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Thursday, 16 January 2020

इस वर्ष आप बालसाहित्य और बच्चों के लिए आप क्या करेंगे ? (परिचर्चा) - ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

इस वर्ष आप बालसाहित्य और बच्चों के लिए आप क्या करेंगे ?
(परिचर्चा)
आप के प्रसिद्ध बालसाहित्यकारों से की गई परिचर्चा . इस में हम ने यह जानने का प्रयास किया है कि वे बच्चें के लिए इस वर्ष क्या नया करना चाहते हैं ?
मुझे एक किस्सा याद आता है. हमारे पड़ोसी बीमार हो गए. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. मगर, उन का कहना था कि उन का पुत्र उन्हीं के घर में रहता है, मगर वह एक बार देखने आया. उस के बाद उस ने उन की सेवा नहीं की. वे घर जाते ही पहला काम यह करेंगे कि उस नालायक पुत्र को घर से बाहर निकाल देंगे.
जब वे मुझे यह बात कह रहे थे, तब मैं ने उन से कहा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. तब वे बोले कि जो औलाद पिता के दुख में काम न आए उस का होना न होना बराबर है. यह सुन कर मैं उन का चेहरा देखने लगा.
ये वही पिता थे जिन्हें ने कभी अपनी मातापिता की सेवा नहीं कीं. उन्हें इसी तरह अकेले छोड़ दिया था. अब वे अपने पुत्र से वही अपेक्षा कर रहे थे, जो उन के मातापिता ने उन से की थी. पुत्र ने जैसा देखा वैसा ही वह कर रहा था. यह देखसोच कर लगा कि हमें बालसाहित्य और बालकों के लिए कुछ करना चाहिए. मगर, क्या करना चाहिए. इस की बानगी इस परिचर्चा में प्रस्तुत है.
विगत दिनों इंदौर में एक सातवीं कक्षा की बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी. उस को गणित विषय में अत्यंत कम अंक प्राप्त हुए थे . पिता ने पुनर्निरीक्षण का आवेदन दिया. दुःख की बात यह रही कि पुनर्निरीक्षण में बालिका के अंक 85 से अधिक प्राप्त हुए. किंतु धैर्य नहीं होने के कारण उस बच्ची ने परिणाम आने के पूर्व ही आत्महत्या कर ली. इंदौर में छोटे-छोटे बच्चों की आत्महत्या के इस तरह के प्रसंग समाज को लगातार उद्वेलित कर रहे हैं.
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बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका- देवपुत्र के संपादक डॉक्टर विकास दवे का कहना है कि इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रख कर विवेकानंद केंद्र के साथ बच्चों के लिए एक मनोविज्ञान परामर्श का केंद्र प्रारंभ करने कि मुझे लंबे समय से इच्छा थी. मैं क्यों कि विगत 20 -25 वर्षों से सतत बाल मनोविज्ञान का अध्ययन कर रहा हूं. बच्चों के साथ लगातार संवाद और काउंसलिंग करने का अवसर भी प्राप्त होता रहता है. अभी तक यह कार्य संस्थागत रूप से न करते हुए व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर परिवारों में जा कर कर रहा था. 
आने वाले वर्ष में विधिवत बच्चों की काउंसलिंग का केंद्र प्रारंभ करने का निर्णय लिया है. कार्यालय समय छोड़ कर व्यक्तिगत समय में से समय देते हुए बच्चों के इस काउंसलिंग सेंटर को संचालित करूँगा. इसे किसी भी प्रकार का मेडिकल काउंसलिंग जैसा स्वरूप ना देते हुए एक मनोरंजक केंद्र के रूप में विकसित करने की इच्छा है.  उस के लिए नाम भी सोचा हुआ है- " मस्ती की पाठशाला". ईश्वर ने चाहा तो यह केंद्र शीघ्र ही मूर्त रूप लेगा. इंदौर की एक प्रख्यात एलोपैथी चिकित्सक डॉ श्रीमती गोयल के श्रीमान जी श्री अरुण गोयल जी मेरे अभिन्न मित्र हैं. उन्हों ने डॉक्टर श्रीमती गोयल के क्लीनिक पर ही एक कक्ष इस निमित्त देने का आश्वासन दिया है. 
