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Thursday, 5 November 2020

लाकडाउन (कहानी) - कुशलेन्द्र श्रीवास्तव


लाकडाउन
(कहानी)

      अप्रेल की भीषण गर्मी में चारों मरघट सी निस्तब्धता छाई थी । सड़के सूनीं थी जो आमतौर हुआ नहीं करती शहर की सड़कें बार महिनों और चैबीसों घंटों गुलजार रहती हैं। उसको गुलजार करने वालों की संख्या कम या ज्यादा हो सकती हैं परंतु सड़कों से कोई गुजरे ही नहीं यह कभी नहीं होता शायद सड़का को कोई अभिशाप मिला ‘‘जा तू कभी भारहीन न रहे’’ । पर अब तो सड़कें भारहीन हो ही चुकीं हैं । दिन के उजाले में वो अकेली ही पड़ी सूरत के तेज ताप को झेल रही है और रात में पूनम की चांदनी में भी अमावश के से डरावने अंधियारे की साक्षी बन रही है । सारे लोग गमगीन से अपने-अपने घरों में दरवाजा बंद कर कैद हो चुके हैं या कैद कर दिए गए हैं । ऐसा सूनापन तो तब भी नहीं रहा जब शहर में र्कफ्यू लगा था । शहर का मुख्य बाजार जहां से आमतौर पर साईकिल से भी निकलना दुश्वार होता था वहां भी सन्नाटा पसरा था । दुकानें बंद थीं । वे व्यापारी जो बंद शटरों के अंदर से हजारों रूपयों का व्यापार कर लेते थे वे भी घरों में कैद होकर रह गए थे । सब कुछ बंद था । घरों के सामने बने वे आंगन जिन में दोपहरी में बच्चों की किलकारियां गूंजा करतीं थीं वे मौन पड़े अंगारे से दहक रहे थे । घरों के दरवाजे और उनमें लगीं खिड़कियां भी बंद थीं । किसी-किसी घर से कूलर चलने की आवाज जरूर आ रही थी । छोटे-छोटे जन्तु भी अपने बिलों में कैद होकर रह गए हैं । कभी-कभी पक्षियों के चहकने की आवाजें सुनाई दे जातीं पर वे आवाजें भी भयभीत ही कर रहीं थीं । सारे शहर में लाॅकडाउन लगा दिया गया था । लोगों ने डिक्शनरी खोजकर इसके मायने समझे पहलीबार यह शब्द सुना था पर इतना तो वे एनाउंामेन्ट के साथ ही समझ चुके थे कि लाॅकडाउन मतलब दुकानें बंद, आवाजाही बंद, चिड़ियों तक को को आसामान में उड़ने की परमीशन नहीं । कोरोना फैल रहा है ।
‘‘कौन कोरोना.......क्या यह पाकिस्तानी आतंकवादी है ’’ रम्मू ने चूड़ामन से पूछा । सारे देश में सालों से केवल पाकिस्तानी आतंकवादियों की ही खौफ सुनाई देता रहा है । जैसे ही ‘‘आतंकवादियों घुस गए हैं’’ का जानकारी प्रसारित होती सारे लोग खौफ से भर जाते । फिर इस खौफ को दूर करने सरकार कहती ‘‘हम कठोर कदम उठा रहे हैं’’ । लोग खौफ से बाहर आ जाते । कोरोना फैल रहा है सरकार ने ही बोला और यह भी बोला कि इसके कारण ‘‘लाॅकडाउन’’ किया जा रहा है । बहुत सारे लोगों को समझ में ही नहीं आया न तो कोरोना समझ में आया और न ही लाॅकडाउन । वे इंतजार करते रहे कि अब सरकार कहेगी कि ‘‘हम कठोर कदम उठाने वाले हैं’’ । किसी ने भी कभी सरकार को कठोर कदम उठाते हुए नहीं देखा न ही कभी उन कदमों की तस्वीर अखबार में छपी दिखी पर आम व्यक्ति यह तो समझ ही जाता था कि सरकार को उनकी चिन्ता है और अंगद जैसे अपने कठोर कदम उठाकर उनका नाश कर देगी । कोरोना का भी नाश सरकार कठोर कदम उठाकर कर देगी पर सरकार ने कठोर कदम उठाने की बात तो की ही नहीं । 
रात को जब लोग अपने-अपने बिस्तर पर सोने जा रहे थे तब ही बताया गया कि लाॅकडाउन लगा दिया गया है । ‘‘चलो सुबह उठकर समझेगें कि अब हमें करना क्या है’’ । अपने पुराने ब्लेक एंड व्हाइट वाले टी.व्ही में मुन्ना ने भी सुना था । मुन्ना तो सब्जी बेचता है एक बड़ी सी दुकान सब्जी बाजार में ले ली है । सुबह से गांव के सब्जी बेचने वाले आ जाते हैं वो उनकी सब्जी खरीद लेता है फिर दिन भी बेचता रहता है और दिन भर क्या हफ्तों बेचता है । आज ही उसने सब्जी खरीदी है कुछ ज्यादा ही खरीदी है कल गुरूवार है न हाट बाजार भरता है ग्र्राहक कुछ ज्यादा ही आते हैं दूसरे उसे भय बना रहता है कि ये गांव के लोगों की यदि सब्जी नहीं बिकी तो वे कहीं भी सड़क के किनारे दुकान लगाकर बैठ जायेगें और किसी भी भाव सब्जी बेच देगें फिर उसका रेट बिगड़ जायेगा लोग कहेंगें ‘‘अरे वहां तो टमाटर बीस रूपया किलो बिक रहा है और तुम तीस रूपया किलो दे रहे हो ठग रहे हो’’ । अब वो तो हर एक ग्राहक से कह नहीं सकता कि ‘‘भैया मेरे घर तो सब्जी पैदा नहीं होती मैंने भी बीस रूपया किलो ही टमाटर खरीदा है सो तीस रूपया किलो बेच रहा हूॅ......जो टमाटर खरीदे हैं न उनमें जाने कितने तो खराब निकल जायेगें और फिर एक दो दिन नहीं बिके तो उन्हें फेंकना भी पड़ेगी जानवर तक नहीं खाते...अब चार पैसे यदि न कमाऊंगा तो अपने बच्चों को खिलाऊंगा क्या’’ । पर वह नहीं कह पाता । उसे अपने ग्राहक को नाराज नहीं करना । रोज-रोज ग्राहक आयेगा तो कुछ न कुछ मुनाफा तो होता ही रहेगा वह तो वैसे भी सारे बाजार से कम दामों में सब्जी बेचता हेै इसलिये उसके पास ग्राहक आते भी ज्यादा है । ज्यादा ग्राहक आते हैं तो उसे सामान भी ज्यादा चाहिये इसलिये भी गांव से आने वाले लोगों की सारी की सारी सब्जी खरीद लेता है । उस दिन भी उसने बहुत सारी सब्जी खरीद ली थी ।  दिन में जितनी सब्जी बिक सकी उसके बाद भी बहुत सारी सब्जी बची हुई थी जिसे वह दूसरे दिन बेचेगा ।
