परमात्मा को पाओगे
(कविता)
हे साधु ! सन्त! दोस्त !
अपने आपको समझ सकते हो
मेरे और तुम्हारे मध्य --
खड़े हो सकते हो
पड़ौसी की दूरी
को मिटा सकते हो
मगर इसके लिए तुम्हें
मेरी - तुम्हारी -उसकी तथा उनकी
सोच की परिधि का
चाप बनाना होगा
अब हर वृ त्त को
एक-दूसरे से ग्लोब को
और सूक्ष्म बनाना होगा
आखिर में तुम केन्द्र बिन्दु पर --
आ जाओग /विभिन्न रेखाओं को-
अब परख नहीं पाओगे
अब तुम्हे अपने आपको
मिटाना है -ब्रह्मांड में फैलाना है
परन्तु यह सद्गुरु वचन --
से ही समझ पाओगे
जब आत्म बोध कर पाओगे
अगर सद्गुरु की इस अनमोल
सोच कोजिन्दा रख पाओगे
तो सच कहता हूं-- ब्रह्मांड को अपने
विराट रूप में पाओगे
अहम ब्रह्मास्मि के भाव
के साथ -भगवान कृष्ण की
तरह "हंस"! तुम भी अपने
अस्तित्व कोभगवान से मिलाओगे
अपनी आत्मा में ही- परमात्मा पाओगे
हे साधु ! सन्त! दोस्त !
अपने आपको समझ सकते हो
मेरे और तुम्हारे मध्य --
खड़े हो सकते हो
पड़ौसी की दूरी
को मिटा सकते हो
मगर इसके लिए तुम्हें
मेरी - तुम्हारी -उसकी तथा उनकी
सोच की परिधि का
चाप बनाना होगा
अब हर वृ त्त को
एक-दूसरे से ग्लोब को
और सूक्ष्म बनाना होगा
आखिर में तुम केन्द्र बिन्दु पर --
आ जाओग /विभिन्न रेखाओं को-
अब परख नहीं पाओगे
अब तुम्हे अपने आपको
मिटाना है -ब्रह्मांड में फैलाना है
परन्तु यह सद्गुरु वचन --
से ही समझ पाओगे
जब आत्म बोध कर पाओगे
अगर सद्गुरु की इस अनमोल
सोच कोजिन्दा रख पाओगे
तो सच कहता हूं-- ब्रह्मांड को अपने
विराट रूप में पाओगे
अहम ब्रह्मास्मि के भाव
के साथ -भगवान कृष्ण की
तरह "हंस"! तुम भी अपने
अस्तित्व कोभगवान से मिलाओगे
अपनी आत्मा में ही- परमात्मा पाओगे
-०-
हंसराज गोस्वामी 'हंस'
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