आने वाले वर्ष में शीघ्र ही मस्ती की पाठशाला आकार ले लेगी, जहां मनोवैज्ञानिक कारणों से अवसाद ग्रस्त बच्चों, अत्यधिक क्रोध करने वाले बच्चों अथवा अंतर्मुखी हो जाने वाले बच्चों को ध्यान में रख कर उन से लगातार बातचीत और काउंसलिंग के द्वारा उन्हें सामान्य आचरण व्यवहार में ढालने का एक छोटा सा उपक्रम प्रारंभ होगा. आप सब मित्रों का स्नेह और आशीर्वाद मिला तो शीघ्र ही इस काम को प्रारंभ कर सकूंगा.
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राजकुमार जैन राजन बालसाहित्य के क्षेत्र में एक जानामाना नाम हैं. आप अब तक नौ लाख से अधिक की पुस्तकें खरीद कर बच्चों में बांट चुके हैं. आप स्वयं एक बालसाहित्यकार है. बच्चों के बीच कहानी कार्यशाला करना आप का प्रिय शौक हैं. आप हजारों रूपए के बालसाहित्य के पुरस्कार हर वर्ष साहित्यकारों को बांट कर उन्हें बेहतर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
आप का कहना है, '' इस वर्ष मैं 25 से अधिक विद्यालयों में पुस्तकों के वितरण करने के साथसाथ काव्यसंग्रह, बालकहानी संग्रह सहित चार पुस्तकें बालकों को स​मर्पित करने का प्रयास करूंगा. ताकि बालसाहित्यकार व बच्चों के बीच अच्छा कार्य हो सकें.”
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‘बच्चों को देश’ पत्रिका के संपादक प्रकाश तातेड़ का कहना है , '' इस वर्ष मैं सलिला संस्था में सहयोग देते हुए तीन महत्वपूर्ण कार्य करूंगा. 
पहला—इस वर्ष मैंने मेरी बाल कविताओं का प्रथम संग्रह प्रकाशित करने का लक्ष्य बनाया है जिसकी कम से कम 100 प्रतियां निशुल्क बच्चों में बांटने की इच्छा है.
दूसरा— मैं वर्षपर्यंत अणुव्रत विश्वभारती राजसमंद में आयोजित बच्चों के शिविरों में उपस्थित रहता हूं. करीब 600 बच्चों के संपर्क में आता हूं. यदि कोई सदस्य अपनी बाल साहित्य की कोई पुस्तक उन बच्चों तक पहुंचाना चाहे तो बच्चों का देश के पते पर 10 -10 प्रतियां भिजवाएं. मैं सही पात्र तक पहुंचाने में मदद कर सकता हूं.
तीसरा— अभी मैं बच्चों का देश पत्रिका के संपादन से जुड़ा हूं, इस पूरे वर्ष यह सेवा जारी रखने को संकल्पित हूं. साथ ही मेरा प्रयास रहेगा कि वरिष्ठ रचनाकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकारों को भी हर अंक में स्थान मिले.
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अंजली खेर गृहिणी व बालसाहित्य लेखिका है. उन का कहना है कि मैं पुस्तक मेले से अच्छे बाल साहित्य की पुस्तकें खरीदूंगी. फिर उन्हें साल भर में बच्चों के जन्मदिन पर, घर आने वाले परिचित और परिजनों के बच्चों को उपहार में दूंगी. पुस्तके देते समय ये जरूर कहूंगी कि पढ़ कर बताइएगा कि इस पुस्तक की कौनसी कहानी अच्छी लगी और क्यों ? 
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विमला नागला पेशे से शिक्षिका और कहानीकार है. इन्हों ने कुछ विद्यालयों में बरामदा पुस्तकालय का निर्माण किया है. इन के पास जो भी पुस्तकें आती है वे इन पुस्तकालयों में भेंट कर देती है. इन्हों ने अपने कहानी संग्रह की साठ पुस्तकें विभिन्न विद्यालय और बच्चों को दी है. ये बच्चों के बीच कहानी कहना और उन से कहानी सुनना पसंद करती है.
आप का कहना है कि इस बार विभिन्न विद्यालयों के लिए कई पुस्तकें भेंट कर ने और बच्चों में विभिन्न गतिविधियों के द्वारा बच्चों के ​बहुमुखी प्रतिभा के विकास के लिए साल भर प्रयास करेंगी.
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राजेंद्र श्रीवास्तव पेशे से शिक्षक और काव्य रचियता है. आप ने इस वर्ष जिला शिक्षाधिकारी की अनुमति ली है. वे प्रति शनिवार किसी विद्यालय में पहुँच कर प्रधानाध्यापक की सहमति से लगभग चालीस मिनट बालसभा में सहभागिता करते हैं. बच्चों की प्रस्तुति के बीच किसी बाल साहित्यकार की कहानी कविता का वाचन और सामान्य ज्ञान विषयक प्रतियोगिता आयोजित करवाते हैं. 