                मुन्ना का बड़ा परंतु छोटा टाइप का परिवार था । चार बच्चे, एक पत्नी और बुजुर्ग माॅ । ‘‘अब  में इतने लोग तो रहने ही चाहिये........मेरे ही देख लो हम तो छैः भाई और चार बहिनें थीं......साथ में दादा दादी भी तो भी पिताजी ने पाल-पोषकर बड़ा किया कि नहीं......वे भी मजदूरी ही करते थे कोई धन्नासेठ तो थे नहीं....अरे भगवान सबको पाल देता है...’’ मुन्ना आसामन की ओर निहारता । आसमान में वह क्या देखता है कोई नहीं जानता । जो भी भगवान को आसामन में ढूंढ़ता है उसे कभी कुछ भी दिखाई नहीं देता पर भगवान का नाम आते ही सभी आसमान को देखने लगते हैं और ऐसे हावभाव बना लेते हैं कि माने उन्हें आसमान में अस्पष्ट भले ही पर कुछ तो दिख रहा है । मुन्ना के पिताजी भी ऐसा ही करते थे और मुन्ना भी ऐसा ही करता है । वैसे तो उसे अब आसमान में उड़ने वाले पक्षी तक दिखाई नहीं देते । पर उसे इस सब से कोई मतलब नहीं वह तो आसामान की ओर देखता है और अपने इस छोटे से परिवार के पालन पोषण हेतु जानवर सा जुट जाता है । उसके बच्चे तो अभी गिनती को और आगे बढ़ने वाले हैं ‘‘भगवान को देना होगा तो दो चार बच्चे और दे देगा’’ । वह आसमान को देखत मानो बच्चे आसमान से टपकने वाले हों । पर उसका जीवन खुशी-खुशी चल रहा था । पहिले तो वह भी मजदूरी ही करता था पर बिफर उसने सज्बी की दुकान खोल ली । छोटी दुकान देखते ही देखते बड़ी दुकान बन गई । चार पैसा ज्यादा आने लगा तो उसका रहन-सहन भी बेहतर हो गया । उसने अपने पुराने सब्जी के ठेले को अपने सीने से लगाये रखा ‘‘इसने हाथ ठेले ने बहुत बरक्कत दी है....इसी हाथठेले पर थोड़ी सी सब्जी रखकर घर-घर बेचने जाता था’’ वह उस हाथ ठेले की पूजन करता । उसकी पत्नी भी समझदार थी वह अपने पति के काम में हाथ बंटाती
‘‘अरे लक्ष्मी है लक्ष्मी.....जिस सब्जी को छू लेती है उसके भाव अपने आप बढ़ जाते हैं...’’ ।
‘‘हटो भी जबरदस्ती तारीफ मत किया करो...’’ । वह छिटक देती और शर्मा का पल्लू को दांतों के बीच फंसा लेती । वैसे मुन्ना सच ही कहता था । पत्नी कम पैसों में घर चला लेती और कभी मुन्ना को पैसे की जरूरत आ जाये तो अपनी पुरानी संदूक से निकाल कर पैसे भी दे देती ‘‘डबल पैसा लूंगी...समझ गए न.....ये आपके पैसे नहीं है....पैसे आते ही मुझे लौटा देना’’ । पत्नी एकाएक साहूकार बन जाती । मुन्ना भी जानता था कि ‘‘खी कहां गओ खिचड़ी में’’ आखिर उसकी पत्नी के पास जो पैसा जायेगा वह उसके या उसके परिवार के ही काम आयेगा इसलिये हर बार उसके पैसे ब्याज सहित उसे लौटा भी देता ‘‘यार कुछ ब्याज कम कर लो......’’
‘‘एक पैसा भी नहीं.....’’
‘‘अरे वो कल्लन तो मान भी जाता है पर तुम....’’
‘‘हाॅ तो उस कल्लन से ही पैसे ले लिया करो...’’ पत्नी मुंह बिचकाती
‘‘कुछ तो कम कर लो....’’ । मुन्ना को उसे छेड़ने में मजा आता ।
‘‘देखो अगली बार मुझसे पैसे नहीं मांगना और न ही मैं दूंगीं....समझ गए लाओ...जितना देना है दे दो...आखिरी बार है यह ’’ । उसके चेहरे पर पाराजगी के भाव दिखाई देने लगते ।
मुन्ना उसके हाथों में पैसे थमा देता । वह एक एक कर सारे नोट गिनती, दो बार गिनती......
‘‘अरे आपने तो बहुत ज्यादा पैसे दे दिये.....आपको गिनती नहीं आती......ऐसा ही आप गा्रहकों के साथ करते होगं किसी को दो सौ रूपये लौटाना है तो आप तीन सौ लौटा देते होगे....वही मैं कहूं कि इतना अच्छा काम-धंधा चल रहा है फिर आपको मुझसे पैसे लेने की जरूरत क्यों आन पड़ती है....आप तो गुडडू से ही कुछ पढ़ लिख लो......’’ । पत्नी को लगता कि मुन्ना ने उसे गल्ती से ज्यादा पैसे लौटा दिए हैं । मुन्ना उसका बड़बड़ाना सुनता रहता और चेहरे को दयनीय बनाये हुए अंदर ही अंदर हंसता रहता ।
‘‘अरे गल्ती हो गई चलो वापिस करो कितने पैसे मैंने ज्यादा दिए हैं....’’
