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Thursday, 5 November 2020

करवा चौथ (कविता) - प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

करवा चौथ
(कविता)
प्रेमिल गहरा राज़ ले,आती करवा चौथ।
मिलन कराती देह का,भाती करवा चौथ।

चंदा बनता साक्षी,गाता नेहिल गीत,
हियकर मधुरिम चाँदनी,लाती करवा चौथ।

प्रेम बढ़े तब और भी,जब आता यह पर्व,
अंतर्मन की प्रीति को,गाती करवा चौथ।

यादों के सँग,नेहरस,की देती सौगात,
प्यार,समर्पण भेंट दे,जाती करवा चौथ।

छलनी के पीछे दिखे,मनहारी इक रूप,
अपनेपन के भाव की,पाती करवा चौथ।

सदियों से युग गा रहा,परिणय के सुधि गीत,
संस्कार,अनुराग की,थाती करवा चौथ।

इतिहासों में दर्ज़ है,मिलन और मधुमास,
गिले और शिकवे सभी,खाती करवा चौथ।

उर के भीतर जा पहुँच,बनती भावावेश,
हर दिल में देखो सदा,छाती करवा चौथ।

इक-दूजे को हैं बने,गहे हाथ को हाथ,
एक दिया तो दूसरा,बाती करवा चौथ।

कृष्ण-राधिके सा मिलन,राम-सिया सा मेल,
प्यार गहे नवरूप सो,आती करवा चौथ।
-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
-०-


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