इस वर्ष आप ने संकल्प लिया है. वे कुछ बाल नाटिकाओं का मंचन करेंगे. नैतिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण विषयक कुछ रोचक क्रियाकलाप जिससे बच्चों के मन में इनके महत्व व उपयोगिता विषयक अवधारणाएं स्पष्ट हो सकें. आप की मंशा है कि बच्चों में मौलिक सृजन व अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास हो सके. इस के लिए वे बच्चों की कार्यशाला आयोजित करने की इच्छा रखते हैं.
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डॉ विमला भंडारी हर वर्ष बाल​साहित्य के लिए कोई न कोई विधा पर बालसाहित्य पर आधारित आयोजन करवाती है. कई साहित्यकारों पुरुस्कृत कर के प्रोत्साहित करती है. बच्चों की कार्यशाला आयोजित करती है. बच्चों के बीच रहना और उन्हें पुरस्कार के रूप में पत्रपत्रिकाएं व पुस्तकें उपहार में देना आप का शौक है.
वे कहती है,'' ये बच्चे कहीं ना कहीं कार्यशाला में मुझ से जुड़े हैं . उन की बातें, उन की समस्याएं, उन का भोलापन, उन के प्रश्न यहां से लेखन को पोषण मिलता है तथा नव प्रयोग के विचार भी. बाल साहित्य लेखन और उन का प्रकाशन का कार्य तो मैं निरंतर करती हूं. ये सब अपनी जगह है किंतु मंच पर कभी भी मुझे जब बोलने का अवसर मिलता है तो मैं बालक की स्थिति पर अवश्य बात करती हूं. उस की शिक्षा को ले कर खासतौर से जो आजकल स्थिति है बालकों में संस्कार देने के लिए चेतना जाग्रत करने का कार्य अपने उद्बोधन से करती हूं. ताकि देश का बालक एक संवेदनशील, सुयोग्य नागरिक बने.''
इस वर्ष और भविष्य में भी बच्चों के लिए कार्यशाला, उन्हें पुस्तकें उपहार में देने और उन में प्रतिभा विकास का कार्य दूने उत्साह और स्फूर्ति से करती रहूंगी.
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डॉ. सत्यनारायण सत्य बच्चों के लेखक हैं. इन का कहना है कि मैं लेखन के साथसाथ इस वर्ष कोशिश करूंगा कि मेरा विद्यालय, जहां पर मैं कार्यरत हूं वहां पर अधिक से अधिक बाल साहित्यिक पत्रिकाएं मंगवा कर, उन्हें बच्चों तक वितरित करने का प्रयास कर संकू .
इसी कल्पना को साकार करते हुए मैंने अपने विद्यालय में बाल वाटिका, चंपक, देवपुत्र ,बच्चों का देश, नंदन बालहंस ,नन्हे सम्राट, बालभारती सहित देश की कई प्रतिष्ठित बाल पत्रिकाओं को मंगवाना शुरू कर दिया हैं. अब बच्चे इनका इंतजार भी करते हैं, पढ़ते भी हैं. इस वर्ष इस का विस्तार करूंगा. ताकि बच्चों में पाठ्य सहगामी गतिविधियों को विस्तार कर सकूं.
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कुसुम अग्रवाल बच्चों की सर्वाधिक चर्चित बालकथाकार है. उन का कहना है कि मैं ने भी वर्ष 2020 में बालसाहित्य के उन्नयन हेतु कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं. मैं भारत पहुंचते ही बालकों की साहित्य में रुचि बढ़ाने हेतु कुछ कदम उठाऊंगी. लेखन कार्यशालाओं का आयोजन करूंगी. इस वर्ष में इन्हें अधिक विस्तार दूंगी. मैं बच्चों को अपनी लिखी हुई कहानियां व कविताएं सुनाऊंगी तथा अणुव्रत विश्वभारती के साथ जुड़ कर बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए कार्य करूंगी. यह मेरा इस वर्ष का लक्ष्य और संकल्प है.