‘‘अब नहीं लौटाती......वो तुमहारी कल्लन है न वो भी नहीं लौटता...’’ कहते हुए वह पैसों को संदूक में रख लेती । उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव होते । मुन्ना ने उसे कभी जाहिर नहीं होने दिया कि ज्यादा पैसे उसने जानबूझकर उसे दिए हैं ‘‘अब भैया अपन बैंक में तो पैसा रख नहीं सकते जा समझ लो को मैंने अपनी पत्नी के पास ही पैसे जमा कर दिए हैं जो वक्त जरूरत पर काम आ जायेगें...’’ । वह आसमान की ओर देखता मानो भगवान को ऐसी पत्नी देने के लिए धन्यवाद दे रहा हो । आसमान में हमेशा की तरह किसी को कुछ दिखाई नहीं दिया ।
                रात को वह लेट लौटा । उसकी आदत थी कि वह आते ही टी.व्ही खोलकर बैठ जाता । पुराना टी.व्ही था उसमें घर-घर की आवाज आती रहती थी पर फिर भी सुनाई तो दे ही जाता था । ऐसा नहीं था कि उसे समाचार देखने की आदत थी । वह तो कोई भी चैनल खोलकर बैठ जाता या उसके परिवार के लोग तो देख रहे होते उसे देखने लगता । टी.व्ही में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी उसे यह सुकून अवश्य रहता था कि उसके घर पर भी टी.व्ही है । टी.व्ही को जब भी आून करो तो वह समाचारों पर आकर ही आॅन होती थी । इसलिये आज भी जब उसने टी.व्ही आॅन की तो समाचार आ रहे थे । प्रधानमंत्री कुछ बोल रहे थे । वह प्रधानमंत्री को पहचानता है  उन्हें देखा तो उसने चैनल नहीं बदली । वह तब तक उसी चैनल को देखता रहा जब तक प्रधानमंत्री उसमें बोलते रहे  उसने सुना भी पर कुछ समझ में नहीं आया । प्रधानमंत्री कोई कोरोना के बारे में बता रहे थे ‘‘होगा कुछ बड़े लोगों की बातें हैं ।’’ वह न तो करोना के बारे में कुछ जानता था और न ही लाॅकडाउन के बारे में । उसकी कुछ भी समझ में नहीं आया । वह तो खाना खाकर सो गया । उसे कल जल्दी दुकान जाना था । रात भर उसकी आंखों के सामने अपनी दुकान पर रखी ढेर सारी सब्जी ही देखाई देती रही । उसके लिये उसकी वह सब्जी ही बहुत बड़ी दौलत थी ।
मुन्ना के घर सुबह जल्दी होती है । सूरज के उदित होने के पहिले ही उसकी पत्नी और वो दोनों उठ जाते । पत्नी घर का काम करती और वह नहाकर दुकान जाने की तैयारी करता । नहाकर वह आसमान की ओर देखकर भगवान को प्रणाम करता फिर कमरे की कच्ची दीवाल पर लगी भगवान जी की फोटो के सामने आकर हाथ जोड़ लेता । उसे कोई मंत्र बगैरह तो आते नहीं थे इसलिये केवल हाथ जोड़े खड़े रहता । वह कभी भगवान जी से कुछ नहीं मांगता ‘‘इतना तो दे दिया है भगवान जी....मेरी औकात से ज्यादा देखो हाथ ठेले में सब्जी बेचता था आज खुद की दुकान है उसमें ढेर सारी सब्जी हैं.....बहुत कृपा की है भगवान जी बस ऐसे ही दया बनाये रखना’’ । वह ध्यान लगाकर कुछ देर तक भगवान जी के चित्र को देखता । भगवान जी फोटो में मंद मंद मुस्करा रहे होते । उनकी मुस्कान को देखकर मुन्ना प्रसन्न हो जाता । भगवान जी से फुर्सत पाकर वह बच्चों को जगाता ‘‘अरे उठो....ऐसे ही पड़े रहोगे क्या.......’’ । बच्चे समझ जाते कि अब उसके पिताजी दुकान जाने वाले हैं फिर दिनभर उनका कोई पता नहीं रहेगा । वे अलसाये हुए उठ जाते और अपने बिस्तर में ही बैठ जाते । वे अपने पिताजी के निकलने का इंतजार करते । पिताजी जैसे ही घर के बाहर निकलते वे फिर से सो जाते । मुन्ना बाहर आता और अपनी माॅ के पैर पड़ता तब उसकी पत्नी उसके हाथों में पोटली थमा देती । मुन्ना जानता था कि इस पोटली में दो रोटी और थोड़ी सी सब्जी होगी । यह उसका दोपहर का खाना था जिसे वह जब भी फुरसत मिलती खा लेता । कई बार तो देापहर के बाद ही वह खा पाता पर जब खाता  उसे बेहद स्वादिष्ट लगता ‘‘कितना अच्छा खाना बनाती है मेरी घरवाली’’ वह मन ही मन अपनी पत्नी की तारीफ करता और आसमान की ओर देखता हांलाकि उसकी दुकान के उपर छत होने के कारण उसे आसामन दिखाई नहीं देता पर वह छत को ही आसमान मानकर भगवान जी के प्रति आभार प्रकट कर देता ‘‘अब वैसे भी अरसमान से ही कौन भगवान जी दिखाई देते हें वैसे ही छत से भी दिखाई नहीं दे रहे हैं ’’ । भगवान के प्रति उसकी श्रद्धा प्रकट करने का दूसरा भाग प्रारंभ हो चुका होता अब दिन में अनेक बार वह ऐसे ही आसमान की ओर देखेगा और श्रद्धा व्यक्त करता रहेगा । खाने की पोटली को अपने हाथ में दबाकर माॅ के पैर पड़कर वह उसे घर से निकल जाता । घर के बाहर कदम रखते ही उसके सिर अपने आप आसमान की ओर उठ जाता ।
