुझे आवाज दी बेटी बहुत दिन से अतुल नही आया आज शाम को उसे खाने पर बुलाओ ।.........
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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पराई बेटियां (गीतिका छन्द) - रीना गोयल

पराई बेटियां
(कविता)
गीतिका छन्द-

दो घरों को हैं सजाती बेटियां 
पर परायी ही कहाती बेटियां ।

हाथ से दोनों लुटाएं वो हसीं,
जब कभी आँगन में आती बेटियां ।

हर थकन से फिर मिले आराम है ,
खूब खुल जब खिलखिलाती बेटियां ।

आत्मा में है बसी पितु मात की ,
फिर पराये घर क्यों जाती बेटियां। 

बन सुकोमल फूल हर इक़ बाग का ,
प्रीत की बगिया सजाती बेटियां ।
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

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