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शील कौशिक प्रसिद्ध लघुकथाकार के साथसाथ कई कार्यक्रमों की संयोजक भी है. इस वर्ष वे बच्चों के विद्यालय में जा कर बच्चों से संवाद, वार्तालाप और कार्यशाला कर के बच्चों में पठनपाठन के प्रति रूचि जागृत करने का प्रयास करेंगी. आप का कहना है कि जो बच्चे वास्तव में हिंदी बाल साहित्य लेखन में रुचि रखते हैं, उन्हें कार्यशालाओं के माध्यम से कहानी, कविता विधाओं के अतिरिक्त अन्य विधाओं यथा संस्मरण, यात्रा वृतांत ,पत्र लेखन, रेखाचित्र, नाटक ,एकांकी आदि के बारे में सूक्ष्म बातें बताई जाएं, ताकि वे अपनी अभिव्यक्ति अपनी पसंद अनुसार किसी भी विधा में दे सकें .
आप ने अपने संकल्प को क्रियांवित करने के लिए महादेवी कौशिक बालसाहित्य संस्थान का गठन किया है जिस के अंतर्गत नव वर्ष के शुरू में ही कार्यशाला का आयोजन 7 जनवरी से 11 जनवरी तक कर रही है. इस कार्यशाला में 11 स्कूलों के 66 बच्चे भाग ले रहे हैं.
आप का कहना है कि वर्षभर बाल साहित्य सृजन के अतिरिक्त बच्चों के हित में अन्य कार्य भी करती रहूंगी ताकि एक नई युवा पीढ़ी हिंदी बाल साहित्य लेखन की तैयार हो सके.
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चाँद मोहम्मद घोसी प्रसिद्ध काटुर्निस्ट है. आप का कहना है कि मैं नन्हेंमुन्ने बच्चों को अंकों से, एल्फाबेट्स से,अक्षरों व रेखाओं से सरल, सूंदर चित्र बनाना सिखा कर अध्ययन के प्रति उन में रुचि जागृत करने का प्रयास करता रहूँगा.
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गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल' नवयुवा साहित्यकार है. इन का कहना है कि वर्तमान समय में मोबाइल, लैपटॉप और टी वी की प्रधानता के कारण बच्चों में बालसाहित्य पढ़ने की रुचि में कमी आई है. स्कूलों में भी अंग्रेजी माध्यम प्रधान होने के कारण हिंदी बालसाहित्य को प्रोत्साहन न के बराबर है.
“ मेरी सोच है कि बालसाहित्य की पहुँच अधिकांश बच्चों तक होनी ही चाहिए. मैंने यह निश्चय किया है कि वर्ष 2020 में बाज़ार से हर माह 30 बालपत्रिकाएँ खरीदकर आस-पड़ोस के साधनहीन बच्चों को वितरित करूँगा. साथ ही वर्ष 2020 में बालकविताओं का अपना प्रथम संकलन इस तरह प्रकाशित कराऊँगा जिस पर कम से कम लागत आए और जिसे साधनहीन बच्चों में मुफ्त वितरित किया जा सके और अधिक से अधिक बच्चों तक वह पहुँच सके.”
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इंद्रजीत कौशिक जानेमाने कहानीकार है. आप का कहना है कि इस वर्ष में अपने संपर्क में आने वाले बच्चों से मिल कर उन से विचारविमर्श करूंगा. तब उन के सुझाए गए विषयों पर लेखन करने का प्रयास करूंगा. ऐसा करने से शायद बच्चों की जिज्ञासाओं के अनुरूप लेखन करने में सहायता मिले. वे बच्चे के बीच जाकर एक कार्यशाला आयोजित करना चाहते हैं.
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ललित शौर्य वर्तमान समय में सब से अधिक छपने वाले युवा कहानीकार है. आप का कहना है कि मैंने विगत वर्ष अपने प्रथम बालकहानी संग्रह—दादाजी की चैपाल, को शहर के सक्षम लोगों एवं नगर पालिका के माध्यम से 1500 गरीब बच्चों के हाथों तक पहुंचाया। इस वर्ष भी दो हजार प्रतियों का द्वितीय संस्करण आ रहा है। जिसे विभिन्न लोगों के माध्यम से बच्चों तक पहुंचाने की व्यवस्था हो रही है। इस वर्ष एक अंग्रेजी में बालकहानी संग्रह आएगा जिसे भी गरीब बच्चों को निःशुल्क वितरित करने की व्यवस्था करूंगा. यह मेरा इस साल का संकल्प है.
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आप के प्रिय रचनाकारों ने इस वर्ष अपनेअपने लक्ष्य, बालसाहित्य और बालकों के लिए अपने दाइत्वों का संकल्प ले लिया है. आप सभी बालक और उन के मातापिता अपने बच्चों के लिए क्या संकल्प लेना चाहते हैं. यह आप तय कर लीजिए ताकि आप भी इन रचनाकारों की तरह अपना दाइत्व का इस वर्ष बखूबी निर्वहन कर सकें.