                 मुन्ना को कुछ मालूम नहीं था । उसने टी.व्ही देखी थी प्रधानमंत्री को भी देखा था और कोरोना को भी सुना था पर इसके मायने क्या है वह कुछ नहीं जानता था । वह तो रोज की तरह सुबह-सुबह जल्दी से तैयार होकर दुकान की ओर निकल पड़ा था । उसे अजीब सा जरूर लग रहा था कि जब वह घर से निकलता था तो धनराज की चाय की दुकान खुल चुकी होती थी जो आज अभी तक नहीं खुली आगे चक्कू की छोटी सी किराना दुकान भी खुल जाती थी वह भी आज नहीं ख्ुाली थी । आगे देवी जी का मंदिर था उसमें पंडितजी पूजा करते मिलते थे वह मंदिर के बाहर से ही देवी जी की मूर्तिे के सिर रखकर पैर पड़ लिया करता था और पंडितजी को ‘‘पायलागू’’ बोल दिया करता था वो भी आज अभी तक बंद था । उसका माथा ठनका ‘‘कहीं कोई बड़ा नेता गुजर तो नहीं गया.......हे भगवान मेंरी सब्जी का क्या होगा.’’ मुन्ना को याद है कि एक बार प्रधानमंत्री जी गुजर गए थे तो सारे शहर में लगभग सारी दुकानें ऐसी ही बंद रहीं आई थीं । पर प्रधानमंत्री जी तो कल ही टी.व्ही में दिख रहे थे.....अच्छे भले थे चेहरे पर चमक थी और बहुत देर तक कुछ-कुछ बालते भी रहे थे नहीं...नहीं.....फिर......’’ उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी । वह कुछ कदम और आगे बढ़ा मोहल्ले की सारी दुकानें बंद थीं । उसके कदम रूक गए ।
मुन्ना सहमा सा एक हाथ ठेले के बाजू में खड़ा था । आगे चैराहे पर बहुत सारे पुलिस के लोग खड़े थे । पूरा चैराहा सुनसान था । मार्च के महिने में सूरज के तेवर तो ऐन सुबह से ही तीखे हो जाते हैं इसलिये इन दिनों लोगों की दिनचर्या भी सुबह जल्दी ष्रुरू हो जाती है । वह जब दुकान जाता है तब चारों ओर हलचल रहती है । पर आज बिल्कूल नहीं है । मंदिर तक बंद है और चैराहे पर इतनी सारी पुलिस खड़ी है । मुन्ना के कदम रूक गए । वह एक हाथ ठेले के बाजू में आकर खड़ा हो गया था और सारे माजरे का समझने का प्रयास कर रहा था पर उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । उसने अपनी आदत के अनुसार आसामान की ओर देखा । आसमान में एक कौआ ‘कांव....कांव’’ करता यहां से वहां उड़ रहा था । उसने कौआ के उपर भगवान जी को देखने का प्रयास किया जो हमेशा की तरह इस बार भी बेकार ही गया । उसने अपनी नजरों को फिर चैराहे पर लगा लिया । कोई मोटरसाईकिल वाले को पुलिस वालों ने रोका था । उनके बीच में कोई बातचीत चल रही थी । मुन्ना को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । एक पुलिस वाले ने मोटरसाईकिल वाले की पीठ पर लाठी मारी थी । मुन्ना घबरा गया । मोटर साईकिल वाले ने अपनी गाड़ी को जोर से आगे बढ़ा दिया था । उसकी गाड़ी आगे बढ़ती देख उक दूसरे पुलिस वाले ने डंडा उसकी ओर उछाल दिया पर जब तक डंडा उस मोटरसाइकिल वाले तक पहुंचता वह दूर निकल गया था । पुलिस वालों का मूड अपसेट हो गया उनकी बोनी खराब हो गई थी । तभी एक पुलिस वाले की नजर मुन्ना पर पड़ गई
‘‘ये इधर आ......आ....’’ उसने शायद देशी गाली दी थी । मुन्ना घबरा गया । उसने मोटरसाईकिल वाले की पीठ पर लाठी पड़ते देख लिया था हांलाकि उसकी समझ में यह नहीं आया था कि पुलिस वालों ने उस बेचारे को मारा क्यों ‘‘हो सकता है उसके पास लायसेंस न हो...’’ मुन्ना ने अपने ही प्रश्न का उत्तर खुद ही दे दिया था । मुन्ना की यह आदत पहिले से ही रही है । उसके दिमाग में प्रश्न तो कई उठते पर उनका उत्तर वह अपनी ही समझ से खुद ही दे देता ।
                     पुलिस वालों को लाॅकडाउन की बोनी करनी थी । वो मोटर साईकिल वाला इस बोनी की चपेट में आने वाला था । चैराहे पर खड़े पुलिस वालों ने दूर से ही मोटरसाईकिल वाले को आते देख लिया था । उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव परिलक्षित होने लगे थे उन्होने इसी प्रसन्नता क बलबूते पर उसे रोका भी और पहला ग्राहक हेै मानकर उसे सम्मान भी दिया । उन्होने उसे अपनी सफाई देने का अवसर दिया । पुलिस की भाषा में यह सम्मान देना ही होता है वरना पुलिस कभी किसी को सफाई देने का अवसर नहीं देती वह तो छूट चांटा या डंडा बरसाने लगती है जब तक व्यक्ति समझ पाता कि उसे क्यों मारा जा रहा है तब तक वह कई डंडे खा चुका होता ।  कुछ डंडे मार देने के बाद उसे केवल बताया जाता कि उसे क्यों मारा जा रहा है । उंडे खा लेने के बाद सामने वाला इतना भयभीत हो चुका होता कि वह खुद ही भूल जाता कि उसे उत्तर क्या देना है । उसे उत्तर न देते देख उसे और डंडे खाने पड़ते । पर मोटरसाईकिल वाले को सम्मान मिला और उससे प्रश्न किया गया जिसका उत्तर भी उसने दिया
‘‘कहां जा रहे हो......’’?
‘‘दूध लेने....’’
‘‘मालूम नहीं है कि लाॅकडाउन लगा है’’
‘‘मालूम है पर उसमें दूध लेने जाने की परमीशन है’’
जबान लड़ाता है । इसके बाद उसकी पीठ पर डंडा मारा गया और एक पुलिस वाले ने अपना शुभारंभ किया पर यह शुभारंभ भव्य नहीं हो पाया । पुलिस वाले जानते थे कि लाॅकडाउन में दूध लेने जाने की छूट है । मोटरसाईकिल वाला समझ गया था कि वह मुर्गा बनने जा रहा है भले ही दूध के लिये छूट हो पर पुलिस को यदि मुर्गा बनाना है तो वह बनाकर ही रहेगी। इसलिये उसने अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ा ली थी । बहुत दूर जाकर उसने बच जाने की प्रसन्नता को महसूस किया फिर वह दूसरे मार्ग से गलियों से होता हुआ अपने घर लौटा ।
