बूढ़े बरगद की छाया
(कहानी)
बूढ़े बरगद की छाया रोहितपुर गांव नदी किनारे बसा था,मैन हाईवे से थोड़ा ही दूर था इस गांव में आज़ाद हिंद
फ़ौज में कर्नल रहे सोनाराम का 1943 में लगाया एक बरगद का पौधा एक विशाल रूप ले चुका था। सोनाराम तो आज़ादी के दो साल बाद ही चल बसे थे । सोनाराम की यादों के रूप में बरगद का पेड़ आज पूरे गाँव की पहचान और जरूरत बन गया था ।पंचायत ने पेड़ के चारों ओर ईंट की काफी चौड़ी ,ऊंची शिला बना कर टाइल्स तक लगा बढ़िया बना दिया था। पास में ही शिव मंदिर था। थोड़ी ही दूरी पर मीठे साफ़ पानी का गहरा पक्की मुंडेर वाला कुआँ । गांव का यह इलाका बच्चों, महिलाओं और पुरुषों से दिन भर आबाद रहता । बच्चे खेलते रहते, महिलाओं का मंदिर आना जाना, कुएं से पानी भरना,पुरुषों का बरगद के नींचे बैठ दुःख सुख बाँटना हर
रोज की दिनचर्या थी साथ मे पक्षियों का कलरव,चहचाहट जीवंत रूप दे देती थीं ।
सातवीं कक्षा में पढ़ रहा शामू खुद को गौरवान्वित महसूस करता था, जब लोग यह कहते थे कि यह पेड़ शामू के परदादा ने लगाया था । इतने बड़े घने पेड़ की छाया में पंचायत की बैठक भी होती थी । चुनाव सभा, रामलीला, नाटक, सामूहिक भंडारा यहीँ पर होते थे । सारा दिन उल्लास व खुशी का वातावरण रहता था ।
पर एक दिन ऐसी खबर आई,कि गांव भोचन्का रह गया। शामू के पापा जो तहसील में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे, खबर लाये,मैन हाईवे से ले कर फिरनी तक का सारा एरिया एक बड़ी मल्टी नैशनल कंपनी ने खरीद लिया है, उसमें बरगद के पेड़ वाली जगह भी आयेगी । यह सुनते ही गाँव मे सन्नाटा सा छा गया।पेड़ कटने की आशंका से ही लोग सिहर उठे । सारे गांव वाले सरपंच के पास गए, उसने बताया कि सरकार तो फैसला ले चुकी हैं । कुछ ही दिन में कब्ज़ा लेने व जो सात-आठ घरों को जो उस जगह में आयंगे, मुआवजा देने ,कंपनी के बड़े पदाधिकारी ,जिलाधीश के संग पुलिस बल के साथ आयंगे । अगले दिन सरपंच के साथ कुछ लोग शहर में विधायक के पास
गए, उसने बात को अनसुना कर दिया, वह तो कंपनी के साथ सांठगांठ कर,अधिकारियों के साथ मिल कर पूरा जाल बिछा चुका था। गांव के लोग सब मिल कर बरगद के पेड़ के नीचे इकठ्ठे हुए, एक संघर्ष समिति बनी, जिसके प्रधान सर्व सम्मति शामू के दादा हरिराम को बनाया गया। गांव वालों का बस यही कहना था कि बरगद के पेड़ से हमारी अन्तरात्मा, हमारी भावनाएँ जुड़ी हैं ।
फ़ौज में कर्नल रहे सोनाराम का 1943 में लगाया एक बरगद का पौधा एक विशाल रूप ले चुका था। सोनाराम तो आज़ादी के दो साल बाद ही चल बसे थे । सोनाराम की यादों के रूप में बरगद का पेड़ आज पूरे गाँव की पहचान और जरूरत बन गया था ।पंचायत ने पेड़ के चारों ओर ईंट की काफी चौड़ी ,ऊंची शिला बना कर टाइल्स तक लगा बढ़िया बना दिया था। पास में ही शिव मंदिर था। थोड़ी ही दूरी पर मीठे साफ़ पानी का गहरा पक्की मुंडेर वाला कुआँ । गांव का यह इलाका बच्चों, महिलाओं और पुरुषों से दिन भर आबाद रहता । बच्चे खेलते रहते, महिलाओं का मंदिर आना जाना, कुएं से पानी भरना,पुरुषों का बरगद के नींचे बैठ दुःख सुख बाँटना हर