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-०-
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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लहू में डूबता प्याला (कविता) - सरिता सरस

लहू में डूबता प्याला 
(कविता)
कहीं सर्दी भयंकर है
कहीं है भूख की ज्वाला ,
कहीं महफ़िल मचलती है
कहीं ढलती मदिर हाला !

कहीं पर रेशमी परिधान में
कुछ लोग बसते हैं ,
कहीं नंगे बदन ठिठुरे
दुशाले को तरसते हैं !

सड़क से रोज संसद तक
मचाया शोर है जाता ,
यहाँ भूखे हजारों हैं
निवाला मिल नहीं पाता !

सृजन के पीर में लिपटी
गमों के नीर में आँखें ,
कहीं से आ रही भर-भर
लहू में डूबता प्याला !

सिसकती बीनती बेटी
कहीं इक भूख का टुकड़ा ,
वहीं कुछ राज करते हैं
पहन कर भूख की माला !

वतन का कल इधर बेवश
तड़पता चंद चिथड़ों में ,
वसन धारण किए जो श्वेत
उनका है हृदय काला !

बची जो जिंदगी उधड़ी
उसे सीती रही है माँ ,
उधर निर्धन पिता के पाँव
हैं लथपथ ,पड़ा छाला !
-०-

पता:
सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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नया साल (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

नया साल

(लघुकथा)
धड़ाम से दरवाजा बन्द करने की आवाज सुनते ही मै समझ गई थी कि आज कुछ हुआ जरूर है निखिल की आदत से वाकिफ़ हूँ ।जरा सा कुछ मन का नही हुआ तो लगता कि सब तलपट करके ही मानेंगे ।
"नीलू कंहा हो भई "
"जी आई "
रसोई से हाथ झाड़ती हुई बाहर आई तो लगभग चिल्लाते हुए निखिल मुझ पर बरसे..........
"और कराओ बिटिया से नौकरी , बिगाड़ा तुम्ही ने है"
"अरे क्या हुआ बताइऐ तो सही" घबराये हुए कहा......I
आज तुम्हारी लाड़ली को मैने तीन चार सहेलियों के साथ सिगरेट पीते देखा है ।बस यही देखना बाकि था और चढ़ाओ सर पर."....
"नही ऐसा नही कर सकती वो.".........
आने दो आज सही बताऊँगा .......
आश्चर्य से निखिल की तरफ देखते हुए नीलू ने कहा आप पर किस मुंह से बचपन से उसने आपको देखा है न रहने दो मै खुद ही.......l
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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बस शिकायत नहीं..(कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

बस शिकायत नहीं..
(कविता)
नफरत ,शिकायतें छोड़ कर
जरा शुकराना सीखो।
छुपा कर गमों को भी दर्द में
भी तुम मुस्कराना सीखो।।

यूँ ही नहीं हाँसिल होता ऊंचा
मुकाम जिन्दगी में ।
बस वक्त आने पर खुद को
तुम आज़माना सीखो।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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नगर मत बनाओ (कविता) - राम नारायण साहू 'राज'


नगर मत बनाओ
(कविता)
मर्यादा पुर्षोत्तम श्रीराम के
भाई लक्ष्मण जी के
चरणों से निकली
जलधारा के किनारे बसी
साहित्यिक नगरी में
न जाने
अब
क्या से क्या हो रहा है ।
मैं असमंजस में हूँ की
जिस नगरी के मैदान में कभी
खेल खेला करता था,
आज वो मैदान भी
बहुत छोटा हो गया है।
आबादी भी बढ़ गई है,
इसका गम नहीं है,
लोगो अब संस्कार भूल गए है
इस बात का गम है।
संस्कार न भूलते तो
ये बुढ़े माँ-बाप,
भीख मांगते नजर नहीं आते।
हमारा वो कुआँ
जिसके पानी से प्यास बुझाते थे
वो आज
खून से सना नहीं होता।
वो नदी पानी पीने योग्य होता,
हमारे तालाबो में बने मंदिर
गिरते ना होते,
और तालाब भी सूखा ना होता,
किसी के तरक्की से लोग
जलते ना होते,
अच्छे लोग मरते ना होते,
शाम होते ही सड़के
सूनी ना होती,
और ना माँ-बाप, बच्चे को
घर से निकलने के लिए
मना करते।
किसी को डर का साया ना होता ।
चौक चौराहो से चौपाल ना गुमते।
बन गया यदि ये
नगरी से नगर
बढ़ जायेंगे अपराध
इसलिये
मैं चाहता हूँ
इस साहित्यिक नगरी को
नगरी ही रहने दो,
नगर मत बनाओ।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-