                  पुलिस वाले चैराहे पर लाॅकडाउन के शुभारंभ का जश्न मनाने खड़े थे उसकी बोनी अच्छी  नहीं हुई थी । उनके चेहरे पर झुझलाहट के भाव दिखाई दे रहे थे । इसी आदर्श वातावरण में नहाया, तैयार हुआ मुन्ना उन्हें एक हाथ ठेले के पास खड़ा दिखाई दे गया । वैसे तो पुलिस वाले उस पर सीधे ही डंडा बरसाते पर वह उनसे दूर था और उन्हें भय था कि वो पुलिस वालों को अपनी ओर आता देख भाग न जाए इसलिये उन्होने दूर से पहिले उसे आवाज लगाई
‘‘ऐ.......इधर आ.......वहां कैसे खड़ा है....चल इधर आ....’’
पुलिस को भरोसा था कि मुन्ना उनकी दहाड़ सुनकर भागने की कोशिश करेगा इसलिये कुछ पुलिस के जवान दौड़ने की भी तैयारी कर चुके थे । मुन्ना ने मोटरसाइकिल वाले को मार खाते देख लिया था ये अलग बात है कि वह यह नहीं समझ पाया था कि मोटरसाईकिल वाले को आखिर मारा क्यों गया है और उनके बीच में क्या बात हुई । फिर उसने मोटरसाईकिल वाले को भागते हुए भी देखा और पुलिस वालों को उसके ऊपर डंडा फेंकते भी देखा । वह समझ गया था कि वो तो मोटरसाईकिल पर था इसलिये बच गया यदि वह भागने की कोशिश करेगा तो वह बच नहीं पायेगा । उसने जैसे ही पुलिस वालों को बुलाते सुना तो खुद ही उनकी ओर बढ़ गया । पुलिस वालों को इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी । मुन्ना उनके नजदीक पहुंच चुका था और इसके पहिले पुलिस वाले कुछ पूछते उसने ही पूछ लिया था
‘‘साहब जी......आज सब कुछ बंद क्यों है और आप लोग यहां क्यों खड़े हो...’’ मुन्ना हाथ जोडे था
‘‘तुझे पता नहीं.....लाॅकडाउन लग गया है.......सब कुछ बंद कर दिया गया है.....कोई भी घर से नहीं निकल सकता......जानता नहीं है तू......’’ । वैसे तो पुलिस वाले उसे मारना नहीं चाह रहे थे पर एक अति उत्साही पुलिस वाले ने उस पर डंडे का प्रहार कर ही दिया
‘‘साहब ....जी.....हम गरीब आदमी हैं हम तो कुछ पता ही नहीं.......’’
‘‘अच्छा ठीक है....तुम अपने घर लौट जाओ....जाओ जल्दी से....’’
मुन्ना ने पहिले आसमान की ओर देखा फिर अपने कदम घर की ओर बढ़ा लिये । हर कदम के साथ उसके सामने अपनी दुकान पर रखी सब्जी और चैराहे पर खड़ी पुलिस ही दिखाई दे रही थी । वह अभी तक न तो कोरोना को समझ पाया था और न ही लाॅकडाउन को । वह तो पुलिस वालों से पूछ लेना चाह रहा था कि वो कब तक अपनी दुकान पर नहीं जा सकता पर उसकी हिम्मत ही नहीं हुई थी । वह तो वैसे भी घबरा गया था । उसे ध्यान आया कि उसकी पीठ पर भी एक डंडा पड़ा है । ध्यान आते ही उसे पीठ पर दर्द महसूस होने लगा । पर इस डंडे के दर्द से ज्यादा दर्द उसे दुकान न खोल पाने के लिये हो रहा था । यदि सब्जी आज न बेची गई तो खराब हो जायेगी फिर तो उसे फेंकना ही पड़ेगा उसका कितना नुकसान हो जायेगा । वह मन ही मन नुकसान का गणित लगा रहा था । अब उसे पीठ में दर्द के साथ ही साथ नुकसान का दर्द भी महसूस होने लगा था । कुछ कदम चलकर उसने पलटकर एक बार फिर चैराहे की ओर देखा । पुलिस वालों को अपना शुभारंभ करने के लिये कोर्ठ मिल गया था और वे भव्य तैयारी कर रहे थे । उसके कदम खुद ब खुद गति पकड़ चुके थे ।
मुन्ना को सहमा सा वापिस आया देख माॅ डर गई वो बाहर ही बैठी थीं
‘‘काय काय लौट आओ........’’ उनको यह समझने की उत्सुकता थी कि आखिर मुन्ना लौटा क्यों वो भी डरा हुआ । माॅ की आवाज सुनकर मुन्ना की पत्नी भी अंदर से निकल आई थी । आश्चर्य उसे भी हो रहा था क्योंकि मुन्ना कभी इस तरह वापिस लौटता ही नहीं था । मुन्ना अभी भी घबराया हुआ था । उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थी । वह सारा कुछ बताकर बिस्तर पर लेट गया था । उसकी पत्नी ने उसकी पीठ पर हल्दी लगा दी थी । वह दिन भर यूं ही पड़ा रहा । सभी लोग सहमें से नजर आ रहे थे ।
                    लाॅकडाउन नहीं खुल रहा था । सब कुछ बंद था । दुकानें तो बंद थी ही लोगों का घर से निकलना भी बंद था । केवल पुलिस की गाड़ियां दौड़ती दिखाई दे जाती थी । मुन्ना अब कोरोना और लाॅकडाउन दोनों का मतलब समझ चुका था । उसकी जमापूंजी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी । दुकान पर रखा सामसान तो खराब हो ही गया होगा वह अंदाजा लगा चुका था । उसे अब चिन्ता उन लोगों की भी हो रही थी जिनकी उधारी उसे देना थी । यदि दुकान चल रही होती तो वह अब तक सभी की उधारी चुका दिया होता । दुकान बंद है पर खर्चा तो चालू है ही न । वह कहां से लाये खर्चा ।