रोज की दिनचर्या थी साथ मे पक्षियों का कलरव,चहचाहट जीवंत रूप दे देती थीं ।
सातवीं कक्षा में पढ़ रहा शामू खुद को गौरवान्वित महसूस करता था, जब लोग यह कहते थे कि यह पेड़ शामू के परदादा ने लगाया था । इतने बड़े घने पेड़ की छाया में पंचायत की बैठक भी होती थी । चुनाव सभा, रामलीला, नाटक, सामूहिक भंडारा यहीँ पर होते थे । सारा दिन उल्लास व खुशी का वातावरण रहता था ।
पर एक दिन ऐसी खबर आई,कि गांव भोचन्का रह गया। शामू के पापा जो तहसील में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे, खबर लाये,मैन हाईवे से ले कर फिरनी तक का सारा एरिया एक बड़ी मल्टी नैशनल कंपनी ने खरीद लिया है, उसमें बरगद के पेड़ वाली जगह भी आयेगी । यह सुनते ही गाँव मे सन्नाटा सा छा गया।पेड़ कटने की आशंका से ही लोग सिहर उठे । सारे गांव वाले सरपंच के पास गए, उसने बताया कि सरकार तो फैसला ले चुकी हैं । कुछ ही दिन में कब्ज़ा लेने व जो सात-आठ घरों को जो उस जगह में आयंगे, मुआवजा देने ,कंपनी के बड़े पदाधिकारी ,जिलाधीश के संग पुलिस बल के साथ आयंगे । अगले दिन सरपंच के साथ कुछ लोग शहर में विधायक के पास
गए, उसने बात को अनसुना कर दिया, वह तो कंपनी के साथ सांठगांठ कर,अधिकारियों के साथ मिल कर पूरा जाल बिछा चुका था। गांव के लोग सब मिल कर बरगद के पेड़ के नीचे इकठ्ठे हुए, एक संघर्ष समिति बनी, जिसके प्रधान सर्व सम्मति शामू के दादा हरिराम को बनाया गया। गांव वालों का बस यही कहना था कि बरगद के पेड़ से हमारी अन्तरात्मा, हमारी भावनाएँ जुड़ी हैं ।
पिछले 75-80 वर्षों से हम इसकी छत्रछाया में बड़े हुए है, हम यह पेड़ नही कटने देंगे ।अगले दिन कंपनी के अफसर पुलिस बल के साथ आ गये । काफी देर तक गांव वालों से बहस होती रही। पेड़ न कटने देने की बात
पर सभी अडिग थे । काफी अधिक समय बीत पुलिस बल का धैर्य जवाब दे गया । उप पुलिस अधीक्षक ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। सभी ग्रामीण वहीँ पेड़ के चारों और लेट गए। लाठियाँ खाते रहे,पर हिले नहीं।जिला धीश लाठीचार्ज की खबर मिलते ही तुरंत पहुंच गए। उन्होंने भी लोगों को समझाने की कोशिश की,
पर सब बेकार। तभी एक अच्छी बात हुई, कंपनी के पदाधिकारियों ने बताया कि हमारे सी एम डी साहब पूना से अभी फ्लाइट से आये हैं, एक घंटे में यहीं आ रहे हैं। जिलाधीश भी वहीं रुके रहे,गांव वालों से बात करते रहे।सी एम डी पारिख साहब गाड़ी में आते हुए यही सोच रहे थे आखिर एक पेड़ के लिये इतना संघर्ष, यही सोच उन्हें यहां तक खीचं लाई। पारिख साहब के आते ही हलचल मच गई। सब लोग उत्सुक थे, आखिर निर्णय तो उनको ही लेना था, पारिख साहब उसी बरगद के नीचे बनी शिला पर बैठ गए, उनके साथ जिलाधीश भी थे। सभी ग्रामीण भी शांत हो कर बैठ गए।
