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Thursday, 5 November 2020

ये कैसी मजबूरी है (कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

 

ये कैसी मजबूरी है
(कविता) 
ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।
दूजों की रक्षा की खातिर,
मेरी हर ख्वाहिश अधूरी है।।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।

माता पिता और भाई बहन,
सब रिश्ते नाते छूट गए।
बचपन के बिछुड़े मित्रों को,
देखन को नैना फूट गए।।
देशरक्षा हित में कुछ मजबूरी है।।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।।

स्वार्थ हित कैसे मुकर जाएं हम,
सीमा से पीछे हटाएं कदम।
दुश्मन है आंखे दिखाते खड़ा,
कर्तव्य है उन्हें धूल चटायें हम।।
हर भारतवासी की रक्षा जरूरी है।

ये कैसी मजबूरी है,
जहाँ अपनों से ही दूरी है।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

***
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