‘‘माॅ क्यों न मैं फिर से हाथ ठेले पर सब्जी बेचने निकल जाऊं......कुछ तो पैसा आ ही जायेगा’’
‘‘और पुलिस वालों ने फिर से मारा तो......’’
मुन्ना ने अपनी पीठ पर फिर से दर्द महसूस किया हालाकि अब तक तो वहां से वह दर्द गायब हो चुका था । मुन्ना उस घटना को भूल नहीं पाया था । रह-रह कर उसे अपनी सब्जी और पुलिस का डंडा याद आ ही जाता । 
‘‘पर माॅ लाकडाउन का कोई ओर-छोर दिखाई दे नहीं रहा है कुछ तो करना ही पड़ेगा’’
मुन्ना अपने हाथ ठेले के पास आकर खड़ा हो गया और उस पर प्यार से हाथ फेरने लगा ।
ठस हाथ ठेले ने ही पहिले भी उसकी जिन्दगी संवारी है और अब भी वही संवारेगा । मुन्ना ने गहरी सांस ली ।
                  उसकी पत्नी ने पैसे निकालकर उसके हाथों में रखे थे
‘‘ ये लो सब्जी खरीद लाओ........’’
उसने प्यार से अपनी पत्नी की ओर देखा
‘‘सुनो.....इस बार न तो इस पर ब्याज लगेगा और न ही आपको लौटाना है केवल अपनी दुकान फिर से जमा लो....’’ । कहते हुए वह अपने काम पर लग गई थी । मुन्ना ने आसमान की ओर देखा ।
               इस साल अप्रेल में ही गर्मी ने रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया था । सभी लोग वैसे भी अपने घरों में कैद थे । बाहर सन्नाटा पसरा रहता था । सुबह-सुबह जरूर कुछ हलचल दिखाई देती थी । महिलायें दूध लेने घरों से बाहर निकलती थी । कुछ पुरूष भी यहां-वहां घूमते दिखाई दे जाते थे । जरूरतों की समाना भी इसी समय ले लिया जाता था हांलाकि इसकी परमीशन नहीं थी । पर आम आदमी बगैर खाये तो रह नहीं सकता । किसी के पास इतना सामान नहीं होता कि वह महिनों सामान लिये बगैर जीवन निर्वाह कर ले । पुलिस के जवानों की प्रारंभ अच्छा नहीं गया था इसलिये अब लोगों के पिटने की खबरें भी ज्यादा आने लगी थीं ं पुलिस बेवजह और वजह के साथ घर से निकलने वालों पर बेदर्दी से डंडा बरसा रही थी ं। कोरोना देश में तो फैल रहा था पर यह शहर अभी उससे बचा हुआ था । अधिकारियों को लगता कि उनकी कड़ाई के कारण कोरोना नहीं फैल पाया है वे इसके चलते ज्यादा सख्त बने हुए थे । मुन्ना भयभीत था । वह डरते हुए गाहेबेगाहे चैराहे की ओर चला जाता यह देखने की दुकानें खुल रहीं हैं की नहीं । वह चारों ओर नजरें घुमाता सब कुछ बंद दिखाई देता और चैराहे पर खड़ी पुलिस दिखाई देती तो वह वापिस आ जाता । उसने यह तो तय कर लिया था कि उसे हाथ ठेले पर सब्जी की दुकान सजा लेना चाहिये और मोहल्ले-मोहल्ले जाकर सब्जी बेच लेनी चाहिये पर उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी । पर आखिर कब तक घर पर बैठा रहा आता इसलिये एक दिन वह सुबह ही सब्जी का ठेला लेकर निकल पड़ा था ।
                मुन्ना गली-कूंचों से होकर मोहल्लों में जाता और धीमे आवाज लगाकर सब्जी बेचने की कोशिश करता । पहिले दिन तो उसकी सब्जी अच्छी बिक गई थी । उसका हौसला भी बढ़ गया था । वह दूसरे दिन भी हाथ ठेला लेकर निकल गया था । थोड़ी ही सब्जी बेच पाया था कि पुलिस की गाड़ी ने उसे पकड़ लिया
‘‘तू जानता नहीं है कि लाकडाउन लगा है ’’
‘‘जी साहब.......’’
‘‘ जानता है फिर भी तू सब्जी का ठेला लिये घूम रहा है’’ पुलिस वाले ने भद्दी गाली भी दी थी
‘‘हुजूर....बहुत दिनों से काम बंद है घर में बच्चे भूखे हैं.....थोड़ी सी सब्जी बिेक जायेगी तो ...’’
‘‘ये मुंह चलाता है...’’
‘‘नहीं......नहीं साहब जी.....सब्जी नहीं बेचेंगे तो हम खायेगें क्या...’’ । मुन्ना डर के मारे कांप रहा था
‘‘वो हम नहीं जानते सरकार से पूछो हमें तो यह देखना है कि कोई घर के बाहर न निकले’’
‘‘हमारे लिये तो आप ही सरकार है.......’’
‘‘साला मान नहीं रहा है और मुंह चला रहा है....इसके ठेले को जप्त कर लो......’’
वह कुछ समझ पाता तब तक कुछ पुलिस वाले गाड़ी से उतरकर उसकी ओर आने लगे थे ।
‘‘हम पर रहम करो माई-बाप...’’ मुन्ना रोने लगा ।
‘‘एक काम करो इसकी सारी सब्जी अपनी गाड़ी में डाल लो हमारे घर भी तो सब्जी की जरूरत हेै’’ हंसते हुए साहब ने बोला था । मुन्ना रोता रहा चिल्लाता रहा । पर किसी ने एक न सुनी उसके हाथ ठेले में रखी सारी सब्जी को समेट कर गाड़ी में डाल लिया गया था । गाड़ी जा चुकी थी । मुन्ना खाली हाथ ठेले पर बैठा रो रहा था । उसकी हिम्मत अपने घर जाने की नहीं हो रही थी । वह रह रह कर आसमान की ओर देख लेता पर उसके आंसू थम नहीं रहे थे ।
-०-
पता:
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

