इस वर्ष आप बालसाहित्य और बच्चों के लिए आप क्या करेंगे ?
(परिचर्चा)
(परिचर्चा)
आप के प्रसिद्ध बालसाहित्यकारों से की गई परिचर्चा . इस में हम ने यह जानने का प्रयास किया है कि वे बच्चें के लिए इस वर्ष क्या नया करना चाहते हैं ?
मुझे एक किस्सा याद आता है. हमारे पड़ोसी बीमार हो गए. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. मगर, उन का कहना था कि उन का पुत्र उन्हीं के घर में रहता है, मगर वह एक बार देखने आया. उस के बाद उस ने उन की सेवा नहीं की. वे घर जाते ही पहला काम यह करेंगे कि उस नालायक पुत्र को घर से बाहर निकाल देंगे.
जब वे मुझे यह बात कह रहे थे, तब मैं ने उन से कहा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. तब वे बोले कि जो औलाद पिता के दुख में काम न आए उस का होना न होना बराबर है. यह सुन कर मैं उन का चेहरा देखने लगा.
ये वही पिता थे जिन्हें ने कभी अपनी मातापिता की सेवा नहीं कीं. उन्हें इसी तरह अकेले छोड़ दिया था. अब वे अपने पुत्र से वही अपेक्षा कर रहे थे, जो उन के मातापिता ने उन से की थी. पुत्र ने जैसा देखा वैसा ही वह कर रहा था. यह देखसोच कर लगा कि हमें बालसाहित्य और बालकों के लिए कुछ करना चाहिए. मगर, क्या करना चाहिए. इस की बानगी इस परिचर्चा में प्रस्तुत है.
विगत दिनों इंदौर में एक सातवीं कक्षा की बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी. उस को गणित विषय में अत्यंत कम अंक प्राप्त हुए थे . पिता ने पुनर्निरीक्षण का आवेदन दिया. दुःख की बात यह रही कि पुनर्निरीक्षण में बालिका के अंक 85 से अधिक प्राप्त हुए. किंतु धैर्य नहीं होने के कारण उस बच्ची ने परिणाम आने के पूर्व ही आत्महत्या कर ली. इंदौर में छोटे-छोटे बच्चों की आत्महत्या के इस तरह के प्रसंग समाज को लगातार उद्वेलित कर रहे हैं.
मुझे एक किस्सा याद आता है. हमारे पड़ोसी बीमार हो गए. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. मगर, उन का कहना था कि उन का पुत्र उन्हीं के घर में रहता है, मगर वह एक बार देखने आया. उस के बाद उस ने उन की सेवा नहीं की. वे घर जाते ही पहला काम यह करेंगे कि उस नालायक पुत्र को घर से बाहर निकाल देंगे.
जब वे मुझे यह बात कह रहे थे, तब मैं ने उन से कहा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. तब वे बोले कि जो औलाद पिता के दुख में काम न आए उस का होना न होना बराबर है. यह सुन कर मैं उन का चेहरा देखने लगा.
ये वही पिता थे जिन्हें ने कभी अपनी मातापिता की सेवा नहीं कीं. उन्हें इसी तरह अकेले छोड़ दिया था. अब वे अपने पुत्र से वही अपेक्षा कर रहे थे, जो उन के मातापिता ने उन से की थी. पुत्र ने जैसा देखा वैसा ही वह कर रहा था. यह देखसोच कर लगा कि हमें बालसाहित्य और बालकों के लिए कुछ करना चाहिए. मगर, क्या करना चाहिए. इस की बानगी इस परिचर्चा में प्रस्तुत है.
विगत दिनों इंदौर में एक सातवीं कक्षा की बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी. उस को गणित विषय में अत्यंत कम अंक प्राप्त हुए थे . पिता ने पुनर्निरीक्षण का आवेदन दिया. दुःख की बात यह रही कि पुनर्निरीक्षण में बालिका के अंक 85 से अधिक प्राप्त हुए. किंतु धैर्य नहीं होने के कारण उस बच्ची ने परिणाम आने के पूर्व ही आत्महत्या कर ली. इंदौर में छोटे-छोटे बच्चों की आत्महत्या के इस तरह के प्रसंग समाज को लगातार उद्वेलित कर रहे हैं.
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बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका- देवपुत्र के संपादक डॉक्टर विकास दवे का कहना है कि इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रख कर विवेकानंद केंद्र के साथ बच्चों के लिए एक मनोविज्ञान परामर्श का केंद्र प्रारंभ करने कि मुझे लंबे समय से इच्छा थी. मैं क्यों कि विगत 20 -25 वर्षों से सतत बाल मनोविज्ञान का अध्ययन कर रहा हूं. बच्चों के साथ लगातार संवाद और काउंसलिंग करने का अवसर भी प्राप्त होता रहता है. अभी तक यह कार्य संस्थागत रूप से न करते हुए व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर परिवारों में जा कर कर रहा था.