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‘पाकिस्तान में ननकाना साहिब पर हमला क्यूँ?' (आलेख) - रेशमा त्रिपाठी

‘पाकिस्तान में ननकाना साहिब पर हमला क्यूँ?'
(आलेख)
“ननकाना साहब पाकिस्तान के प्रांत में स्थित एक शहर हैं जिसका वर्तमान नाम सिख धर्म के गुरु! गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा जिसका पुराना नाम हैं ‘राय– भोई– दी तलवड़ी' था यह लाहौर से 80 किलोमीटर दक्षिण –पश्चिम में स्थित हैं इसे महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानक देवजी के जन्म स्थान पर गुरुद्वारा का निर्माण करवाया । यहां पर गुरु नानक देव जी ने 16 वर्ष अपने जीवन के व्यतीत किया । 22 सितंबर 1539 ईस्वी को नानक जी ने अपकेनी देह छोड़ा था । उसके बाद यहां पर गुरुद्वारा तैयार हुआ है जो कि रावी नदी के किनारे स्थित हैं । 
यह भारत/ पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर स्थित हैं। मान्यता हैं– ‘कि नानक जी ने जब आखिरी सांस ली तो उनका शरीर गायब हो गया और फूल बन गया आधे फूल पाकिस्तानी मुसलमान ले गए आधे फूल हिंदुओं ने ! हिन्दू रीति-रिवाज से गुरु नानक का अंतिम संस्कार किया और मुसलमानों ने कब्र बनवाई ।यह बातें गुरू नानक देव जी की रचनाओं से पता चलता हैं जो कि उनके शिष्य गुरु अंगद देव के नाम से जाने जाते हैं यह सिखों का प्रमुख धर्म ग्रंथ बना । किन्तु राजनीतिक धार्मिक सियासी धर्म संघर्षों के बीच भारतीय सिख धर्म के अनुयाई वहां नहीं जा सकते थे न कोई अन्य किंतु 9 नवंबर 2019 को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा 12 नवंबर 2019 को 550 वीं गुरु नानक देव की जयंती पर पाकिस्तान से समझौता कर भारतीय श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति प्राप्त की । किन्तु यहां हाल ही में हुआ हिंसक पथराव ने एक बार फिर प्रश्न खड़ा कर दिया ?
पाकिस्तानियों का अल्पसंख्यक के प्रति अत्याचार पुराना रिवाज हैं या यूं कहें कि उनकी फितरत में रहा हैं तो गलत नहीं होगा । देश विभाजन के समय जो हिंदू पाकिस्तान में रह गए वह भी अल्पसंख्यक हो गए और पाकिस्तान उनके साथ सदैव दोहरा रवैंया अपनाता रहा । उनका लगातार शोषण करता रहा फिर कश्मीर में कश्मीरी पीड़ितों के मामले ही क्यों ना हो । हाल ही में जो ननकाना साहब पर पथराव हुआ वह भी एक चरमपंथी अलगाववादी सोच का ज्वलंत उदाहरण हैं यदि इसको भारतीय राजनीति की पहलू से देखा जाए तो नागरिकता संशोधन विधेयक की तरफ उसकी हताशा या उसकी मानसिकता को परिभाषित करता हैं जबकि इसका संपूर्ण कलेवर सदैव से ही दुराग्रही ही रहा हैं यह पथराव भी उसी का परिणित रूप कहा जा सकता हैं । पाकिस्तान सदैव से हिंदुओं पर अत्याचार करता रहा हैं उसकी यह सोच समय के साथ बढ़ती जा रही हैं राजनीतिक रूप से इसे जायज– नाजायज भले ही ठहराया जाए परन्तु इसका बौद्धिक रूप से कोई पक्ष/प्रति विपक्ष नहीं हैं क्योंकि हिंसा का सभ्य समाज में कोई स्तर नहीं हो सकता हैं ।।"
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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