-०-
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करवा चौथ (कविता) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

करवा चौथ
(कविता)
प्रेमिल गहरा राज़ ले,आती करवा चौथ।
मिलन कराती देह का,भाती करवा चौथ।

चंदा बनता साक्षी,गाता नेहिल गीत,
हियकर मधुरिम चाँदनी,लाती करवा चौथ।

प्रेम बढ़े तब और भी,जब आता यह पर्व,
अंतर्मन की प्रीति को,गाती करवा चौथ।

यादों के सँग,नेहरस,की देती सौगात,
प्यार,समर्पण भेंट दे,जाती करवा चौथ।

छलनी के पीछे दिखे,मनहारी इक रूप,
अपनेपन के भाव की,पाती करवा चौथ।

सदियों से युग गा रहा,परिणय के सुधि गीत,
संस्कार,अनुराग की,थाती करवा चौथ।

इतिहासों में दर्ज़ है,मिलन और मधुमास,
गिले और शिकवे सभी,खाती करवा चौथ।

उर के भीतर जा पहुँच,बनती भावावेश,
हर दिल में देखो सदा,छाती करवा चौथ।

इक-दूजे को हैं बने,गहे हाथ को हाथ,
एक दिया तो दूसरा,बाती करवा चौथ।

कृष्ण-राधिके सा मिलन,राम-सिया सा मेल,
प्यार गहे नवरूप सो,आती करवा चौथ।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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ये कैसी मजबूरी है (कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

 

ये कैसी मजबूरी है
(कविता) 
ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।
दूजों की रक्षा की खातिर,
मेरी हर ख्वाहिश अधूरी है।।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।

माता पिता और भाई बहन,
सब रिश्ते नाते छूट गए।
बचपन के बिछुड़े मित्रों को,
देखन को नैना फूट गए।।
देशरक्षा हित में कुछ मजबूरी है।।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।।