आने वाले वर्ष में विधिवत बच्चों की काउंसलिंग का केंद्र प्रारंभ करने का निर्णय लिया है. कार्यालय समय छोड़ कर व्यक्तिगत समय में से समय देते हुए बच्चों के इस काउंसलिंग सेंटर को संचालित करूँगा. इसे किसी भी प्रकार का मेडिकल काउंसलिंग जैसा स्वरूप ना देते हुए एक मनोरंजक केंद्र के रूप में विकसित करने की इच्छा है. उस के लिए नाम भी सोचा हुआ है- " मस्ती की पाठशाला". ईश्वर ने चाहा तो यह केंद्र शीघ्र ही मूर्त रूप लेगा. इंदौर की एक प्रख्यात एलोपैथी चिकित्सक डॉ श्रीमती गोयल के श्रीमान जी श्री अरुण गोयल जी मेरे अभिन्न मित्र हैं. उन्हों ने डॉक्टर श्रीमती गोयल के क्लीनिक पर ही एक कक्ष इस निमित्त देने का आश्वासन दिया है.
आने वाले वर्ष में शीघ्र ही मस्ती की पाठशाला आकार ले लेगी, जहां मनोवैज्ञानिक कारणों से अवसाद ग्रस्त बच्चों, अत्यधिक क्रोध करने वाले बच्चों अथवा अंतर्मुखी हो जाने वाले बच्चों को ध्यान में रख कर उन से लगातार बातचीत और काउंसलिंग के द्वारा उन्हें सामान्य आचरण व्यवहार में ढालने का एक छोटा सा उपक्रम प्रारंभ होगा. आप सब मित्रों का स्नेह और आशीर्वाद मिला तो शीघ्र ही इस काम को प्रारंभ कर सकूंगा.
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आप का कहना है, '' इस वर्ष मैं 25 से अधिक विद्यालयों में पुस्तकों के वितरण करने के साथसाथ काव्यसंग्रह, बालकहानी संग्रह सहित चार पुस्तकें बालकों को समर्पित करने का प्रयास करूंगा. ताकि बालसाहित्यकार व बच्चों के बीच अच्छा कार्य हो सकें.”
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पहला—इस वर्ष मैंने मेरी बाल कविताओं का प्रथम संग्रह प्रकाशित करने का लक्ष्य बनाया है जिसकी कम से कम 100 प्रतियां निशुल्क बच्चों में बांटने की इच्छा है.
दूसरा— मैं वर्षपर्यंत अणुव्रत विश्वभारती राजसमंद में आयोजित बच्चों के शिविरों में उपस्थित रहता हूं. करीब 600 बच्चों के संपर्क में आता हूं. यदि कोई सदस्य अपनी बाल साहित्य की कोई पुस्तक उन बच्चों तक पहुंचाना चाहे तो बच्चों का देश के पते पर 10 -10 प्रतियां भिजवाएं. मैं सही पात्र तक पहुंचाने में मदद कर सकता हूं.
तीसरा— अभी मैं बच्चों का देश पत्रिका के संपादन से जुड़ा हूं, इस पूरे वर्ष यह सेवा जारी रखने को संकल्पित हूं. साथ ही मेरा प्रयास रहेगा कि वरिष्ठ रचनाकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकारों को भी हर अंक में स्थान मिले.
दूसरा— मैं वर्षपर्यंत अणुव्रत विश्वभारती राजसमंद में आयोजित बच्चों के शिविरों में उपस्थित रहता हूं. करीब 600 बच्चों के संपर्क में आता हूं. यदि कोई सदस्य अपनी बाल साहित्य की कोई पुस्तक उन बच्चों तक पहुंचाना चाहे तो बच्चों का देश के पते पर 10 -10 प्रतियां भिजवाएं. मैं सही पात्र तक पहुंचाने में मदद कर सकता हूं.
तीसरा— अभी मैं बच्चों का देश पत्रिका के संपादन से जुड़ा हूं, इस पूरे वर्ष यह सेवा जारी रखने को संकल्पित हूं. साथ ही मेरा प्रयास रहेगा कि वरिष्ठ रचनाकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकारों को भी हर अंक में स्थान मिले.