पर सभी अडिग थे । काफी अधिक समय बीत पुलिस बल का धैर्य जवाब दे गया । उप पुलिस अधीक्षक ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। सभी ग्रामीण वहीँ पेड़ के चारों और लेट गए। लाठियाँ खाते रहे,पर हिले नहीं।जिला धीश लाठीचार्ज की खबर मिलते ही तुरंत पहुंच गए। उन्होंने भी लोगों को समझाने की कोशिश की,
पर सब बेकार। तभी एक अच्छी बात हुई, कंपनी के पदाधिकारियों ने बताया कि हमारे सी एम डी साहब पूना से अभी फ्लाइट से आये हैं, एक घंटे में यहीं आ रहे हैं। जिलाधीश भी वहीं रुके रहे,गांव वालों से बात करते रहे।सी एम डी पारिख साहब गाड़ी में आते हुए यही सोच रहे थे आखिर एक पेड़ के लिये इतना संघर्ष, यही सोच उन्हें यहां तक खीचं लाई। पारिख साहब के आते ही हलचल मच गई। सब लोग उत्सुक थे, आखिर निर्णय तो उनको ही लेना था, पारिख साहब उसी बरगद के नीचे बनी शिला पर बैठ गए, उनके साथ जिलाधीश भी थे। सभी ग्रामीण भी शांत हो कर बैठ गए।
तभी पारिख साहब उठ खड़े हुए, बोले - गांव वालों हमारी कंपनी यहाँ पर ऑटो पार्ट्स बनाने की 2000 करोड़ की लागत से फैक्टरी लगा रही है, आपके ही गाँव की सबसे अधिक ज़मीन है , यहीं के लोगों को रोज़गार देना है । आप की एक बूढ़े बरगद के पेड़ के प्रति प्यार आस्था व निष्ठा देख कर यह निर्णय लिया है, न तो यह पेड़ कटेगा, न ही इधर फ़ैक्टरी का काम होगा, जो ग्रीन बेल्ट हमने मैन हाई वे पर बनानी थी,अब हम इस बरगद के चारों ओर के एरिया में तैयार करेंगे। इस बरगद के वृक्ष के आगे कंक्रीट का बड़ा स्टेजनुमा प्लेटफार्म होगा।
मेरे दादा जी,पुणे से 40 किलोमीटर दूर एक गांव में रहते थे,तब सड़क निकलने के लिये कई पेड़ों को गिरा दिया गया था, उसमें कुछ मेरे दादाजी ने लगाये थे। मैं तब बहुत छोटा था, उनकी आँखों में आये आंसू मुझे आज भी याद हैं। लगता है आज इस पेड़ को बचा कर मैंने वो ऋण चुका दिया है।इस ग्रीन बेल्ट में फलों के पेड़ भी लगाएँ जायँगे व सब्ज़ियों उगायंगे, इस का फ़ायदा आप सबको मिलेगा। यह सुन लोगों की खुशी का पारावार न
रहाऔर तालियों की गड़गड़ाहट से सारा माहौल गूंज उठा ।
मेरे दादा जी,पुणे से 40 किलोमीटर दूर एक गांव में रहते थे,तब सड़क निकलने के लिये कई पेड़ों को गिरा दिया गया था, उसमें कुछ मेरे दादाजी ने लगाये थे। मैं तब बहुत छोटा था, उनकी आँखों में आये आंसू मुझे आज भी याद हैं। लगता है आज इस पेड़ को बचा कर मैंने वो ऋण चुका दिया है।इस ग्रीन बेल्ट में फलों के पेड़ भी लगाएँ जायँगे व सब्ज़ियों उगायंगे, इस का फ़ायदा आप सबको मिलेगा। यह सुन लोगों की खुशी का पारावार न
रहाऔर तालियों की गड़गड़ाहट से सारा माहौल गूंज उठा ।
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