स्वार्थ हित कैसे मुकर जाएं हम,
सीमा से पीछे हटाएं कदम।
दुश्मन है आंखे दिखाते खड़ा,
कर्तव्य है उन्हें धूल चटायें हम।।
हर भारतवासी की रक्षा जरूरी है।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

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*ढाई अक्षर हिंदी के* (आलेख) - श्रीमती पूनम दीपक शिंदे

  

*ढाई अक्षर हिंदी के*
(आलेख)
भारत देश कश्मीर से कन्याकुमारी तक विविधताओं से भरा है। इस विविधता में भाषाई विविधता भी एक है। आज भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं किन्तु पूरे देश को जोड़नेवाली एक ही भाषा है - हिंदी । हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है वरन यह एक विचार ,चिंतन और संस्कृति भी है। यह वह भाव है जिसमें हम हँसते, रोते और मुस्कुराते भी हैं ।यह हमारी भावनाओं से जुड़ी हुई भाषा है। यह हमारी संवेदनाओं का संवहन भी करती है। हिंदी हमारी उम्मीदों की भाषा तो है ही साथ ही साथ हमारी जरूरत की भी भाषा है।

हिंदी जनसंपर्क का सरल व सुगम साधन है। इतनी सारी भाषाओं व बोलियों के बीच देश में एक भाषा को सर्वोपरि स्थान मिलना अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। आज़ादी के बाद जब संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँध कर रखने की आवश्यकता महसूस हुई तो यह उत्तरदायित्व हिंदी को दिया गया। तभी से 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया गया। हिंदी एक जीवित भाषा है। नए-नए शब्दों को समाहित करने का गुण ,बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का हौसला इसकी जीवंतता का प्रमाण है। हिंदी भाषा का साहित्य अत्यंत समृध है। काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास, जीवनी, निबंध, गीत, डायरी, संस्मरण आदि हर विधा में हिंदी का साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके अलावा बहुत सी विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अनुवाद भी हिंदी भाषा में किया गया है। यह अनुवाद इस बात का सूचक है कि हिंदी सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है

भाषा हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है। ईश्वर ने मनुष्य मात्र को ही इस अनुपम गुण से सुशोभित किया है। कबीरदास जी ने भाषा को 'बहता नीर' कहा है। आज भी भाषा बहता नीर बनकर मनुष्य की सेवा कर रही है। वैसे ही जैसे नदियों के पास बड़ी- बड़ी संस्कृतियाँ विकसित हुई वैसे ही भाषा रूपी नदी के पास मानव और साहित्य का विकास हुआ। भाषा ने मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन और उत्साहवर्धन भी किया है। हिंदी भाषा में अपनत्व और प्रेम में नवरस का संचार हुआ है। सिर्फ हिंदी ही पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है।
       अगर हम मुंबई की बात करें तो भारत के किसी भी महानगर की अपेक्षा सबसे अधिक बहुभाषियों की संख्या मुंबई में है।मुब्ई में बोल-चाल के रूप में बोली जाने वाली बंबईया हिंदी शामिल है। जिसमें अधिकांश शब्द और व्याकरण तो हिंदी के ही हैं। किन्तु इसमें हिंदी के अलावा मराठी और अंग्रेजी के शब्द भी होते हैं। मुंबई में रोजगार की तलाश में लाखों लोगों का आना - जाना लगा रहता है। आने वाला हर व्यक्ति अपनी भाषा लेकर आता है। परन्तु यहाँ आने पर औरों से बातचीत करने के लिए दूसरों की भाषा को भी जाने- अनजाने बोलचाल के दौरान स्वीकारना पडता है। यही वजह है कि यहाँ सभी भाषाओं का संगम देखने को मिलता है । इसलिए एक प्रकार इसे भाषायी कुंभ कहा जा सकता है।

हिंदी भाषा अपनी सहजता, सरलता के कारण ही सब की प्रिय बन बैठी है। गैर हिंदी भाषी लोग भी हिंदी के गाने और हिंदी फिल्में देखना बेहद पसंद करते हैं। भाषा की सहजता के कारण ही इस मायानगरी में सभी का गुजर-बसर आसानी से हो जाता है। यही बहुभाषाएँ एवं संस्कृतियाँ हिंदी के महत्व को बढ़ाती हैं। हम कहते हैं कि कोस-कोस पर पानी बदले ,पाँच कोस पर बानी। इस उक्ति के आधार पर भी स्थान परिवर्तन से भाषा में बदलाव सम्भव है।

हिंदी की महत्ता और लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि पूरा विश्व हमारी हिंदी से प्रेम करता है। तभी तो दुनिया के कोने - कोने में हिंदी बोलने वाले और इससे प्रेम करने वाले लोग पाये जाते हैं । हिंदी के ढाई अक्षर हमें और हमारी संस्कृति को पूर्णता प्रदान करते हैं। 

यदि हम हिंदी के महत्व और सम्मान की बात करें तो यह अपने आप में ठोस व प्रमाणिक ढंग से अपनी जगह खड़ी है। इसे अपनाकर कोई भी अपने वजूद को बनाये रख सकता है। इसने सबको पाला है, सँवारा है । इसने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। आज भी हिंदी सम्पूर्ण राष्ट्र में गौरव प्राप्त भाषा के रूप में पहचानी जाती है, क्योंकि इसने सागर की तरह सबको अपने में समाहित किये हुये आगे बढ़ने का काम कर रही है।
-०-
श्रीमती पूनम दीपक शिंदे
मुंबई (महाराष्ट्र)

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