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अंजली खेर गृहिणी व बालसाहित्य लेखिका है. उन का कहना है कि मैं पुस्तक मेले से अच्छे बाल साहित्य की पुस्तकें खरीदूंगी. फिर उन्हें साल भर में बच्चों के जन्मदिन पर, घर आने वाले परिचित और परिजनों के बच्चों को उपहार में दूंगी. पुस्तके देते समय ये जरूर कहूंगी कि पढ़ कर बताइएगा कि इस पुस्तक की कौनसी कहानी अच्छी लगी और क्यों ?
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आप का कहना है कि इस बार विभिन्न विद्यालयों के लिए कई पुस्तकें भेंट कर ने और बच्चों में विभिन्न गतिविधियों के द्वारा बच्चों के बहुमुखी प्रतिभा के विकास के लिए साल भर प्रयास करेंगी.
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इस वर्ष आप ने संकल्प लिया है. वे कुछ बाल नाटिकाओं का मंचन करेंगे. नैतिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण विषयक कुछ रोचक क्रियाकलाप जिससे बच्चों के मन में इनके महत्व व उपयोगिता विषयक अवधारणाएं स्पष्ट हो सकें. आप की मंशा है कि बच्चों में मौलिक सृजन व अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास हो सके. इस के लिए वे बच्चों की कार्यशाला आयोजित करने की इच्छा रखते हैं.
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वे कहती है,'' ये बच्चे कहीं ना कहीं कार्यशाला में मुझ से जुड़े हैं . उन की बातें, उन की समस्याएं, उन का भोलापन, उन के प्रश्न यहां से लेखन को पोषण मिलता है तथा नव प्रयोग के विचार भी. बाल साहित्य लेखन और उन का प्रकाशन का कार्य तो मैं निरंतर करती हूं. ये सब अपनी जगह है किंतु मंच पर कभी भी मुझे जब बोलने का अवसर मिलता है तो मैं बालक की स्थिति पर अवश्य बात करती हूं. उस की शिक्षा को ले कर खासतौर से जो आजकल स्थिति है बालकों में संस्कार देने के लिए चेतना जाग्रत करने का कार्य अपने उद्बोधन से करती हूं. ताकि देश का बालक एक संवेदनशील, सुयोग्य नागरिक बने.''
इस वर्ष और भविष्य में भी बच्चों के लिए कार्यशाला, उन्हें पुस्तकें उपहार में देने और उन में प्रतिभा विकास का कार्य दूने उत्साह और स्फूर्ति से करती रहूंगी.
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आप ने अपने संकल्प को क्रियांवित करने के लिए महादेवी कौशिक बालसाहित्य संस्थान का गठन किया है जिस के अंतर्गत नव वर्ष के शुरू में ही कार्यशाला का आयोजन 7 जनवरी से 11 जनवरी तक कर रही है. इस कार्यशाला में 11 स्कूलों के 66 बच्चे भाग ले रहे हैं.
आप का कहना है कि वर्षभर बाल साहित्य सृजन के अतिरिक्त बच्चों के हित में अन्य कार्य भी करती रहूंगी ताकि एक नई युवा पीढ़ी हिंदी बाल साहित्य लेखन की तैयार हो सके.
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चाँद मोहम्मद घोसी प्रसिद्ध काटुर्निस्ट है. आप का कहना है कि मैं नन्हेंमुन्ने बच्चों को अंकों से, एल्फाबेट्स से,अक्षरों व रेखाओं से सरल, सूंदर चित्र बनाना सिखा कर अध्ययन के प्रति उन में रुचि जागृत करने का प्रयास करता रहूँगा.
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“ मेरी सोच है कि बालसाहित्य की पहुँच अधिकांश बच्चों तक होनी ही चाहिए. मैंने यह निश्चय किया है कि वर्ष 2020 में बाज़ार से हर माह 30 बालपत्रिकाएँ खरीदकर आस-पड़ोस के साधनहीन बच्चों को वितरित करूँगा. साथ ही वर्ष 2020 में बालकविताओं का अपना प्रथम संकलन इस तरह प्रकाशित कराऊँगा जिस पर कम से कम लागत आए और जिसे साधनहीन बच्चों में मुफ्त वितरित किया जा सके और अधिक से अधिक बच्चों तक वह पहुँच सके.”
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आप के प्रिय रचनाकारों ने इस वर्ष अपनेअपने लक्ष्य, बालसाहित्य और बालकों के लिए अपने दाइत्वों का संकल्प ले लिया है. आप सभी बालक और उन के मातापिता अपने बच्चों के लिए क्या संकल्प लेना चाहते हैं. यह आप तय कर लीजिए ताकि आप भी इन रचनाकारों की तरह अपना दाइत्व का इस वर्ष बखूबी निर्वहन कर सकें.
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ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
नीमच (मध्यप्रदेश)